मृणाल कांति देबनाथ देश ही नहीं, विदेश में भी मशहूर डॉक्टर हैं। लेकिन 50 साल पहले उनके साथ कुछ ऐसा हुआ कि आज तक वोट नहीं डाला। हालांकि, इन लोकसभा चुनावों में वह भाजपा के उम्मीदवार हैं। मृणाल कांति देबनाथ 27 साल तक विदेश में रहे, लेकिन वह उस घटना को नहीं भूले जब वह धांधली की वजह से अपना पहला वोट नहीं डाल पाए। तब से उन्होंने एक बार भी वोट नहीं डाला।
इस बार वह बीजेपी उम्मीदवार भी हैं और पहली बार वोट भी डालेंगे। देबनाथ 27 साल विदेश में रहे, वहां मनोचिक्तिसक का काम किया। भारत लौटने के बाद देबनाथ आगामी लोकसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल की बारासात सीट से बतौर बीजेपी उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं।
उस घटना को नहीं भूल पाए
देबनाथ अपने साथ 50 वर्ष पहले हुई उस घटना को नहीं भूल पाए, जब वह अपने पिता के साथ अपने जीवन का पहला वोट डालने जा रहे थे, पर उन्हें वोट नहीं डालने दिया गया। पोलिंग बूथ पर जाकर उन्हें पता चला कि उनकी जगह कोई और वोट डाल गया।
'भारत छोडऩे तक कोई वोट नहीं डाला
देबनाथ को इससे बहुत निराशा हुई। वह कहते हैं, 'इस घटना से मैं बहुत आहत हुआ और मैंने 1981 में भारत छोडऩे तक कोई वोट नहीं डाला। बहरहाल, अब देबनाथ बारासात से तृणमूल कांग्रेस के एमपी काकोली घोष दस्तीदार के मुकाबले चुनावी मैदान में हैं। यहीं से ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के हरिपद बिस्वास और कांग्रेस के सुब्रत दत्ता भी चुनाव लड़ रहे हैं।
जीवन का नया अध्याय
68 साल की उम्र में देबनाथ अपने जीवन का नया अध्याय शुरू कर रहे हैं। वह पश्चिम बंगाल में एनआरसी का विरोध करने के लिए तृणमूल की आलोचना करते हैं। देबनाथ का मानना है कि एनआरसी देश की सुरक्षा के लिए और घुसपैठियों की पहचान करने के लिए बहुत जरूरी है। देबनाथ को अपनी जीत का पूरा भरोसा है। बारासात में 19 मई को वोट होना है