पाटलिपुत्र सीट: मुकाबला दिलचस्प, रामकृपाल यादव को मोदी लहर का भरोसा तो मीसा भारती को पिता लालू के नाम का सहारा

By एस पी सिन्हा | Published: May 16, 2019 03:49 PM2019-05-16T15:49:40+5:302019-05-16T15:49:40+5:30

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में संसदीय सीटों के नए सिरे से परिसीमीन हुए तो पटना जिले से छह विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र बना.

lok sabha election 2019: Misa bharti Vs ram kripal yadav at patliputra lok sabha seat | पाटलिपुत्र सीट: मुकाबला दिलचस्प, रामकृपाल यादव को मोदी लहर का भरोसा तो मीसा भारती को पिता लालू के नाम का सहारा

पाटलिपुत्र सीट: मुकाबला दिलचस्प, रामकृपाल यादव को मोदी लहर का भरोसा तो मीसा भारती को पिता लालू के नाम का सहारा

Highlightsपाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 1,526,241 हैचुनाव से पहले पाटलिपुत्र की सीट इसलिए भी चर्चा में रही क्योंकि राजद की ओर से इस सीट पर मीसा भारती को उम्मीदवार बनाने को लेकर राजद में हाईवोल्टेज ड्रामा हुआ था

बिहार के पाटलीपुत्र लोकसभा सीट पर इस वक्त एक बेहद दिलचस्प मुकाबला एक जमाने में चाचा-भतीजी रहे रामकृपाल यादव और मीसा भारती के बीच सामने आ रहा है. 2014 के चुनाव में भी दोनों चाचा-भतीजी आमने-सामने थे, जिसमें चाचा रामकृपाल यादव जीते थे. इस बार फिर दोनों एक दूसरे के सामने हैं. एक ओर रामकृपाल यादव इस बार अपने काम से अधिक मोदी नाम के भरोसे हैं, तो वहीं मीसा भारती अपने पिता राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के नाम पर वोटरों के सामने झोली फैलाकर वोट मांग रही हैं.

इसके लिए उनके दोनों भाई तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव के अलावे उनकी मां राबड़ी देवी के अलावा आज कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का सहारा लेना पड़ रहा है. लेकिन रामकृपाल यादव के पक्ष में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनावी सभाओं ने पाटलिपुत्र का समीकरण बदलने की कोशिश की है.

जानिए क्या है पाटलिपुत्र सीट का जातीय समीकरण

पटना साहिब की सीट तो हाईप्रोफाइल है ही. पाटलिपुत्र की सीट भी कम हॉट और हाईप्रोफाइल नहीं है. यह क्षेत्र यादव मतदाता बहुल है, इसलिए यादवों का नेता लालू यादव इसे अपना गढ़ मानते हैं. हालांकि हकीकत यह है कि यादव बहुल क्षेत्र होते हुए भी लालू परिवार यहां से दो बार चुनाव लडा है, लेकिन दोनों ही बार कड़े मुकाबले में उसे शिकस्त मिली है. इस बार भी यह सीट लालू परिवार की प्रतिष्ठा का प्रश्न बनी हुई है. 

वजह यह है कि यहां से लालू यादव की बडी बेटी डा. मीसा भारती राजद से चुनावी मैदान में हैं तो भाजपा से निवर्तमान सांसद रामकृपाल यादव भी ताल ठोक रहे हैं. यह लड़ाई इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि रामकृपाल यादव एक वक्त में लालू के शिष्य और सिपाहसालार होते थे. यही नहीं रामकृपाल यादव राजद के टिकट पर बिहार के विधान परिषद के सदस्य रहे. 

रामकृपाल यादव  नाराज होकर थामा बीजेपी का हाथ

तीन बार लोकसभा के सदस्य रहे और एक बार राजद के टिकट पर राज्यसभा में भी जीतकर आए. हालांकि, वर्ष 2014 में जब लालू यादव ने पाटलिपुत्र की सीट रामकृपाल यादव को न देकर मीसा भारती को दे दी तो रामकृपाल यादव नाराज होकर भाजपा का दामन थाम लिया और मीसा भारती को हरा दिया. यही वजह है कि इस बार भी पाटलिपुत्र की यह सीट लालू परिवार की प्रतिष्ठा से भी जुड़ गया है. 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में संसदीय सीटों के नए सिरे से परिसीमीन हुए तो पटना जिले से छह विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र बना. यहां करीब 5 लाख यादव मतदाताओं के होने के बावजूद यह क्षेत्र लालू यादव और उनके परिवार के लिए कभी शुभ साबित नहीं हुआ.

