महाराष्ट्र: सरकार बनाने को लेकर गतिरोध के बीच इस बार मातोश्री क्यों नहीं गये अमित शाह?
By हरीश गुप्ता | Published: November 14, 2019 07:48 AM2019-11-14T07:48:36+5:302019-11-14T07:48:36+5:30
अमित शाह ने विधानसभा चुनाव के बाद चुप रहने का विकल्प चुना. चुनाव से पहले उन्होंने 'लोकमत समाचार' से अनौपचारिक बातचीत में सत्ता में 50:50 साझेदारी फॉमूले से इनकार किया था.
भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गतिरोध खत्म करने के लिए इस बार मातोश्री में उद्धव ठाकरे से बात करने के लिए मुंबई की यात्रा क्यों नहीं की? आखिर उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले उद्धव के साथ बैठक करने की पहल की, जब शिवसेना सीट बंटवारे के मुद्दे पर सख्त तेवर दिखा रही थी. यह मुद्दा उस वक्त सुलझा लिया गया जब जब शाह और उद्धव ने बंद दरवाजे में बैठक की, लेकिन इस बार शाह ने न तो मुंबई का दौरा किया और न ही शिवसेना प्रमुख से फोन पर बात की.
उन्होंने विधानसभा चुनाव के बाद चुप रहने का विकल्प चुना. चुनाव से पहले उन्होंने 'लोकमत समाचार' से अनौपचारिक बातचीत में सत्ता में 50:50 साझेदारी फॉमूले से इनकार किया था. उन्होंने सत्ता में 50:50 साझेदारी फॉमूले पर उभरे टकराव को सुलझाने के लिए कोई पहल नहीं की और शिवसेना को अन्य विकल्प चुनने की छूट दी. चर्चा है कि उद्धव के सीमा लांघकर मीडिया में दिए गए बयानों से शाह बहुत परेशान थे. हालांकि, अब सबकी निगाहें 24 नवंबर पर टिकी हैं जब उद्धव अयोध्या का दौरा करने के बाद लालकृष्ण आडवाणी से मिलने दिल्ली जा सकते हैं.
अमित शाह 6 कृष्ण मेनन मार्ग स्थित आवास पर आगबबूला हो रहे थे कि कैसे ठाकरे बंद कमरे में हुए विचार-विमर्श मीडिया के साथ एक करीबी बैठक में विचार-विमर्श का विवरण तोड़-मरोड़ कर मीडिया को दे रहे हैं. शाह बैठक से इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने मुंबई में हुई बैठक में देवेंद्र फडणवीस से चर्चा तक नहीं की. शाह ने चुप रहना उचित समझा और दूसरी राह देखी. शाह इस बात से आश्चर्यचकित रह गए जब शिवसेना विधानसभा चुनाव में कम सीटों पर लड़ने के लिए सहमत हुई, तो वह मुख्यमंत्री पद के लिए कैसे दावा कर सकती थी.
चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद शिवसेना के सुर बदल गए और वह आक्रामक होकर सारी सीमाएं तोड़ने लगी. उद्धव को इसका जिक्र नहीं करना चाहिए था कि शाह के साथ क्या बात हुई और न ही तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश करना चाहिए था. शाह को इस पर गुस्सा है और कम से कम इस समय शिवसेना के लिए दरवाजे बंद हैं.
दोबारा बैठक पर देना था जोर : भाजपा सूत्रों का कहना है कि उद्धव ठाकरे को सार्वजनिक रूप से बयानबाजी करने के बदले शाह के साथ दोबारा बैठक के लिए जोर देना चाहिए था. इसने शाह को विचित्र स्थिति में डाल दिया होगा. उद्धव ने क्या किया? जनता के बीच जाकर उन्होंने सीमारेखा पार की और अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फैसला किया कि शिवसेना को जो करना है, वह करने दें. कम से कम अभी शिवसेना के साथ कोई बात नहीं होगी. मोदी ने भी सख्त रुख अपनाते हुए शिवसेना को भाजपा के बिना सरकार बनाने की अनुमति दे दी.