लोकसभा चुनाव 2019ः शहरों में कोई मोदी लहर नहीं! 86 जगहों के वोटिंग पैटर्न का विश्लेषण
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: May 19, 2019 07:39 IST2019-05-19T07:39:08+5:302019-05-19T07:39:08+5:30
12 मई तक मतदान की प्रक्रिया से गुजर चुके 86 शहरी लोकसभा सीटों ने भाजपा के प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में 'अंडरकरंट' के दावे पर सवालिया निशान लगा दिए हैं. लोकमत टीम ने इन 86 सीटों के वर्ष 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण किया तो चौंकाने वाले परिणाम सामने आए.

नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
हरीश गुप्ता/नितीन अग्रवाल
12 मई तक मतदान की प्रक्रिया से गुजर चुके 86 शहरी लोकसभा सीटों ने भाजपा के प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में 'अंडरकरंट' के दावे पर सवालिया निशान लगा दिए हैं. 2014 में इन 86 सीटों में से 55 भाजपा के खाते में गई थीं. कुछ निर्वाचन क्षेत्रों को छोड़कर पिछले लोकसभा चुनावों में इन सभी 86 सीटों पर मोदी सुनामी देखने को मिली थी. वर्ष 2019 आते ही सारा नजारा बदला हुआ दिख रहा है. लोकमत टीम ने इन 86 सीटों के वर्ष 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण किया तो चौंकाने वाले परिणाम सामने आए.
इन तमाम शहरी इलाकों में भारी मतदान की बजाय 48 लोकसभा सीटों पर कम से लेकर बहुत कम मतदान हुआ. हालांकि 38 सीटों पर 2014 की तुलना में ज्यादा मतदान हुआ. भाजपा के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए कि 2014 में 86 शहरी सीटों में से जिन 55 सीटों पर उसका कब्जा था, उसमें से 28 सीट उसके हाथ से फिसलती दिख रही हैं. इसमें राजधानी दिल्ली की सात में से छह सीटें शामिल हैं.
मोदी और शाह की रैलियों के बावजूद नई दिल्ली सीट पर पिछली बार की तुलना में 8.26 प्रतिशत कम मतदान हुआ. यहां हुआ कम मतदान महाराष्ट्र में नागपुर, पुणे, मोदी के गुजरात में वड़ोदरा, अहमदाबाद पूर्व, अहमदाबाद पश्चिम और राजकोट, कर्नाटक में बेंगलुरू उत्तर और बेंगलुरू मध्य, झारखंड के धनबाद (जहां कीर्ति आजाद भाजपा के खिलाफ मैदान में हैं), उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों (सहारनपुर, बरेली, अलाहाबाद, गाजियाबाद, झांसी, कानपुर आदि) में कम मतदान हुआ.
चौंकाने वाली बात यह है कि इन्हीं शहरों में 2009 के चुनावों की तुलना में 2014 में बंपर वोटिंग हुई थी. कम मतदान से जाहिर है कि नोटबंदी, जीएसटी के खामियों से भरे क्रियान्वयन का शहरी इलाकों में भारी नकारात्मक असर हुआ है. चुनावी विश्लेषक कम मतदान के परिणामों को लेकर कयास लगा सकते हैं, लेकिन एक बात तो सभी मानेंगे कि इसे किसी उम्मीदवार या नेता के लिए सकारात्मक वोट नहीं कहा जा सकता. सकारात्मक वोटिंग उपरोक्त 55 सीटों में से 27 में मतदान में हल्का इजाफा सकारात्मक वोटिंग के तौर पर देखा जा सकता है.
चौंकाने वाली बात यह रही कि मुंबई मेट्रो की छह सीटों पर 2014 के भारी मतदान से भी ज्यादा मतदान इस बार हुआ है. शायद यह इकलौता महानगर है जहां पर भाजपा की तीनों सीटों ने अन्य महानगरों की तुलना में अलग ट्रेंड दिखाया. मुंबई की शिवसेना के कब्जे की चार अन्य सीटों पर भी भारी मतदान देखने को मिला. चौंकाने वाली बात यह बात चौंकाने वाली बात है कि मुंबईकरों ने आखिरकार क्योंकर अन्य महानगरों दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरू या चेन्नई के विपरीत ज्यादा उत्साह से मतदान किया.
राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी शहरी इलाकों में मतदाताओं में ज्यादा उत्साह देखने को मिला. भोपाल में 2014 में जहां 2009 की तुलना में 13 प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ था तो अब 2014 से भी 8 प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ है. इसे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (कांग्रेस) के लिए पराजय और प्रज्ञा सिंह ठाकुर (भाजपा) के लिए जीत का संकेत माना जा रहा है.