लोकसभा चुनावः वसुंधरा राजे विरोधियों को क्यों बीजेपी के करीब ला रहा है केन्द्रीय नेतृत्व?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: April 11, 2019 06:05 AM2019-04-11T06:05:41+5:302019-04-11T06:05:41+5:30
पहले चरण में जब बीजेपी उम्मीदवारों का एलान हुआ तो राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह को भी टिकट दिया गया. यह मजबूरी थी, क्योंकि उनका चुनावी रेकार्ड बहुत अच्छा है और शायद इसलिए भी कि- कहीं अंदर की सियासी जंग बाहर नहीं आ जाए
बीजेपी के पास राजस्थान में इस वक्त केवल वसुंधरा राजे ही ऐसी नेता हैं, जिनका प्रभाव और पहचान पूरे प्रदेश में है. यही नहीं, वे दो दशक से अपनी शर्तों पर प्रदेश में बीजेपी का नेतृत्व कर रही हैं. राजे की मर्जी के खिलाफ कई बार बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व ने निर्णय करने की कोशिशें की, किन्तु हर बार फैसला बदलना पड़ा.
राजस्थान में वर्ष 2017 में हुए उपचुनाव में बीजेपी की हार के बाद तत्कालीन सीएम राजे को हटाने के प्रयास हुए, परन्तु कामयाबी नहीं मिली. उनके विश्वस्त सहयोगी तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी को हटाने के बाद बीजेपी नेतृत्व ने अपनी पसंद का प्रदेशाध्यक्ष बनाने की कोशिश जरूर की, परन्तु उसमें भी कामयाबी नहीं मिली. अलबत्ता, विस चुनाव के मद्देनजर बीच का रास्ता निकाला गया और नए अध्यक्ष की नियुक्ति हुई.
वसुंधरा राजे के तीन प्रमुख विरोधी
पार्टी में वसुंधरा राजे के तीन प्रमुख विरोधी रहे नेताओं- किरोड़ी लाल मीणा, घनश्याम तिवाड़ी और हनुमान बेनीवाल ने समय-समय पर बीजेपी छोड़ी, किन्तु अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पाई. करीब दस साल बाद किरोड़ी लाल मीणा विस चुनाव से पहले बीजेपी में लौट आए, उन्होंने विस चुनाव के बाद घनश्याम तिवाड़ी को भी बीजेपी में लाने के प्रयास किए, लेकिन तिवाड़ी ने अपने सियासी अनुभव के आधार पर फिर से बीजेपी में जाना ठीक नहीं समझा, तिवाड़ी ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया.
विस चुनाव- 2018 में हार के बाद एक बार फिर ऐसे प्रयास किए गए कि राजे प्रदेश की राजनीति से दूर हो जाएं, उन्हें केन्द्रीय स्तर पर पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया, उन्हें लोस चुनाव लड़ाने की भी चर्चाएं थी, परन्तु प्रदेश से दूर रहना उन्होंने स्वीकार नहीं किया.
पहले चरण में राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह को दिया टिकट
पहले चरण में जब बीजेपी उम्मीदवारों का एलान हुआ तो राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह को भी टिकट दिया गया. यह मजबूरी थी, क्योंकि उनका चुनावी रेकार्ड बहुत अच्छा है और शायद इसलिए भी कि- कहीं अंदर की सियासी जंग बाहर नहीं आ जाए और ऐसी स्थिति में राजे ने खुला विरोध कर दिया तो, मिशन- 25 ही खटाई में नहीं पड़ जाए.
लेकिन, इसके बाद दूसरे चरण में पार्टी ने आरएलपी के नेता हनुमान बेनीवाल को साथ लिया और गठबंधन के तहत नागौर लोस सीट भी दे दी. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राजसंमद में दीया कुमारी को टिकट भी राजे की असहमति के बावजूद दिया गया.
ताजा, राजे विरोधी रहे प्रमुख गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को बीजेपी में शामिल कर लिया गया है. बैंसला, अपने बेटे विजय बैंसला के साथ बीजेपी में शामिल हो गए हैं.
दरअसल, बैंसला प्रदेश की सियासत में महत्वपूर्ण भूमिका चाहते हैं. उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के रहते कांग्रेस में उनके लिए कोई खास संभावना बची नहीं है, लिहाजा उन्होंने बीजेपी का हाथ थामना बेहतर समझा. बीजेपी नेतृत्व भी चाहता था कि बैंसला बीजेपी के साथ आ जाएं, इससे जहां पार्टी को गुर्जर वोटों का साथ मिल सकता है, वहीं पार्टी में राजे की पकड़ पर भी असर पड़ेगा.
बहरहाल, केन्द्रीय नेतृत्व चाहता है कि राजस्थान में नया बीजेपी नेतृत्व तैयार हो, लेकिन यह तब तक संभव नहीं है, जब तक राजे का प्रदेश की राजनीति में एकाधिकार है. यही वजह है कि वसुंधरा राजे विरोधियों को पार्टी के करीब लाया जा रहा है.
देखना दिलचस्प होगा कि इस बार बीजेपी केन्द्रीय नेतृत्व को कामयाबी मिलती है या फिर राजस्थान बीजेपी में राजे का एकछत्र सियासी साम्राज्य कायम रहता है.