भारी पड़ा ‘चौकीदार’, कांग्रेस ‘गरीबी पर वार, 72 हजार’ नहीं चला 

By भाषा | Published: May 23, 2019 05:20 PM2019-05-23T17:20:23+5:302019-05-23T17:20:23+5:30

जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के ‘नकारात्मक’ प्रचार अभियान के साथ पार्टी अथवा विपक्षी गठबंधन की तरफ से नेतृत्व का स्पष्ट नहीं होना भी भारी पड़ा। पार्टी के प्रचार अभियान की कमान संभालते हुए गांधी प्रधानमंत्री पद अथवा विपक्ष की तरफ से नेतृत्व के सवाल को भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से टालते रहे।

lok sabha election 2019 narendra modi rahul gandhi | भारी पड़ा ‘चौकीदार’, कांग्रेस ‘गरीबी पर वार, 72 हजार’ नहीं चला 

कांग्रेस के ‘नकारात्मक’ प्रचार अभियान के साथ पार्टी अथवा विपक्षी गठबंधन की तरफ से नेतृत्व का स्पष्ट नहीं होना भी भारी पड़ा।

Highlightsजनता मालिक है और उसका फैसला स्वीकार किया जाएगा। कांग्रेस 2014 के आम चुनाव में 44 सीटों पर सिमट गई थी। राहुल गांधी ने राफेल मुद्दे के अलावा ‘न्यूनतम आय गारंटी’ (न्याय) योजना को मास्टरस्ट्रोक के तौर पर पेश किया।

कांग्रेस ‘गरीबी पर वार, 72 हजार’ के नारे के साथ इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात देने की रणनीति के साथ उतरी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘चौकीदार’ अभियान, बालाकोट हवाई हमला, राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा और जनकल्याण से जुड़ी योजनाओं के आक्रामक प्रचार के आगे ढेर हो गई।

इस चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन की स्थिति यह है कि वह 2014 के अपने 44 सीटों के आंकड़ों में महज कुछ सीटों की बढ़ोतरी करती दिख रही है। चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान भी कई जानकारों का यह कहना था कि अगर कांग्रेस सीटों का शतक भी लगा लेती है तो वह उसके और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी लिए सहज स्थिति होगी, हालांकि ऐसा नहीं होता दिख रहा।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में समूची पार्टी ने प्रचार अभियान प्रधानमंत्री मोदी पर केंद्रित रखा और राफेल विमान सौदे में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए ‘चौकीदार चोर है’ का प्रचार अभियान चलाया जिसके जवाब में मोदी और भाजपा ने ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान शुरू किया।

राहुल गांधी ने राफेल मुद्दे के अलावा ‘न्यूनतम आय गारंटी’ (न्याय) योजना को मास्टरस्ट्रोक के तौर पर पेश किया। पार्टी को उम्मीद थी कि गरीबों को सालाना 72 हजार रुपये देने का उसका वादा भाजपा के राष्ट्रवाद वाले विमर्श की धार को कुंद कर देगा, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं हुआ।

जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के ‘नकारात्मक’ प्रचार अभियान के साथ पार्टी अथवा विपक्षी गठबंधन की तरफ से नेतृत्व का स्पष्ट नहीं होना भी भारी पड़ा। पार्टी के प्रचार अभियान की कमान संभालते हुए गांधी प्रधानमंत्री पद अथवा विपक्ष की तरफ से नेतृत्व के सवाल को भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से टालते रहे।

वह बार बार यही कहते रहे कि जनता मालिक है और उसका फैसला स्वीकार किया जाएगा। कांग्रेस 2014 के आम चुनाव में 44 सीटों पर सिमट गई थी। यह पार्टी का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था। इसके बाद पिछले पांच वर्षों के सफर में कांग्रेस ने कई पराजयों का सामना किया, लेकिन पिछले साल नवंबर-दिसंबर में तीन राज्यों-मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में उसकी जीत ने पार्टी की लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदों को ताकत देने का काम किया। यह बात अलग है कि पार्टी हवा के इस रुख को बरकरार नहीं पाई। 

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