लोकसभा चुनाव : 2014 में मीरा कुमार को गंवानी पड़ी थी सासाराम सीट, क्या इस बार पिता जगजीवन राम के तर्ज पर रच पायेंगी इतिहास!

By एस पी सिन्हा | Published: March 10, 2019 06:35 PM2019-03-10T18:35:43+5:302019-03-10T18:35:43+5:30

सासाराम की लोकसभा सीट पर जगजीवन राम का वर्चस्व रहा चुका है, जिसके बाद ही मीरा कुमार ने अपने पिता की पैठ वाली सीट पर चुनाव लडा और वह इसमें सफल भी रहीं। जगजीवन राम को एक समय में प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी देखा जा चुका है। जगजीवन राम, सासाराम लोकसभा सीट से 8 बार सांसद चुने गए थे।

Lok Sabha elections: In 2014, Meera Kumar had to lose Sasaram seat, will this time create history on the lines of father Jagjivan Ram? | लोकसभा चुनाव : 2014 में मीरा कुमार को गंवानी पड़ी थी सासाराम सीट, क्या इस बार पिता जगजीवन राम के तर्ज पर रच पायेंगी इतिहास!

लोकसभा चुनाव : 2014 में मीरा कुमार को गंवानी पड़ी थी सासाराम सीट, क्या इस बार पिता जगजीवन राम के तर्ज पर रच पायेंगी इतिहास!

बिहार के सासाराम सुरक्षित क्षेत्र जगजीवन राम के जमाने से चर्चित रहा है। 2014 के चुनाव में उनकी पुत्री और लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार कांग्रेस के टिकट पर उम्मीदवार थीं। जबकि भाजपा ने जदयू से आये छेदी पासवान को अपना उम्मीदवार बनाया था। जीत छेदी पासवान को मिली। जबकि, जदयू ने आइएएस अधिकारी रहे केपी रमैया को अपना उम्मीदवार बनाया था। रमैया तीसरे स्थान पर रहे थे। लेकिन इस बार परिस्थितियां बदली हुई है। 

सासाराम की लोकसभा सीट पर जगजीवन राम का वर्चस्व रहा चुका है, जिसके बाद ही मीरा कुमार ने अपने पिता की पैठ वाली सीट पर चुनाव लडा और वह इसमें सफल भी रहीं। जगजीवन राम को एक समय में प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी देखा जा चुका है। जगजीवन राम, सासाराम लोकसभा सीट से 8 बार सांसद चुने गए थे।

लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव में सासाराम की निर्वाचन क्षेत्र पर बडा फेरबदल देखने को मिला। इस चुनाव में भाजपा नेता छेदी पासवान ने मीरा कुमार को हराकर बडा उलटफेर किया था। इस जीत के साथ ही वो तीसरी बार यहां से सांसद बनने में सफल हुए। हालांकि इससे पहले वह दो बार यहां से जनता दल के टिकट पर सांसद चुने गए थे।

सासाराम सुरक्षित संसदीय क्षेत्र है। कुल छह विधानसभा क्षेत्रों में तीन क्षेत्र कैमूर जिले के और तीन रोहतास जिले के हैं। इस संसदीय क्षेत्र में मोहनिया, भभुआ, चैनपुर, चेनारी, सासाराम और करगहर विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इनमें चेनारी और मोहनिया एससी सुरक्षित सीट हैं। सासाराम संसदीय क्षेत्र में पहले सासाराम, चेनारी, मोहनिया, भभुआ, रामगढ और चैनपुर विधानसभा क्षेत्र आते थे। बाद में परिसीमन हुआ और रामगढ विधानसभा क्षेत्र बक्सर में चला गया। परिसीमन में ही सासाराम से दिनारा, चेनारी और मोहनिया विधानसभा क्षेत्र काटकर अलग करगहर विधानसभा क्षेत्र बनाया गया। 

सासाराम संसदीय क्षेत्र में कुल 1607747 वोटर हैं। इनमें पुरुष वोटर 53।45 प्रतिशत और महिला 46।54 प्रतिशत हैं। सासाराम का सेक्स रेश्यो 871 है। इसबार जदयू एनडीए के साथ खडा है। मीरा कुमार की उम्मीदवारी पर कांग्रेस में कोई विवाद नहीं दिख रहा। कांग्रेस किसी एक सीट पर समझौता करेगी तो वह सासाराम ही होगा, कांग्रेस ऐसा मानती है।

वहीं, संभावना है कि इस बार सासाराम की सीट जदयू को मिल जाये। जदयू की मांग अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों में कम से कम दो सीटों की है। पर, जानकारों की राय में सासाराम की सीट जदयू को जायेगी। सासाराम बिहार राज्य का महत्वपूर्ण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है। यह क्षेत्र रोहतास जिले का हिस्सा है और यहीं पर मुख्यालय भी है।

अफगान शासक शेरशाह सूरी का मकबरा यहीं है। भारत-अफगान शैली में लाल बलुआ पत्थर से बना मकबरा झील के बीच में है शेरशाह द्वारा बनवाया गया देश का प्रसिद्ध ग्रांड ट्रंक रोड इसी शहर से होकर गुजरता है। यहीं पर एक पहाडी पर गुफा में अशोक का लघु शिलालेख संख्या एक को उकेरा गया है। इसी क्षेत्र में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र का निवास स्थान है। 

सासाराम लोकसभा सीट पर 1952 से लगातार पांच बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की। मगर आपातकाल के बाद हुए 1977 के चुनाव में जगजीवन राम ने जनता पार्टी के टिकट से सासाराम में जीत हासिल की। लेकिन 1980 के चुनाव में बाबू जगजीवन राम ने अपनी नयी पार्टी कांग्रेस (जगजीवन) पार्टी बना कर सासाराम सीट पर कब्जा किया था।

इसके बाद 1984 का चुनाव भी जगजीवन राम के नाम ही रहा। 1984 चुनाव के बाद सासाराम की राजनीति में जनता ने नया रुख अपनाया और 1989, 1991 में जनता दल और फिर 1996, 1998, 1999 में भाजपा को मौका दिया। 2004 में दोबारा कांग्रेस की जीत हुई। मीरा कुमार ने भाजपा के मुनि लाल को पराजित किया। 2009 के चुनाव में कांग्रेस की मीरा कुमार ने भाजपा प्रत्याशी को हराया।

लेकिन, साल 2014 में बाजी पलट गई और यहां कमल खिल गया और छेदी पासवान यहां के सांसद बन गये। छेदी पासवान कई बार पार्टी बदल चुक हैं। वे सांसद होने के साथ ही बिहार में विधायक भी रह चुके हैं। 1985 में पहली बार वे चेनारी से लोकदल के टिकट पर चुनाव लडे और विधायक बने।

1989 और 1991 में उन्होंने जनता दल के चुनाव चिन्ह पर किस्मत आजमाई और सांसद बने। हालांकि 1996 में भाजपा के मुनि लाल ने उन्हें हरा दिया। फिर साल 2000 में वे राजद के टिकट पर विधानसभा का चुनाव जीत गए। छेदी पासवान राबडी देवी और नीतीश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।

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