Mission 2024: विपक्षी खेमे को एकजुट करना कठिन, पीएम मोदी को चुनौती देना सीएम नीतीश के लिए चुनौती!, कई नेता प्रधानमंत्री पद की दौड़ में, जानें समीकरण

By एस पी सिन्हा | Published: September 8, 2022 02:59 PM2022-09-08T14:59:57+5:302022-09-08T15:05:55+5:30

Mission 2024: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अलावा तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस अध्यक्ष के.चन्द्रशेखर राव (केसीआर) भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में हैं।

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नीतीश और ममता के बीच अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पहली एनडीए सरकार के जमाने से ही छत्तीस का आंकड़ा है।

Highlightsबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम भी जुड़ गया है। मौजूदा लोकसभा में ममता बनर्जी की टीएमसी की 24 सीटें हैं।ममता बनर्जी संख्या बल के हिसाब से नीतीश के नेतृत्व की दावेदारी पर भारी हैं।

पटनाः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मिशन 2024 उनके और पार्टी के शब्दों में लोकसभा चुनाव के लिए सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने का प्रयास है। जबकि उनके समर्थकों के शब्दों में प्रधानमंत्री पद की उनकी रेस का आगाज है। कहा भी जाने लगा है कि नीतीश के एनडीए छोड़ते ही विपक्ष और मजबूत हो गया है।

हालांकि, जानकारों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राह अब और आसान हो गई है। दरअसल, भाजपा ने 2024 में भी प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ही चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान किया है। एनडीए में शामिल सभी दलों का इसमें समर्थन भी होगा।

चन्द्रशेखर राव प्रधानमंत्री पद की दौड़

वहीं, विपक्षी खेमे में कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अलावा तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस अध्यक्ष के.चन्द्रशेखर राव (केसीआर) भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में हैं।

अब इसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम भी जुड़ गया है। नीतीश और ममता के बीच अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पहली एनडीए सरकार के जमाने से ही छत्तीस का आंकड़ा है। दोनों के बीच बीस साल बाद भी बर्फ पिघली नही है। दोनों के बीच आपसी रस्साकशी विपक्षी एकता में सबसे बड़ी बाधा बन सकती है।

ममता बनर्जी की टीएमसी की 24 सीटें हैं

मौजूदा लोकसभा में ममता बनर्जी की टीएमसी की 24 सीटें हैं और 294 सदस्यीय विधानसभा में उनके पास 219 सीटें है। ममता बनर्जी संख्या बल के हिसाब से नीतीश के नेतृत्व की दावेदारी पर भारी हैं। इसतरह से मिशन 2024 का दो बड़ा लक्ष्य तो यही दिख रहा है। विपक्षी एकता और मोदी के सामने टक्कर का प्रधानमंत्री पद।

जदयू के पटना दफ्तर पर जो पोस्टर लगे हैं वो भी तो कह ही रहे हैं कि प्रदेश में दिखा, देश में दिखेगा और आगाज हुआ, बदलाव होगा। हालांकि, यह कहा जा सकता है कि नीतीश नाप-तौल कर चल रहे हैं। इसलिए पार्टी कह रही है कि उनको विपक्षी एकता के लिए अधिकृत किया है, वो प्रधानमंत्री पद के योग्य तो हैं, लेकिन उम्मीदवार नहीं हैं।

अभी विपक्षी एकता पर ही फोकस रखा जाए

नीतीश चाहते हैं कि अभी विपक्षी एकता पर ही फोकस रखा जाए, माहौल समझा जाए, भाजपा विरोधी गठबंधन का दायरा दूसरे राज्यों तक बढ़ाया जाए और जब सब या ज्यादातर साथ आ जाएं तो फिर अगली बात यानी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की बात छेड़ी जाए। ऐसे में राजनीतिक पंडितों का कहना है कि नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है।