जानिए क्या है इस सीट का इतिहास 

वर्ष 2009 में लालू यादव और 2014 में उनकी बेटी मीसा भारती ने राजद के टिकट पर चुनाव लडा, लेकिन दोनों को जीत नसीब नहीं हुई. खास बात यह भी कि उन्हें हराने वाले भी उनके परिवार के विश्वस्त और करीबी लोग रहे. वहीं, 15वीं लोकसभा चुनाव के लिए वर्ष 2009 में हुए चुनाव में लालू यादव को जदयू के रंजन प्रसाद यादव ने हराया तो 2014 में मीसा भारती को भाजपा के रामकृपाल यादव ने शिकस्त दी. 

यह भी विडंबना है कि यादवों के नेता कहे जाने वाले लालू यादव भी पाटलिपुत्र में ही वोटों को समेटने में असफल हो जाते हैं. वर्ष 2014 में रामकृपाल यादव ने मीसा भारती को 40322 वोटों से हरा दिया. तीसरे नंबर पर रहे यहां के सिटिंग एमपी और जेपी आंदोलन में लालू के साथी रहे रंजन प्रसाद यादव. रंजन प्रसाद यादव ने 2009 के चुनाव में यहां से लालू प्रसाद को भी मात दी थी.

पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 1,526,241 है. इनमें से पुरुष वोटरों की संख्या है 817,820 और महिला वोटरों की संख्या है 708,421. इनमें 5 लाख यादव, साढे चार लाख भूमिहार, 3 लाख राजपूत और कुर्मी और डेढ लाख ब्राह्मण मतदाता हैं. 

यहां गंगा और सोन दियारा के गांवों में रहने वाले 90 प्रतिशत से अधिक लोग यादव हैं. बिक्रम को छोडकर अन्य विधान सभा क्षेत्र दानापुर, मनेर, फुलवारीशरीफ, मसौढी और पालीगंज में यादवों की बडी आबादी है. बिक्रम को भूमिहार प्रभाव वाला माना जाता है. इसतरह से इस संसदीय क्षेत्र में यादव के बाद भूमिहारों की आबादी है. इसके बाद मुसलमान और राजपूत की संख्या है. 

अतिपिछड़ी जातियों में बनियों की भी काफी आबादी है. कुछ गांवों में कहारों की संख्या भी अच्छी तादाद में है. नदियों के कारण मल्‍लाह भी बडी संख्या में हैं. इस सीट को लेकर दिलचस्प तथ्य ये है कि यहां यादव और भूमिहार जाति में वर्चस्व की लड़ाई तो और ये एक-दूसरे के खिलाफ गोलंबदी में शामिल रहे हैं. हालांकि यह जीत-हार के समीकरणों के तहत बदल भी जाया करते हैं.

बहरहाल, चुनावी संघर्ष इसलिए भी दिलचस्प बन पड़ा है क्योंकि इस बार लालू परिवार से महज मीसा भारती ही चुनावी मैदान में हैं. अगर उनकी हार होती है तो इस बार लालू परिवार का कोई भी व्यक्ति संसद में प्रतिनिधित्व नहीं कर पाएगा. यही वजह है कि तेजस्वी, तेजप्रताप और राबड़ी देवी ने पूरा जोर लगा दिया है. 

चुनाव से पहले पाटलिपुत्र की सीट इसलिए भी चर्चा में रही क्योंकि राजद की ओर से इस सीट पर मीसा भारती को उम्मीदवार बनाने को लेकर राजद में हाईवोल्टेज ड्रामा हुआ था. भाई तेजप्रताप यादव ने तो उस वक्त अपनी ओर से मीसा भारती की उम्मीदवारी पाटलिपुत्र से घोषित कर दी थी, जब टिकट बंटवारे की प्रक्रिया शुरू भी नहीं हुई थी. 

पारिवारिक दबाव में भाई वीरेन्द्र की उम्मीदवारी को दरकिनार करते हुए राजद ने मीसा भारती को अपना उम्मीदवार बना दिया. इसतरह से दोनों ही गठबंधनों के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न है क्योंकि पिछली बार की तरह इस बार भी इस सीट जीतकर भाजपा इसे अपनी परंपरागत सीट में तब्दील करना चाहेगी तो राजद के लिए यह सीट जीतना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके परिणाम चाहे जीत में हो या हार में पार्टी के साथ साथ पूरे परिवार के साथ भी जोड़ी जाएगी.

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