Banka Lok Sabha Seat 2024: बांका सीट समाजवादियों का गढ़ रहा, चंद्रशेखर सिंह, मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडिस और दिग्विजय सिंह कर चुके हैं प्रतिनिधित्व, जानें इतिहास

By एस पी सिन्हा | Published: March 21, 2024 05:35 PM2024-03-21T17:35:19+5:302024-03-21T17:36:23+5:30

Lok Sabha Election 2024 Banka Seat: पूर्व मुख्यमंत्री स्व. चंद्रशेखर सिंह, पत्नी मनोरमा सिंह, मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडिस, बीएस शर्मा, गिद्धौर महाराजा प्रताप सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे स्व. दिग्विजय सिंह और उनकी पत्नी पुतुल कुमारी ने इस लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 

Lok Sabha Election 2024 Banka Seat socialists Chandrashekhar Singh, Madhu Limaye, George Fernandes Digvijay Singh represented it know history | Banka Lok Sabha Seat 2024: बांका सीट समाजवादियों का गढ़ रहा, चंद्रशेखर सिंह, मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडिस और दिग्विजय सिंह कर चुके हैं प्रतिनिधित्व, जानें इतिहास

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Highlightsबांका लोकसभा सीट वैसे तो 1957 में अस्तित्व में आया।पहली सांसद शकुन्तला देवी थीं।1957 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीता था।

Lok Sabha Election 2024 Banka Seat: बिहार में बांका लोकसभा सीट समाजवादियों का गढ़ माना जाता रहा है और शुरू से ही राष्ट्रीय राजनीति का गढ़ रही है। वहां से जॉर्ज फर्नांडिस और मधु लिमिये सरीखे नेता भी अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। हालांकि, यहां की जनता बड़े-बड़े दिग्गजों को भी बाहर का रास्ता दिखा चुकी है। जार्ज यहां से दो बार चुनाव लड़े, लेकिन एक बार भी जीत नहीं पाए। कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. चंद्रशेखर सिंह, पत्नी मनोरमा सिंह, मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडिस, बीएस शर्मा, गिद्धौर महाराजा प्रताप सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे स्व. दिग्विजय सिंह और उनकी पत्नी पुतुल कुमारी ने इस लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। बांका लोकसभा सीट वैसे तो 1957 में अस्तित्व में आया।

इस 6 विधानसभा सीटों वाले बांका लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत बांका, अमरपुर, धोरैया, बेलहर, कटोरिया जो बांका जिले में पड़ता है और एक भागलपुर जिले का विधानसभा क्षेत्र सुल्तानगंज आता है। बांका लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास पर गौर करें तो इस सीट पर कांग्रेस का ही दबदबा देखने को मिलता है।

सोशलिस्ट पार्टी के मधु लिमये ने 1977 का चुनाव जीता

यहां की पहली सांसद शकुन्तला देवी थीं, जिन्होंने 1957 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीता था। शकुन्तला देवी 1962 के चुनाव में भी कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरीं और जीतीं। हालांकि, 1967 के चुनाव को भारतीय जनसंघ के बेनी शंकर शर्मा ने जीता। 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर वापसी की और शिव चंद्रिका प्रसाद ने जीत हासिल की। सोशलिस्ट पार्टी के मधु लिमये ने 1977 का चुनाव जीता।

लेकिन इसके बाद लगातार चुनाव कांग्रेस ने ही जीता। 1980 से लेकर 1986 तक कांग्रेस के प्रत्याशी ही सांसद बने। लेकिन 1989 में कांग्रेस के विजय रथ को जनता दल के उम्मीदवार ने रोका। 1989 और 1991 का चुनाव जनता दल के प्रताप सिंह ने जीता। इसके बाद जनता दल ने गिरधारी यादव को 1996 में टिकट दिया।

2010 में उनकी पत्नी पुतुल देवी चुनाव जीतीं

गिरिधारी यादव ने पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए चुनाव में जीत हासिल की। 2004 में गिरधारी यादव ने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते। लेकिन 2009 के चुनाव को निर्दलीय उम्मीदवार दिग्विजय सिंह ने जीता। उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में 2010 में उनकी पत्नी पुतुल देवी चुनाव जीतीं।

लेकिन, 2014 के चुनावी दंगल में पुतुल देवी राजद प्रत्याशी पूर्व मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव से पराजित हो गईं। 2019 में गिरधारी यादव ने जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ा और विजयी हुए। राजपूत, यादव बहुल इस सीट पर सियासत के कई रंग दिखते रहे हैं। 1980 के बाद से यहां की राजनीति में परिवर्तन के संकेत मिलने लगे थे।

जेपी आंदोलन के बाद बांका लोकसभा चुनाव में भी स्थितियां बदलीं

हालांकि यह सीट कांग्रेस के कब्जे में ही रही। लेकिन, दो-दो बार जॉर्ज फर्नांडिस के चुनाव मैदान में उतरने से यह क्षेत्र राजनीति का एक नया केंद्र बिंदु बनने लगा था। उसका असर आगे आने वाले चुनावों में भी दिखा। यहां कांग्रेस ने अपनी जमीन खो दी। जेपी आंदोलन के बाद बांका लोकसभा चुनाव में भी स्थितियां बदलीं।

यहां के मतदाताओं ने मधु लिमिये को अपना सांसद चुना। 80 से लेकर 1986 तक राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह या उनकी पत्नी मनोरमा सिंह ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। देश के प्रधानमंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह के समधी प्रताप सिंह ने भी इस इलाके का प्रतिनिधित्व किया।

बता दें कि बांका में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने वाले जॉर्ज फर्नांडिस एक ऐसे नेता रहे, जिन्हें यहां की जनता ने स्वीकार नहीं किया। लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद से ही बांका में रोज नए राजनीतिक समीकरण गढ़े और मिटाए जा रहे हैं। राजद यहां अपनी सीट वापसी के लिए एड़ी-चोटी एक करेगी। वहीं एनडीए को भी इस लोकसभा सीट पर पुनर्वापसी के लिए पूरे दमखम के साथ लगना होगा।

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