मध्य प्रदेश चुनावः इन 34 सीटों पर आसान नहीं बीजेपी-कांग्रेस की राह, सपाक्स पार्टी का है दबदबा
By राजेंद्र पाराशर | Published: October 26, 2018 04:38 PM2018-10-26T16:38:00+5:302018-10-26T16:38:00+5:30
बहुजन समाज पार्टी से अलग होने के बाद बहुजन संघर्ष दल के नाम से अलग पार्टी बनाने वाले फूलसिंह बरैया ने भी इस अंचल को अपनी ताकत बनाया है।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार सिंधिया के प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही के लिए तीन दल मुसीबत बनेंगे। बहुजन समाज पार्टी, बहुजन संघर्ष दल और सपाक्स पार्टी इस क्षेत्र में दोनों ही दलों के चुनाव परिणामों को प्रभावित करेंगे।
ग्वालियर-चंबल अंचल में सांसद और कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव माना जाता है। इस क्षेत्र में सिंधिया अपने हिसाब से टिकट वितरण के लिए भी प्रयास कर रहे हैं। सिंधिया इस अंचल की 34 विधानसभा सीटों में से अधिक सीटों पर कांग्रेस का कब्जा चाहते हैं, मगर बीते 2013 के चुनाव परिणाम को देखा जो तो यहां पर 20 सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा है, जबकि कांग्रेस के पक्ष में मात्र 12 सीटें ही आई थी और 2 सीटें बसपा के पक्ष में गई थी।
भाजपा भी इस अंचल को गंभीरता से ले रही है। भाजपा की ओर से केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा, प्रदेश के जनसंपर्क मंत्री डा। नरोत्तम मिश्रा के अलावा स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह, उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया और सांसद अनूप मिश्रा भी यहां पर सक्रिय हैं। ये सभी नेता भाजपा के पक्ष में बिगड़े माहौल को साध रहे हैं, मगर दावेदारों की दावेदारी के चलते नेताओं भी उलझे हुए हैं।
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के लिए इस बार के चुनाव में तीन दलों के प्रत्याशी मुसीबत बनेंगे। बहुजन समाज पार्टी, बहुजन संघर्ष दल और सपाक्स यहां पर भाजपा, कांग्रेस प्रत्याशियों के चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाले साबित होंगे। बसपा और बहुजन संघर्ष दल का तो इस क्षेत्र में खासा प्रभाव पहले से ही है, मगर सपाक्स का प्रभाव एट्रोसिटी एक्ट के विरोध के चलते खासा इस अचंल में दिखाई दिया है।
बसपा बिगाड़ेगी समीकरण
ग्वालियर-चंबल अंचल में बहुजन समाज पार्टी का भी प्रभाव रहा है। 2013 के चुनाव में बसपा के खाते में इस अंचल की दो सीटें दिमनी और अंबाह गई थी। इसके अलावा दर्जन भर सीटों पर बसपा प्रत्याशियों के मिले मतों के चलते कांग्रेस प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा था। बसपा इस बार भी इस अंचल में पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरी है। बसपा के प्रदेश प्रभारी मुकेश अहिरवार खुद इस अंचल की कमान संभाले हुए हैं। वे लगातार कार्यकर्ताओं की बैठकें लेकर मतदाता के बीच बसपा की पैठ बना रहे हैं।
बरैया बनेंगे मुसीबत
बहुजन समाज पार्टी से अलग होने के बाद बहुजन संघर्ष दल के नाम से अलग पार्टी बनाने वाले फूलसिंह बरैया ने भी इस अंचल को अपनी ताकत बनाया है। बरैया भी इसी क्षेत्र में लगातार बीते पांच सालों से संघर्ष कर रहे हैं। 2013 के चुनाव में बहुजन संघर्ष दल ने इस अंचल की सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। इस चुनाव में सबलगढ़, मेहगांव, अटेल, गोहद, ग्वालियर, ग्रामीण, भितरवार, सेवढ़ा, भांडेर विधानसभा सीटों पर खासा असर दिखाया था। इन सीटों पर दल के प्रत्याशियों को 15 हजार से ज्यादा मत हासिल हुए थे, जबकि आधा दर्जन सीटों पर दल के प्रत्याशियों को 10 हजार और इससे अधिक मत हासिल हुए थे।
सपाक्स को मिलेगा एट्रोसिटी एक्ट के विरोध फायदा
एट्रोसिटी एक्ट का खासा विरोध भी इसी अंचल में देखने को मिला था। इस अंचल में हुए विरोध के चलते भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के नेताओं का घेराव कर उनकी परेशानी इस अंचल में सपाक्स से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं ने बढ़ा दी है। सपाक्स ने प्रदेश में सभी 230 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी मैदान में उतारने का फैसला लिया है। इस फैसले के तहत इस अंचल में सपाक्स ने प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया को भी शुरू कर दिया है। सपाक्स के अलावा इस अंचल में देवकीनंदन ठाकुर के अखंड भारत मिशन से जुड़े लोगों की संख्या भी काफी है। ठाकुर राजधानी भोपाल में 29 अक्तूबर को अपने प्रत्याशियों की घोषणा करेंगे। सपाक्स और अखंड भारत मिशन दोनों ही भाजपा एवं कांग्रेस के लिए मुसीबत बनेंगे।
(राजेन्द्र पाराशर लोकमत समाचार से जुड़े हैं।)