लोकसभा चुनावः बैंसला, बेनीवाल के दम पर जातिगत समीकरण साधेगी बीजेपी! लेकिन, ब्राह्मण और राजपूत नेता किसके साथ रहेंगे?

By प्रदीप द्विवेदी | Published: April 12, 2019 05:55 PM2019-04-12T17:55:02+5:302019-04-12T17:55:02+5:30

लोकसभा चुनाव 2019: उत्तरी राजस्थान में किरोड़ीलाल मीणा (अभी बीजेपी) का असर रहा है, तो दक्षिण राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में महेन्द्रजीत सिंह मालवीया (कांग्रेस) विशेष प्रभाव रखते हैं.

Lok Sabha elections: Bansla, Beniwal's own caste equation simplified BJP! But, with whom will the Brahmins and Rajput leaders live? | लोकसभा चुनावः बैंसला, बेनीवाल के दम पर जातिगत समीकरण साधेगी बीजेपी! लेकिन, ब्राह्मण और राजपूत नेता किसके साथ रहेंगे?

देश के 22 राज्यों में राजपूतों की संख्या करीब 60 लाख है, जो चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.

Highlightsबीजेपी-कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है.  ब्राह्मण समाज में राजस्थान ब्राह्मण महासभा के प्रदेशाध्यक्ष भंवरलाल शर्मा , घनश्याम तिवाड़ी और एसडी शर्मा का प्रदेश में खास प्रभाव है.

लोकसभा चुनाव में भी जातिवाद जीत का प्रमुख आधार है और यही वजह है कि तमाम सियासी दलों ने जातिवादी समीकरण के सापेक्ष टिकट वितरण में दिलचस्पी दिखाई है. जातिवादी गणित में कमजोर पड़ रही भाजपा ने किरोड़ी लाल मीणा को तो विस चुनाव से पहले ही साथ ले लिया था, अब बैंसला को साथ लेकर गुर्जर वोटों पर नजर रहेगी, तो बेनीवाल के सहयोग से जाट वोटरों को बीजेपी से जोड़ा जाएगा. 

हालांकि, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इनका सहयोग वहीं काम आएगा, जहां इन नेताओं का प्रभाव क्षेत्र है और जहां बीजेपी-कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है. विभिन्न जातियों के प्रभावी नेताओं के तौर पर प्रदेश के कुछ नेताओं की खास पहचान है, हालांकि इनमें से कुछ नेता कभी बीजेपी के साथ रहे तो कभी किसी और दल के साथ. चुनावी नतीजों का इतिहास बताता  बताते है कि इन नेताओं को व्यक्तिगत तौर पर भले ही अपने समाज का साथ मिला हो, किन्तु सियासी बदलाव के तौर पर कोई बहुत बड़ी सफलता नहीं मिली है. 

जहां उत्तरी राजस्थान में किरोड़ीलाल मीणा (अभी बीजेपी) का असर रहा है, तो दक्षिण राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में महेन्द्रजीत सिंह मालवीया (कांग्रेस) विशेष प्रभाव रखते हैं. ब्राह्मण समाज में राजस्थान ब्राह्मण महासभा के प्रदेशाध्यक्ष भंवरलाल शर्मा (कांग्रेस), घनश्याम तिवाड़ी (पहले बीजेपी, अब कांग्रेस) और एसडी शर्मा (बीजेपी) का प्रदेश में खास प्रभाव है.

राजपूत समाज में करणी सेना का बड़ा नाम है. करणी सेना के संस्थापक ठाकुर लोकेन्द्र सिंह कालवी का कहना था कि- उनकी संस्था कोई राजनीतिक दल नहीं है और ना ही संस्था लोकसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी खड़ा करेगी. अगर उनका कोई पदाधिकारी किसी दल से चुनाव लड़ना चाहता है, तो उसे करणी सेना से त्यागपत्र देना होगा. 

कालवी का कहना था कि देश के 22 राज्यों में राजपूतों की संख्या करीब 60 लाख है, जो चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. उधर, श्री राजपूत राष्ट्रीय करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी का कहना है कि- मौजूदा लोकसभा चुनाव में करणी सेना न तो बीजेपी के साथ है और न ही कांग्रेस के साथ हैं.

पद्मावती फिल्म के अलावा आनंदपाल जैसे मुद्दों पर हमने बीजेपी का विरोध किया था, लेकिन बीजेपी ने हमारी आर्थिक आरक्षण जैसी बड़ी मांग मान ली थी, जिसकी वजह से राजपूतों का बीजेपी से गुस्सा कम तो हुआ था, लेकिन जिस तरह से लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राजपूतों के साथ छल किया है, उसे देखते हुए हमने राजपूत उम्मीदवारों को समर्थन देने और बाकी की सीट पर इस बार घर बैठने का फैसला किया है. देखना दिलचस्प होगा कि ये नेता अपने-अपने दलों को अपने-अपने समाजों का कितना लाभ दिला पाते हैं?

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