Lok Sabha Elections 2019 Results: लोकसभा चुनाव के नतीजों के शुरुआती रुझानों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) बहुमत के आंकड़े से काफी आगे चल रहा है लेकिन दक्षिण भारत के रूझानों से पता चल रहा है कि यहां मोदी मैजिक नहीं फिर नहीं चला है। कर्नाटक को छोड़ दें तो बाकी चार राज्यों केरल, तेलंगाना, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में बीजेपी की हालत खस्ता दिखाई दे रही है। चौंकाने वाली स्थिति केरल की है जहां इस बार लग रहा था कि सबरीमाला मंदिर विवाद में कूदी बीजेपी हिंदू वोटरों की गोलबंदी कर राज्य में कुछ एक सीटें निकाल लेगी लेकिन ऐसा होता नहीं दिखाई दे रहा है।
केरल में लोकसभा चुनाव की कुल 20 सीटें हैं। शुरुआती रुझानों के मुताबिक कांग्रेस की अगुवाई वाला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट 18 सीटों पर आगे चल रहा है। कांग्रेस अकेले दम पर 15 सीटों पर आगे है और वायनाड में राहुल गांधी अपने प्रतिद्वंदियों से करीब एक लाख से ज्यादा वोटों से आगे चल रहे हैं। हालांकि, अमेठी में इस बार वह बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी से पीछे चल रहे हैं।
बता दें कि 2018 में केरल के सबरीमाला मंदिर विवाद की तपिश देश भर ने महसूस की थी। बीजेपी इस मामले में मंदिर प्रबंधन के समर्थन में कूदी थी। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने सभी आयुवर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी थी जिसका मंदिर प्रशासन विरोध कर रहा था। मजे की बात यह है कि कांग्रेस ने भी मंदिर प्रबंधन का ही साथ दिया था। बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में भी सबरीमाला मंदिर को जगह दी थी।
राजनीतिक पंडितों ने कहा था कि सबरीमाला मंदिर विवाद के जरिये बीजेपी केरल में दक्षिणपंथी विचारधारा को बल देकर और हिंदुओं को एकजुट कर अपना वोट बैंक तैयार करने की कोशिश कर रही है।
ऐसी उम्मीद जताई जा रही थी कि बीजेपी राज्य में अपनी सियासी जमीन तैयार करने में सफल होगी लेकिन राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने के एलान के साथ ही सूबे की सत्ता के समीकरणों ने करवट बदल ली थी। जानकारों ने वजह बताई कि राहुल गांधी राष्ट्रीय पार्टी के उदारवादी नेता हैं, क्षेत्रीय अस्मिता की बात करते हैं, स्थानीय संस्कृति और मूल्यों को बचाए रखने में योगदान दे सकते हैं और अकेले दम पर मोदी सरकार से लोहा ले रहे हैं। केरल की जनता को ऐसा नेता पसंद आएगा।
राहुल गांधी के वायनाड से लड़ने पर सबसे ज्यादा नुकसान सीपीएम समर्थित एलडीएफ को हुआ है। एलडीएफ उम्मीद कर रहा था कि कांग्रेस के भी सबरीमाला विवाद में कूदने पर अल्पसंख्यक वोट उसकी ओर खिचेगा लेकिन राहुल गांधी के चुनावी मैदान में उतरने पर ऐसा नहीं हो सका। राहुल ने वायनाड से उम्मीदवारी कर एक साथ कई तीर मार लिए। इसमें राज्य में मोदी मैजिक को न चलने देना भी शामिल है।