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Lok Sabha Elections 2024: आरा में आरके सिंह ने पहली बार खिलाया कमल, कभी जदयू-राजद का रहा दबदबा, जानिए कैसे आरा बनी हॉट सीट

By एस पी सिन्हा | Updated: March 3, 2024 12:06 IST

आरा का संबंध महाभारत काल से है। कहा जाता है कि पांडवों ने भी अपना गुप्तवास काल यहां पर बिताया था। इसके अलावा यह भूमि 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी बाबू कुंवर सिंह की कार्यस्थली भी है।

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पटना: लोकसभा चुनाव की बिगुल बजने से पहले ही सियासी सरगर्मी हर जगह बढ गई है। इसी कड़ी में बिहार के आरा लोकसभा सीट पर चुनावी गणित सेट किए जाने लगे हैं। आरा से भाजपा के राजकुमार सिंह(आरके सिंह) सांसद और केन्द्र में मंत्री भी हैं। उन्होंने साल 2014 के चुनाव में यहां राजद के दिग्गज नेता श्रीभगवान सिंह कुशवाहा को हराया था। संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की सात सीटें आती हैं। कभी आरा लोकसभा क्षेत्र में पटना जिले का मनेर एवं बिक्रम-पालीगंज विधानसभा भी आता था। नए परिसीमन में मनेर विधानसभा को आरा से अलग कर पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र में जोड़ दिया गया।

आरा लोकसभा सीट का इतिहास 

आरा लोकसभा का इतिहास वर्ष 1952 से शुरू होता है, तब इसकी पहचान शाहाबाद लोकसभा क्षेत्र के नाम से थी। अविभाजित शाहाबाद में वर्तमान के चार जिले भोजपुर (आरा), बक्सर, रोहतास (सासाराम) व कैमूर थे। इनमें शाहाबाद का आरा क्षेत्र वर्ष 1972 तक सासाराम में हुआ करता था। बाद में बक्सर में मिला दिया गया। वर्ष 1971 में पांचवीं लोकसभा का चुनाव हुआ था। 71 के चुनाव में बलिराम भगत शाहाबाद से सांसद चुने गए। वे 15 मार्च 1971 से 18 जनवरी 1977 तक सांसद थे।

आरा लोकसभा क्षेत्र वर्ष 1977 में अस्तित्व में आया। 1977 में बलिराम भगत चुनाव हारे और जनता पार्टी के चंद्रदेव प्रसाद वर्मा पहली बार गठित आरा संसदीय क्षेत्र से चुने गए। साल 2014 के चुनाव में इस सीट पर नंबर दो पर राजद, नंबर तीन पर भाकपा-माले और चौथे नंबर पर जदयू रही थी। आरा सीट से भाजपा के आरके सिंह ने पहली बार 2014 में कमल खिलाया था। धमाकेदार जीत के स्वरूप उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में भी जगह मिली। 2019 में भी आरके सिंह ही विजयी हुए थे। उन्होंने भाकपा- माले के राजू यादव को शिकस्त दी थी। इसी के साथ आरा सीट से तकरीबन 35 साल बाद कोई प्रत्याशी लगातार दूसरी बार लोकसभा पहुंचा था।

इससे पहले 1984 के बाद से यहां की जनता हर पांच साल बाद अपना प्रतिनिधि बदल देती थी। वर्ष 1952 से 2019 तक 17 लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की पहली पसंद बाहरी जिले या राज्यों के प्रत्याशी रहे हैं। इनमें 14 बार बाहरी जिलों के प्रत्याशियों आरा सीट को जीता और यहां किला उखाड़ते रहे। स्थानीय प्रत्याशी महज दो बार लोकसभा चुनाव में आरा का किला बचा सके।

आरा लोकसभा क्षेत्र से 1998 में हरिद्वार प्रसाद सिंह (समता पार्टी) और 2004 में जदयू की मीना सिंह ही सांसद पद जीतकर किला बचा सके। मतलब साफ है कि राजनीतिक दलों की तरह आरा संसदीय क्षेत्र की जनता ने भी स्थानीय की बनिस्पत बाहरी प्रत्याशियों को तवज्जो देकर अधिकतर बार विजयश्री का माला पहनाया। जीतने वाले अधिकांश उम्मीदवार पटना जिले के रहे। दूसरे नंबर पर रोहतास जिला और तीसरे नंबर पर भोजपुर जिला रहा। फिलवक्त, सुपौल जिले के मूल निवासी आरके सिंह आरा सीट से भाजपा सांसद हैं। दिलचस्प बात यह भी कि उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के निवासी और धनबाद कोयलांचल के प्रसिद्ध माफिया सूर्यदेव सिंह ने वर्ष 1991 में राम लखन सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा, पर हार गए।

वर्ष 2009 में जदयू प्रत्याशी मीना सिंह के खिलाफ चुनाव हारने वाले लोजपा के रामा किशोर सिंह हाजीपुर जिले के निवासी हैं। यहां पर कुल मतदाताओं की संख्या 18,32,332 है, जिसमें से केवल 8,93,213 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया था, जिसमें पुरुषों की संख्या 5,16,366 और महिलाओं की संख्या 3,76,847 थी। आरा की 83.26 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की और 15.79 फीसदी आबादी अल्पसंख्यकों की है।

बता दें कि आरा का संबंध महाभारत काल से है। कहा जाता है कि पांडवों ने भी अपना गुप्तवास काल यहां पर बिताया था। इसके अलावा यह भूमि 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी बाबू कुंवर सिंह की कार्यस्थली भी है। शुरू में इस सीट पहचान शाहाबाद लोकसभा क्षेत्र के नाम से थी। 1991 से पहले आरा में बक्सर और आरा संसदीय क्षेत्र आते थे। आरा का वर्तमान चुनावी क्षेत्र भोजपुर जिले की परिधि में सिमट गया है।

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