लोकसभा चुनाव 2019: चुनाव में प्रचार के लिए 90% वीडियो हिंदी और क्षेत्रीय भाषा में तैयार करा रहे राजनैतिक दल

By संतोष ठाकुर | Published: March 13, 2019 05:07 AM2019-03-13T05:07:31+5:302019-03-13T05:07:31+5:30

इन राजनैतिक दलों ने मतदाताओं तक पहुंचने के लिए करीब 90 से 95 प्रतिशत प्रचार सामग्री और खासकर वीडियो को हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार करने का निर्देश दिया है।

lok sabha election 2019: political party 90% make video ads for election 2019 | लोकसभा चुनाव 2019: चुनाव में प्रचार के लिए 90% वीडियो हिंदी और क्षेत्रीय भाषा में तैयार करा रहे राजनैतिक दल

लोकसभा चुनाव 2019: चुनाव में प्रचार के लिए 90% वीडियो हिंदी और क्षेत्रीय भाषा में तैयार करा रहे राजनैतिक दल

आईपीएल मैच और अन्य कारणों के साथ ही इस वर्ष मोबाइल डाटा की खपत को आम चुनाव भी गति देने वाला है। इसकी वजह यह है कि सभी राजनैतिक दलों ने अपनी सोशल मीडिया टीम को वर्चुअल या आभाषी दुनिया में प्रचार के लिए नियुक्त कर दिया है। भाजपा और कांग्रेस की ओर से ही करीब 700 से एक हजार सोशल मीडिया पेशेवर को अनुबंधित और अन्य तरीकों से चुनाव के लिए नियुक्त किया है। जबकि इसके साथ ही अन्य दलों ने भी अपनी सोशल मीडिया फौज की तैनाती की है।

मतदाताओं तक पहुंचने के लिए वीडियो विज्ञापन सबसे अधिक

इन राजनैतिक दलों ने मतदाताओं तक पहुंचने के लिए करीब 90 से 95 प्रतिशत प्रचार सामग्री और खासकर वीडियो को हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार करने का निर्देश दिया है। जिससे मतदाता तक उनकी भाषा में बात पहुंचाई जा सके। राष्ट्रीय पार्टी करीब 3—5 प्रतिशत तक ही अंग्रेजी में सोशल मीडिया वीडियो बना रहेी है। इनका उपयोग अधिकतर शहरी इलाकों में किया जाएगा। 

भाजपा के सोशल मीडिया टीम से जुड़े एक आईटी पेशेवर ने कहा कि उप्र में जहां मुख्य रूप से उज्जवला और हाईवे विकास के वीडियो पर जोर दिया जा रहा है तो वहीं देश भर में सर्जिकल स्ट्राइक की ताकत दिखाने वाले तथ्य को भी सामने लाया जाएगा। इसी तरह से उड़ान सेवा, रेलवे की उपलब्धि, किसानोंं को राहत आदि भी हमारे वीडियो का हिस्सा होंगे। इस पेशेवर ने कहा कि प्रयास यही है कि 1 से 3 मिनट के वीडियो को हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में कुछ चुनिंदा टेक्सट और शब्दों के साथ पेश किया जाए।

जिससे जनता सीधे भाजपा से अपने को कनेक्ट करे या उसको लेकर सोच—विचार करे। इधर, कांग्रेस के एक सोशल मीडिया एक्सपर्ट ने कहा कि हम मुख्य रूप से सरकार और प्रधानमंत्री की ओर से किये गए वादों और उनकी हकीकत पर ध्यान केंद्रीत कर रहे हैं। इसमें पंद्रह लाख रूपये देने से लेकर रोजगार के विषय शामिल है। इसके साथ ही राफेल जैसे मसले को भी जनता के सामने वीडियो के माध्यम से सरल और जनता की भाषा में जनता के समक्ष रखा जाएगा। सपा और बसपा के सोशल मीडिया वॉर रूम के प्रतिनिधियों ने भी कहा कि हम हिंदी, अवधी, भोजपुरी और खड़ी बोली में ही अधिक वीडियो बना रहे हैं। यही हमारे मतदाताओंं की भाषा है। 

राजनैतिक दलों की ओर से प्रचार के लिए हिंदी और क्षेत्रीय भाषा में सोशल मीडिया के लिए छोटे—आक्रमक—प्रभावी वीडियो की ओर बड़े स्तर पर मुड़ने की एक बड़ी वजह इनका त्वरित जनता पर प्रभाव होना तो है ही, लेकिन इसके साथ ही लगातार बढ़ता डाटा खपत भी एक बड़ी वजह है। देश में 4जी सेवा आने के बाद प्छिले साल ही डाटा खपत में 109 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई। इसमें से अकेले 92 प्रतिशत से अधिक खपत 4जी नेटवर्क पर थी।

इस साल जनवरी में ही अकेले जियो के नेटवर्क पर ही लोगों ने 860 करोड़ जीबी से अधिक का डाटा उपयोग किया गया। औसतन प्रति ग्राहक ने इस नेटवर्क पर ही हर महीने 16—17 घंटे वीडियो देखे। देश में औसतन प्रति ग्राहक डाटा खपत 8.4 जीबी है।

जबकि वाई—फाई और मोबाइल नेटवर्क को जोड़ दिया जाए तो यह बढ़कर 9 जीबी तक पहुंच जाता है। ऐसे में लोगों के बीच वीडियो देखने की बढ़ती आदत और इस माध्यम के प्रभावी होने को देखते हुए राजनैतिक दलों ने सोशल मीडिया के लिए वीडियो की जंग शुरू कर दी है। सीओएआई के महानिदेशक आरएस मैथ्यूस डाटा इजाफा को स्वीकार करते हैं।

लेकिन साथ ही कहते हैं कि इससे टेलीकॉम कंपनियों पर नेटवर्क बेहतर करने का दबाव बढ़ रहा है। जबकि दूसरी ओर आपसी प्रतिद्धंदिता की वजह से कंपिनयों को डाटा के दाम कम करने पड़ रहे हैं। जिसका प्रतिकूल प्रभाव कंपिनयों पर हो रहा है। चुनाव के तीन महीनों में डाटा खपत दोगुनी होने का आकलन है। ऐसे में कंपनियों पर नेटवर्क सुढ़ढ़ करने का दबाव और बढ़ेगा। 

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