Lok Sabha Elections 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, "न मुझे किसी ने भेजा है, न मैं आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है", जानिए वाराणसी सीट का इतिहास

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 2, 2024 11:56 AM2024-04-02T11:56:00+5:302024-04-02T12:00:54+5:30

मौजूदा वक्त में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काशी के सियासी अखाड़े से निकले वो पहलवान हैं, जो बीते लगभग एक दशकों से अपने विरोधियों को चित कर रहे हैं।

Lok Sabha Elections 2024: Prime Minister Narendra Modi had said, "Neither has anyone sent me, nor have I come, Mother Ganga has called me", know the history of Varanasi seat | Lok Sabha Elections 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, "न मुझे किसी ने भेजा है, न मैं आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है", जानिए वाराणसी सीट का इतिहास

फाइल फोटो

Highlightsनरेंद्र मोदी काशी के सियासी अखाड़े से निकले वो पहलवान हैं, अपने विरोधियों को चित कर रहे हैंप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव वाराणसी से लड़ा था16 लोकसभा चुनावों में वाराणसी की सीट पर सात बार कांग्रेस और छह बार भाजपा ने बाजी मारी है

नई दिल्ली: काशी, गंगा किनारे अपने घाटों और मंदिरों के पूरे विश्व में मशहूर वो शहर है, जिसे हम बनारस के नाम से भी पुकारते हैं। हिंदू धर्म के विभिन्न ग्रंथों में काशी को आनंदवन, अविमुक्त क्षेत्र , आनंद कानन भी कहा गया है लेकिन इस शहर का आधिकारिक नाम वाराणसी है।

वाराणसी यानी काशी का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद से मिलता है और फ़िर भारतीय इतिहास के हर दौर में वाराणसी की अमीट छाप मौजूद रही। यह न केवल शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता और व्यापार का केंद्र है बल्कि इसे बनारसी बोली में 'राजनीति का अखाड़ा' भी कहा जाता है।

मौजूदा वक्त में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काशी के सियासी अखाड़े से निकले वो पहलवान हैं, जो बीते लगभग एक दशकों से अपने विरोधियों को चित कर रहे हैं। साल 2014 में पहली बार वाराणसी संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव जीतने वाले नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में नॉमिनेशन फाइल किया था। उस वक्त उन्होंने कहा था, "न मुझे किसी ने भेजा है, न मैं आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है।"

आज हम उसी काशी यानी वाराणसी संसदीय सीट के इतिहास को परख रहे हैं। वाराणसी अब तक 16 लोकसभा चुनावों का गवाह रहा है। जिसमें इस सीट पर सात बार कांग्रेस और छह बार भाजपा ने बाजी मारी है। वहीं उत्तर प्रदेश की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक बार भी वाराणसी से अपना सांसद दिल्ली नहीं भेज पायी है।

कांग्रेस और भाजपा के अलावा वाराणसी से एक बार जनता दल और सीपीएम उम्मीदवार को भी जीत नसीब हुई है। वहीं भारतीय लोकदल ने भी इस सीट पर एक बार जीत हासिल की है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार वाराणसी में वाराणसी लोकसभा सीट पर 18.54 लाख वोटर मतदान करते हैं। जिनमें 10.27 लाख पुरुष और 8.29 लाख महिला वोटर्स हैं।

वाराणसी लोकसभा सीट पर ब्राह्मण, भूमिहार, वैश्य, कुर्मी मतदाताओं की संख्या ज्यादा है लेकिन साथ में मुस्लिम मतदाताओं का भी इस सीट पर खासा प्रभाव है। एक अनुमान के मुताबिक वाराणसी में 3 लाख ब्राह्मण और 3 लाख मुस्लिम वोटर्स हैं। इसके अलावा 3 लाख गैर-यादव ओबीसी वोटर हैं। जबकि 2 लाख से ज्यादा कुर्मी मतदाता हैं। इस सीट पर 2 लाख वैश्य वोटर के अलावा डेढ़ लाख भूमिहार वोट हैं। इस सीट पर एक लाख यादव और एक लाख अनुसूचित जातियों के मतदाता भी हैं।

जब वाराणसी के सियासी इतिहास को खंगालते हैं तो हमें पता चलता है कि देश के पहले आम चुनाव 1951-52 में वाराणसी एक नहीं बल्कि तीन लोकसभा सीटों में बंटी थी। ये सीटें बनारस मध्य, बनारस पूर्व और बनारस-मिर्जापुर सी। साल 1952 आम चुनाव में वाराणसी से पहले सांसद चुने गये थे कांग्रेस के रघुनाथ सिंह।

रघुनाथ सिंह ने वाराणसी से जीत का सिलसिला साल 1957 और साल 1962 के आम चुनाव में भी जारी रखा लेकिन कांग्रेस को पहली बार वाराणसी सीट पर तब झटका लगा, जब कांग्रेस नेता रघुनाथ सिंह साल 1967 में सीपीएम के सत्य नारायण सिंह से चुनाव हार गये। लेकिन साल 1971 में कांग्रेस ने काशी में अपनी किलेबंदी को फिर से मजबूत किया और राजाराम शास्त्री वहां से सांसद बने।

साल 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में इस सीट से जनता दल के उम्मीदवार चंद्रशेखर ने जीत हासिल की थी। 1980 आम चुनाव में एक बार फिर यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई औऱ इस सीट से कमलापति त्रिपाठी ने जीत हासिल की लेकिन 1984 में कांग्रेस ने कमलापति को टिकट नहीं दिया और उनकी जगह आये श्यामलाल यादव ने जीत दर्ज करके कांग्रेस के गढ़ को बरकरार रखा।

हालांकि काशी में कांग्रेस की शाम ढलने लगी थी और साल 1989 में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री ने जनता दल के टिकट पर श्यामलाल यादव को हराकर कांग्रेस के लिए काशी की सीट बहुत दूर कर दी।

साल 1991 में राम मंदिर की लहर में यूपी के पूर्व पुलिस महानिदेश रहे शिरीष चंद्र दीक्षित ने पहली बार वाराणसी में भगवा लहराया था। उसके बाद लगातार तीन चुनाव साल 1996, 1998 और 1999 में बीजेपी के शंकर प्रसाद जायसवाल ने भाजपा की दावेदारी को बरकरार रखा।

हालांकि साल 2004 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे राजेश मिश्रा ने कांग्रेस के टिकट पर शंकर प्रसाद जायसवाल को हरा दिया। लेकिन उस जीत के बावजूद कांग्रेस अपने पुराने गढ़ को संभाल नहीं सकी और साल 2009 में बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी ने जीतकर भाजपा की जोरदार वापसी कराई। उसके बाद से अब तक यह सीट भाजपा की झोली में है।

Web Title: Lok Sabha Elections 2024: Prime Minister Narendra Modi had said, "Neither has anyone sent me, nor have I come, Mother Ganga has called me", know the history of Varanasi seat

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