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'पटना साहिब' का कौन बनेगा 'साहेब'? शत्रुघ्न सिन्हा के लिए इस बार का रास्ता माना जा रहा है मुश्किल 

By एस पी सिन्हा | Updated: April 28, 2019 15:25 IST

पटना साहिब लोकसभा सीट: रविशंकर प्रसाद 1995 से भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं. छात्र जीवन से ही एबीवीपी और संघ से जुड़ने वाले रविशंकर प्रसाद पार्टी में कई दशक से सक्रिय हैं.

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ठळक मुद्दे2008 में हुए परिसीमन के बाद यह सीट अस्तित्व में आई थी. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने शत्रुघ्न सिन्हा को इस सीट पर प्रत्याशी बनाकर भेजा था. 2008 में पटना साहिब संसदीय सीट गठन के बाद यह पहला मौका है, जब पटना साहिब की लड़ाई फिल्मी वार से निकली है. राज्य की राजधानी होने के नाते इस सीट पर हमेशा सबकी निगाहें लगी रहती हैं. इस बार के चुनाव में दो बार के विजेता शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं.

बिहार की राजधानी पटना के 'पटना साहिब' लोकसभा सीट का 'साहेब' कौन बनेगा? इसको लेकर चर्चाएं तेज है. इस सीट पर लगातार दो बार भाजपा के टिकट पर सांसद बन अब बागी हो चुके बॉलीवुड अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा का मुकाबला केंद्रीय मंत्री सह राज्यसभा सांसद रविशंकर प्रसाद से है. रविशंकर प्रसाद एनडीए कोटे से भाजपा के टिकट पर, जबकि शत्रुघ्न कांग्रेस के टिकट पर गठबंधन के बैनर तले लड़ रहे हैं. लेकिन पिछले दो चुनावों में बतौर भाजपा उम्मीदवार काफी बड़े अंतर से जीत हासिल करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा के लिए इस बार का रास्ता बहुत मुश्किल होगा. 

यहां बता दें 2008 में हुए परिसीमन के बाद यह सीट अस्तित्व में आई थी. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने शत्रुघ्न सिन्हा को इस सीट पर प्रत्याशी बनाकर भेजा था. शत्रुघ्न दोनों ही बार यहां से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. शत्रुघ्न सिन्हा के सामने चुनाव लड़ रहे केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. 

इससे पहले वो लगातार तीन बार से राज्यसभा के सांसद हैं. रविशंकर प्रसाद 1995 से भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं. छात्र जीवन से ही एबीवीपी और संघ से जुड़ने वाले रविशंकर प्रसाद पार्टी में कई दशक से सक्रिय हैं. अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में भी वो मंत्रिपद संभाल चुके हैं. इस सीट पर जातीय समीकरण के आधार पर कायस्थों का दबदबा है. 

यही कारण है कि पटना साहिब संसदीय सीट कायस्थों का गढ़ कही जाती है. इनको भाजपा का वोट बैंक भी माना जाता है. इस क्षेत्र के दीघा, बांकीपुर, कुम्हरार व पटना साहिब में बड़ी संख्या में कायस्थ मतदाता हैं. कायस्थों के बाद यादव और राजपूत मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है. लेकिन इस बार चुनाव मैदान में दोनों ही तरफ बड़े कायस्थ चेहरे खड़े होने की वजह से वोट बंटने के कयास लगाए जा रहे हैं. 

वैसे, बांकीपुर व कुम्हरार से भाजपा विधायक भी कायस्थ हैं. ऐसे में शत्रुध्न सिन्हा अपनी छवि की बदौलत उनको कितना तोड़ पायेंगे, यह देखने वाले बात होगी. पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार कुल मतदाताओं की संख्या दो लाख बढ़ कर करीब 21 लाख हो गई है. इनमें कायस्थ करीब चार लाख से अधिक बताये जाते हैं. उसके बाद यादव, राजपूत, कोइरी-कुर्मी व अन्य जातियों की बडी आबादी है. 

वर्ष 2008 में पटना साहिब संसदीय सीट गठन के बाद यह पहला मौका है, जब पटना साहिब की लड़ाई फिल्मी वार से निकली है. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में शत्रुघ्न सिन्हा व शेखर सुमन के बीच मुकाबला था, जबकि वर्ष 2014 में शत्रुघ्न सिन्हा व भोजपुरी सिनेमा के स्टार कुणाल सिंह के बीच स्टार वार हुआ था. इस बार खांटी राजनीतिज्ञ रविशंकर प्रसाद के मैदान में उतरने से फिल्मी वार की चमक थोड़ी घटी है. 

राज्य की राजधानी होने के नाते इस सीट पर हमेशा सबकी निगाहें लगी रहती हैं. इस बार के चुनाव में दो बार के विजेता शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. ऐसे में गठबंधन की वजह से उन्हें कायस्थ वोटों के अलावा मुस्लिम और यादव समुदाय का वोट मिल सकता है. वहीं, रविशंकर प्रसाद भी कायस्थ वोटों का रुख अपनी तरफ मोडने के प्रयास में लगे हुए हैं, साथ ही जदयू के साथ होने की वजह से उन्हें कुर्मी और अतिपिछड़ा वोटों का भी लाभ हो सकता है. 

कहा जाता है लोकसभा का चुनाव पीएम कैंडिडेट के फेस पर भी लड़ा जाता है, ऐसे में रविशंकर प्रसाद के पास पीएम मोदी के रूप में एक लोकप्रिय चेहरा है जिसका लाभ उन्हें वोट के तौर पर मिल सकता है.

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