मद्रास हाईकोर्ट ने कहा- ऐसा लगता है कि सरकार खुद ही जाति के आधार पर विभाजन को बढ़ावा दे रही
By भाषा | Published: August 27, 2019 06:09 AM2019-08-27T06:09:15+5:302019-08-27T06:09:15+5:30
मद्रास उच्च न्यायालय: श्मशान घाट जाने वाले रास्ते को बाधित किये जाने के चलते समुदाय के सदस्य पिछले चार साल से अपने सगे-संबंधियों के शव को एक नदी पर स्थित पुल से रस्सियों के सहारे नीचे गिराने के लिए मजबूर हैं।
दलितों के लिए अलग श्मशान घाट और कब्रिस्तान आवंटित किये जाने के चलन की आलोचना करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार खुद ही जाति के आधार पर विभाजन को बढ़ावा दे रही है और इस पर एक स्पष्टीकरण भी मांगा। तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में दलितों के एक श्मशान घाट जाने वाले मार्ग को बाधित किये जाने के बारे में एक अखबार में आई खबर पर संज्ञान लेते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की।
गौरतलब है कि श्मशान घाट जाने वाले रास्ते को बाधित किये जाने के चलते समुदाय के सदस्य पिछले चार साल से अपने सगे-संबंधियों के शव को एक नदी पर स्थित पुल से रस्सियों के सहारे नीचे गिराने के लिए मजबूर हैं। न्यायमूर्ति एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति सुब्रहमण्यम प्रसाद की पीठ ने अपनी मौखिक टिप्पणी में इस बात का जिक्र किया कि सभी लोग-- चाहे वे किसी भी जाति या धर्म के हों-- को सभी सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश की इजाजत है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि ‘आदि द्रविड़ों’ (अनुसूचित जाति) को अलग कब्रिस्तान आवंटित कर सरकार खुद ही ऐसी परंपरा को बढ़ावा देती दिख रही है। अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत देश का हर नागरिक कानून के समक्ष समानता का हकदार है।
पीठ ने यह जानना चाहा कि लोगों की उनकी जाति के आधार पर शवदाह के लिए अलग स्थान होने के क्या कारण हैं। पीठ ने यह भी पूछा कि क्यों कुछ स्कूलों को आदि द्रविड़ों के लिए अलग स्कूल कहा जाना जारी है, जबकि राज्य सरकार ने सड़कों से जाति के नाम हटा दिये हैं। इसके बाद अदालत ने वेल्लोर जिला कलेक्टर और वनियाम्बडी तहसीलदार को कब्रिस्तान के आसपास ग्रामीणों द्वारा इस्तेमाल की गई भूमि का ब्यौरा सौंपने का निर्देश दिया।
बहरहाल, याचिका पर आगे की सुनवाई बृहस्पतिवार के लिए स्थगित कर दी गई। खबरों के मुताबिक चेन्नई से 213 किमी पश्चिम की ओर वनियाम्बडी कस्बे के पास स्थित नारायणपुरम गांव के दलित समुदाय के लोग अपने सगे-संबंधियों के शवों को नदी पर स्थित पुल से नीचे गिराने के लिए मजबूर हैं क्योंकि नदी तट पर स्थित कब्रिस्तान तक जाने का रास्ता दो लोगों के कथित अतिक्रमण के चलते बाधित हो गया है।
उच्च न्यायालय ने एक अंग्रेजी अखबार में इस बारे में एक खबर प्रकाशित होने पर पिछले हफ्ते इस मुद्दे का संज्ञान लिया। पीठ ने पिछले हफ्ते तमिलनाडु के गृह सचिव, वेल्लोर जिला कलेक्टर और तहसीलदार को नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर उनसे जवाब मांगे थे।
खबरों के मुताबिक, गांव के दलित बाशिंदे शवों को पिछले चार साल से पुल से नीचे नदी तट पर उतारते हैं। हालांकि, दलितों का कहना है कि वे अन्य समुदायों से प्रत्यक्ष तौर पर जातीय भेदभाव या धमकियों का सामना नहीं कर रहे हैं। उन्होंने अतिक्रमण नहीं हटाने के लिए जिला प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है।