वे अपना सबकुछ दांव पर लगा चुके हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव को देखें तो नीतीश कुमार को हर रैली में जनता के विरोध का सामना करना पड़ा था। नीतीश से ही राजनीति का ककहरा सीखने वाले तेजस्वी यादव ने नीतीश के ’छक्के’ छुड़ा दिए थे। आखिरी मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने मैदान नहीं संभाला होता तो एनडीए की हार तय थी।

प्रधानमंत्री मोदी की ताबड़तोड़ रैलियां करवाई गई थीं

पूरे प्रदेश में नीतीश से ज्यादा प्रधानमंत्री मोदी के पोस्टर लगाए गए थे। प्रधानमंत्री मोदी की ताबड़तोड़ रैलियां करवाई गई थीं। तब जाकर नाव किनारे आया था। अब तो 2024 का चुनाव में तो सीधे प्रधानमंत्री मोदी ही मैदान में होंगे। इसतरह, नीतीश के घोषित और अघोषित दोनों मिशन की बात करें तो उनके सामने छोटे-मोटे राजनीतिक रोड़े नहीं बल्कि बड़े-बड़े पत्थर भी हैं।

विपक्षी एकता और व्यापक राष्ट्रीय गठबंधन के रास्ते में दर्जनों रोडे़-पत्थर हैं, जहां नीतीश कुमार को जबर्दस्त ठोकर लग सकता है। सबसे अहम सवाल तो यह है कि क्या वाकई नीतीश कुमार विपक्षी एकता का चेहरा करने की कोशिश करेंगे? अगर वो ये कोशिश करते हैं तो क्या वो इसमें कामयाब हो पाएंगे? अभी लोकसभा में उनकी पार्टी के 16 सांसद हैं।

बिहार की 243 सदस्यों वाली विधानसभा में उनके पास 45 सीटें

लोकसभा में संख्या बल के हिसाब से उनकी पार्टी सातवें स्थान पर है। बिहार की 243 सदस्यों वाली विधानसभा में उनके पास 45 सीटें हैं। बिहार विधानसभा में उनकी पार्टी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। सिर्फ एक राज्य की विधानसभा में तीसरी पार्टी और लोकसभा में सातवीं सबसे बड़ी पार्टी का नेता यह सपना देख सकता है कि वह 2024 के लोकसभा चुनाव में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदखल कर देगा?

अगर नीतीश ऐसा दावा करते हैं तो देश के मौजूदा राजनीतिक हालात में इसे दुस्साहस ही कहा जाएगा। उधर, क्षेत्रीय दल अपने राज्यों में जरूर मजबूत हैं। लेकिन वो दूसरे राज्यों में किसी और दल को भाजपा के मुकाबले जीतने में मदद करने की हैसियत में नहीं हैं।

भाजपा के पास लोकसभा की लगभग सभी सीटें हैं

गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली जैसे राज्यों में भाजपा के पास लोकसभा की लगभग सभी सीटें हैं। दिल्ली को छोड़कर इन सभी राज्यों में भाजपा का कांग्रेस के साथ सीधा मुकाबला है। सीधे मुकाबले में कांग्रेस भाजपा को हराने में सक्षम नहीं दिखती।

ऐसी सूरत में अपने राज्यों में भाजपा को हराने वाले क्षेत्रीय दल भला कांग्रेस का नेतृत्व क्यों स्वीकार करेंगे? इन्हीं तमाम अंतर्विरोधों की वजह से नीतीश का विपक्षी दलों की एकता का चेहरा बन पाना फिलहाल मुमकिन नहीं लगता है। विपक्ष में पार्टियों के अंतर्विरोध काफी हैं।

भाजपा को भी लगता है कि विपक्ष को एकजुट करने की चाहत भले सबकी हो, लेकिन असल में ये गठबंधन होने वाला है नहीं। ऐसे में नीतीश कुमार के उछल-कूद का परिणाम सभी अच्छीतरह से समझ रहे हैं। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ संयुक्त विपक्षी मोर्चा फिलहाल बहुत दूर की कौड़ी लगती है।

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