महाराष्ट्र और एनआईए ने अदालत से कहा, भारद्वाज स्वाभाविक जमानत की हकदार नहीं हैं

By भाषा | Updated: July 23, 2021 19:10 IST2021-07-23T19:10:13+5:302021-07-23T19:10:13+5:30

Maharashtra and NIA tell court, Bhardwaj is not entitled to natural bail | महाराष्ट्र और एनआईए ने अदालत से कहा, भारद्वाज स्वाभाविक जमानत की हकदार नहीं हैं

महाराष्ट्र और एनआईए ने अदालत से कहा, भारद्वाज स्वाभाविक जमानत की हकदार नहीं हैं

मुंबई, 23 जुलाई महाराष्ट्र सरकार ने शुक्रवार को बंबई उच्च न्यायालय को बताया कि पुणे की एक सत्र अदालत द्वारा 2018 में एल्गार-परिषद माओवादी संबंध मामले में पुलिस के आरोप पत्र पर संज्ञान लेने से आरोपियों के प्रति कोई पूर्वाग्रह पैदा नहीं किया। इसलि , सुधा भारद्वाज या सह-आरोपी को इस आधार पर जमानत के हकदार नहीं हैं।

राज्य की ओर से महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणि इस मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा विशेष न्यायाधीश के रूप में आरोप पत्र का संज्ञान लेने के आदेश पर हस्ताक्षर करने के आधार पर वकील एवं कार्यकर्ता भारद्वाज की एल्गार जमानत की याचिका पर बहस कर रहे थे।

भारद्वाज के वकील युग चौधरी ने पहले न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति एनजे जामदार की पीठ को बताया था कि भारद्वाज और सह-आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम (यूएपीए) के तहत अनुसूचित अपराधों के तहत लगाया गया था। चौधरी ने कहा था कि जिस मामले को जनवरी 2020 में एनआईए अदालत ने अपने हाथ में लिया था, उसपर केवल एक विशेष अदालत ही संज्ञान ले सकती है।

उन्होंने कहा था कि आरोप पत्र पर संज्ञान लेने वाले न्यायाधीश केडी वडाने एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश थे, लेकिन उन्होंने एक विशेष न्यायाधीश के रूप में आदेश पर हस्ताक्षर किए। चौधरी ने कहा था कि इस तरह की चूक से भारद्वाज को स्वाभाविक रूप से जमानत की हकदार हैं।

हालांकि शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार ने इस दलील का विरोध किया।

कुंभकोणि ने कहा, '' क्या सिर्फ इसलिये कोई व्यक्ति स्वाभाविक जमानत का हकदार बन जाता है कि किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा संज्ञान लिया गया जिसके पास अधिकार क्षेत्र नहीं था? इस पहलू से वे (भारद्वाज और उनके सह-आरोपी) स्वाभाविक जमानत के हकदार नहीं बन जाते।'' उन्होंने कहा कि पुणे पुलिस के मामले का संज्ञान एक विशेष अदालत ने नहीं बल्कि सत्र अदालत ने लिया, इस तथ्य को ''अनियमितता'' माना जा सकता है, लेकिन ''अवैध'' नहीं।

कुंभकोणि ने कहा, ''पूरी याचिका में यह नहीं बताया गया कि न्यायिक विफलता हुई है या इस संज्ञान के कारण कोई पूर्वाग्रह पैदा हुआ है।''

एनआईए के वकील, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने भी कहा कि उपरोक्त तथ्य भारद्वाज और उनके सह-अभियुक्तों को स्वाभाविक रूप से जमानत का हकदार नहीं बनाते । उन्होंने कहा कि एनआईए द्वारा मामले को अपने हाथ में लेने से लेकर सत्र अदालत में मामले का संज्ञान लिये जाने तक में कोई अनियमितता नहीं बरती गई।

सिंह ने कहा, ''सभी सत्र न्यायाधीश समान हैं। कोई छोटा या बड़ा नहीं है। यह केवल अधिसूचना का सवाल है जो उन्हें अलग करता है।''

उन्होंने कहा कि अगर 90 दिनों के भीतर आरोप पत्र दायर नहीं किया जाता तो स्वाभाविक जमानत का अधिकार मिल जाता है।

सिंह ने कहा, ''एक बार आरोप पत्र दाखिल होने के बाद स्वाभाविक जमानत का अधिकार खत्म हो जाता है। संज्ञान लिया जाए या नहीं, यह इस तथ्य से संबंधित नहीं है कि चार्जशीट दायर की गई है या नहीं।''

मामले पर आगे की सुनवाई दो अगस्त को होगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Maharashtra and NIA tell court, Bhardwaj is not entitled to natural bail

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे