लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में यूपी की 8 सीटों पर होगा मतदान, हेमा मालिनी, राज बब्बर जैसे दिग्गजों की साख दाँव पर
By सतीश कुमार सिंह | Published: April 17, 2019 02:47 PM2019-04-17T14:47:59+5:302019-04-17T17:09:14+5:30
लोकसभा चुनावः 2014 में इन 8 सीटों पर भाजपा का कब्जा था। इस बार समीकरण कुछ अलग है। बड़े नेताओं पर अपना गढ़ बचाने की चुनौती रहेगी। दूसरे चरण में नगीना, अमरोहा, अलीगढ़, बुलंदशहर, हाथरस, मथुरा, आगरा और फतेहपुर सीकरी मुख्य सीटें हैं।
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लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में यूपी की 8 सीटों पर होगा मतदान, हेमा मालिनी, राज बब्बर जैसे दिग्गजों की साख दाँव पर
लोकसभा चुनाव 2019 में दूसरे चरण के लिए गुरुवार को 12 राज्यों की 95 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। उत्तर प्रदेश की आठ सीटों का सियासी माहौल पूरे शबाब पर है। पार्टी प्रमुखों और स्टार प्रचारकों ने तूफानी दौरों में एक-दूसरे पर सियासी तीर चलाकर अपने-अपने निशाने साधने की कोशिश की। 2014 में इन 8 सीटों पर भाजपा का कब्जा था। इस बार समीकरण कुछ अलग है। बड़े नेताओं पर अपना गढ़ बचाने की चुनौती रहेगी। दूसरे चरण में नगीना, अमरोहा, अलीगढ़, बुलंदशहर, हाथरस, मथुरा, आगरा और फतेहपुर सीकरी मुख्य सीटें हैं।
मथुरा
मथुरा को भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है और यहां से पिछले 5 सालों में हेमा मालिनी एक बड़ा नाम बन कर उभरी हैं। एक बार फिर वह मैदान में है। हेमा के खिलाफ स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा उठाया जा रहा है। उनके खिलाफ महागठबंधन के खाते से रालोद के टिकट पर कुंवर नरेन्द्र सिंह और कांग्रेस ने महेश पाठक को उतारा है। मथुरा की हाईप्रोफाइल सीट पर भी मुकाबला बीजेपी बनाम गठबंधन ही दिख रहा है।
अलीगढ़
इस सीट को भाजपा के सीनियर लीडर और अब राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह का गढ़ माना जाता है। कल्याण सिंह लोध वोटर्स के बड़े नेता माने जाते हैं। कल्याण सिंह से मनमुटाव के बाद अब वर्तमान सांसद और भाजपा कैंडिडेट सतीश गौतम उन्हें मानाने में कामयाब हो गए हैं। एएमयू को लेकर भाजपा सांसद पिछले एक साल से मीडिया की सुर्खियों में छाए रहे हैं। एसपी-बीएसपी गठबंधन ने यहां जातीय गणित साधने की कोशिश में अजीत बालियान को मैदान में उतारा है, लेकिन कांग्रेस ने पूर्व सांसद विजेन्द्र सिंह को टिकट देकर जाट वोट बैंक का गणित बिगाड़ दिया हैं।
फतेहपुर सीकरी
2009 में लोकसभा बनने के बाद से ही फतेहपुर सीकरी चर्चा में है। 2009 में जहां राज बब्बर यहां ग्लैमर लेकर आए थे, वहीं 2014 में अमर सिंह, लेकिन यहां के लोगों ने दोनों बार ग्लैमर को नकार दिया। इस बार बीजेपी ने जहां अपने सिटिंग सासंद बाबू लाल का टिकट काटकर राजकुमार चाहर को मैदान में उतारा है। राजबब्बर कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से एक बार फिर किस्मत आजमा रहे हैं, यानि मुकाबला हाईवोल्टेज होने से साथ-साथ त्रिकोणीय दिख रहा है। गठबंधन से बसपा के टिकट पर भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित हैं।।
आगरा
आगरा की लड़ाई भी इस बार रोचक होती जा रही है। बीजेपी ने इस बार आगरा के कद्दावर बीजेपी नेता और एससी-एसटी कमिशन के अध्यक्ष रमाशंकर कठेरिया को इटावा भेजकर राज्य सरकार में मंत्री एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने प्रीता हरित को मैदान में उतारा है। गठबंधन की ओर से बीएसपी उम्मीदवार मनोज कुमार सोनी उम्मीदवार हैं।
नगीना
वेस्ट यूपी की नगीना सुरक्षित सीट पर इस बार त्रिकोणीय संघर्ष है। 2014 में मुस्लिम मतों के बिखराव और मोदी लहर के चलते भाजपा ने यह सीट जीती थी, लेकिन इस बार आपसी अंतर्कलह भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। सबसे ज्यादा 6 लाख मुस्लिम वोट बैंक वाले इस सीट पर चुनावी हार-जीत मुस्लिम मतों के मतदान के प्रतिशत और उनके बिखराव से तय होगा। बीजेपी ने इस बार वर्तमान सांसद यशवंत पर ही दांव लगाया है, लेकिन पार्टी से बगावत कर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं ओमवती ने बीजेपी की राह मुश्किल कर दी हैं। गठबंधन उम्मीदवार गिरीश चन्द्र अल्पसंख्यक वोट बैंक पर सबसे ज्यादा भरोसा कर रहे हैं और उनकी कोशिश इस वोट बैंक को बिखरने से रोकने की है।
हाथरस
हाथरस लोकसभा सीट 1991 के बाद से बीजेपी परंपरागत सीट रही है। 2009 के लोकसभा चुनावों को छोड़ दे तो बीजीपी यहां से कभी नहीं हारी। बीजेपी ने सांसद राजेश कुमार दिवाकर का टिकट काटकर राजवीर सिंह दिलेर को मैदान में उतारा है। एसपी-बीएसपी गठबंधन से एसपी के दिग्गज नेता रामजी लाल सुमन मैदान में हैं। कांग्रेस ने यहां त्रिलोकी राम दिवाकर को मैदान में उतार रखा है। बात करें चुनावी समीकरण की तो यहां भी लड़ाई बीजेपी बनाम गठबंधन दिख रही है।
बुलंदशहर
बुलंदशहर पर भी मुकाबला आमने-सामने का दिख रहा है। इस सीट पर मुख्य मुकाबला बीजेपी उम्मीदवार और सांसद भोला सिंह बनाम बीएसपी उम्मीदवार योगेश वर्मा के बीच दिख रहा है। लगातार कोशिश के बाद भी कांग्रेस उम्मीदवार वंशी लाल पहाड़िया लड़ाई को त्रिकोणात्मक नहीं बना पा रहे हैं। ऐसे में कल्याण सिंह के प्रचार में न आने और मुकाबला आमने-सामने होने का फायदा गठबंधन को होता दिख रहा है।
अमरोहा
गाजियाबाद से सटी अमरोहा सीट पर मुकाबला आमने-सामने का दिख रहा है। कांग्रेस के कद्दावर नेता राशिद अल्वी के बैक-फायर ने गठबंधन उम्मीदवार कुंवर दानिश अली की राह आसान कर दी है। कांग्रेस उम्मीदवार सचिन चौधरी राजनीतिक गणित पर प्रभाव नहीं डाल पा रहे हैं।