थौबल (मणिपुर): लंगपोकलाकपम पुष्पारानी देवी अभिनेत्री बनना चाहती हैं, जबकि उसकी पड़ोसी रंजीता का सपना गायिका बनने का है. लेकिन ये सपने देखने वाली इन किशोरियों के मन में एक डर समाया हुआ है कि कहीं मणिपुर में लंबे समय से चल रहा सैन्य संघर्ष उन पर भारी न पड़ जाए.
गोरोबा मैतई राज्य में अमन कायम करने की खातिर सैन्य अधिकारी बनना चाहता है. ऐसे ही कई बच्चे अपने भविष्य के सपने अपनी आंखों में लिए हुए हैं. लेकिन दूसरा सच यह भी है कि मणिपुर में उग्रवाद की जड़ें बहुत पुरानी हैं. इसके बावजूद यहां के बच्चे उस बदलाव का सपना देखने की हिम्मत जुटा रहे हैं जो उनके लिए और आने वाली पीढि़यों के लिए सुनहरा भविष्य सुनिश्चित करे.
यहां के सैन्य अधिकारी उनकी उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद दे रहे हैं. अधिकारी बीते कुछ वर्षों से स्थानीय लोगों को उग्रवादियों से अलग-थलग करने का प्रयास कर रहे हैं. सेना की 57 माउंटेन डिवीजन में जीओसी मेजर जनरल वीके मिश्रा ने कहा कि उनके प्रयास फलीभूत हो रहे हैं. उन्होंने कहा, ''वह स्थानीय लोगों तक पहुंच रहे हैं, उन्हें मुख्यधारा का हिस्सा बनने में मदद दे रहे हैं जिससे यह साबित होता है कि अब उग्रवादी उन्हें प्रभावित नहीं कर पाएंगे.''
मिश्रा ने कहा कि शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण में मदद के लिए लोग बलों से संपर्क कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ''कुछ वर्ष पहले तक ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए बच्चों को खोजना मुश्किल होता था, लेकिन अब उनका हममें भरोसा है. हमसे संपर्क करने वालों में स्कूल भी शामिल हैं.''
उन्होंने कहा कि सैन्य बलों में शामिल होने की मांग भी बढ़ी है. सेना की 57 माउंटेन डिवीजन कांगकोपई जिले के लीमाखोंग के बेसहारा बच्चों के लिए एक छात्रावास का संचालन भी कर रही है. फिलहाल यहां 24 बच्चे हैं. इनमें से दस के अभिभावक नहीं हैं.