दुविधा में कांग्रेस, खड़गे, शिंदे, सिंधिया और मोइली हारे, आखिर कौन बनेगा लोकसभा में नेता सदन
By सतीश कुमार सिंह | Published: May 25, 2019 04:05 PM2019-05-25T16:05:38+5:302019-05-25T16:05:38+5:30
कांग्रेस के सामने यक्ष प्रश्न है कि 17वीं लोकसभा में कांग्रेस के लिए नेता सदन कौन होगा। 16वीं लोकसभा चुनाव में कर्नाटक से जीतकर आए मल्लिकार्जुन खड़गे नेता सदन हुआ करते थे। कांग्रेस इस दुविधा में है कि किसे लोकसभा में यह पद दिया जाए। नेता सदन मल्लिकार्जुन खड़गे, सुशील कुमार शिंदे, पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली सहित कई बड़े नेता चुनाव हार चुके हैं।
लोकसभा चुनाव में मोदी सुनामी पर पूरा विपक्ष उड़ गया। खासकर कांग्रेस में बहुत ही बुरा हाल है। कांग्रेस के सामने यक्ष प्रश्न है कि 17वीं लोकसभा में कांग्रेस के लिए नेता सदन कौन होगा।
16वीं लोकसभा चुनाव में कर्नाटक से जीतकर आए मल्लिकार्जुन खड़गे नेता सदन हुआ करते थे। कांग्रेस इस दुविधा में है कि किसे लोकसभा में यह पद दिया जाए। नेता सदन मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली, 16वीं लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता और राहुल गांधी के खास ज्योतिरादित्य सिंधिया, हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र सिंह हुड्डा सहित कई बड़े नेता चुनाव हार चुके हैं।
कांग्रेस के पास अनुभव के मामले में यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, मनीष तिवारी और शशि थरूर ही नेता जो चुनाव जीत कर आए हैं। जिनके पास अनुभव के साथ-साथ सरकार से भी अच्छे संबंध हैं। हालांकि राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष हैं तो समय की कमी है। सोनिया गांधी की सेहत ठीक नहीं है।
कांग्रेस में संसदीय दल के नेता के लिए चेहरे की तलाश
इन सियासी मुसीबत के बीच कांग्रेस में संसदीय दल के नेता के लिए चेहरे की तलाश है। कांग्रेस के पास विकल्प के रूप राहुल गांधी को छोड़ दें तो मनीष तिवारी और शशि थरूर ही हैं। मोदी सुनामी में कांग्रेस 23 राज्यों में 0-1 सीट जीत पाई है।
इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हिन्दी प्रदेश में कांग्रेस केवल 6 सीट जीत पाई। राहुल गांधी के सभी युवा नेता चुनाव हार गए। बड़े नेताओं में पंजाब से जीतकर आए मनीष तिवारी, असम से जीतकर आए तरुण गोगोई के पुत्र गौरव गोगोई, बंगाल से जीतकर आए अधीर रंजन चौधरी हैं।
केरल से सबसे अधिक सांसद जीत कर आए हैं लेकिन अनुभव की कमी
केरल से सबसे अधिक सांसद जीत कर आए हैं लेकिन अनुभव की कमी है। तमिलनाडु से कोई बड़ा नाम नहीं है। केवल पूर्व वित्त मंत्री के पुत्र कार्ति चिदंबरम है। हालांकि 2014 में कांग्रेस को 44 सीट मिली थीं। लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे सरकार के हर फैसले का विरोध करते थे।
मुखर होकर कांग्रेस की बात रखते थे। मल्लिकार्जुन खड़गे का चुनाव हराना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा झटका है। साफ है कि लोकसभा में दिग्गज चेहरों का टोटा देखते हुए संसदीय दल के नेता के लिए कांग्रेस के सामने राहुल गांधी ही पहला विकल्प बचते हैं।
नई लोकसभा में भाजपा-एनडीए के भारी बहुमत को देखते हुए कांग्रेस संसदीय दल के नेता का चेहरा मौजूदा हालात में पार्टी के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विपक्षी खेमे के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। मौजूदा हालातों में शशि थरूर ही कांग्रेस के लिए फिलहाल सबसे उपयुक्त विकल्प दिखाई दे रहे हैं।
वाकपटु थरूर अंग्रेजी के साथ हिन्दी भी बोल लेते हैं। केंद्रीय राज्यमंत्री रह चुके थरूर को वैश्विक कूटनीति का भी व्यापक अनुभव है और लगातार तीसरी बार वे तिरूअनंतपुरम से लोकसभा के सदस्य चुने गए हैं।
देश में 543 लोकसभा सीट है, नेता प्रतिपक्ष के लिए 55 सीट जरूरी
देश में 543 लोकसभा सीट है। नेता प्रतिपक्ष के लिए 55 सीट जरूरी है। 2019 लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस के पास 51 सीट है। इस बार भी उम्मीद कम ही है। कांग्रेस नीत गठबंधन वाले यूपीए को कुल 87 सीटें मिली हैं।
भाजपा ने अकेले 303 सीटें जीती हैं। भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए को कुल 352 सीटें प्राप्त हुई हैं। नियमानुसार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा प्राप्त करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को अकेले कम से कम 10 फीसद सीटें जीतनी होती हैं। लोकसभा में कुल 543 सीटों के लिए सीधा चुनाव होता है और 2 एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों को राष्ट्रपति चुनते हैं।
मतलब 545 सीटों वाली लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा प्राप्त करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को कम से कम 55 सीटें जीतनी जरूरी हैं। 2014 में भी कांग्रेस को मात्र 44 सीटें प्राप्त हुई थीं, तब भी पार्टी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला था।
हालांकि, कांग्रेस लोकसभा में सबसे बड़ा विपक्षी दल था। इसलिए केंद्र की एनडीए सरकार कांग्रेस के नेता सदन मल्लिकार्जुन खडगे को सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के रूप में जरूरी बैठकों में बुलाती रही है। मल्लिकार्जुन खड़गे ये कहते हुए इन अहम बैठकों का विरोध करते रहे कि जब तक उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया जाता, वह इस तरह की बैठकों में शामिल नहीं होंगे।
यही वजह है कि लोकपाल की नियुक्ति समेत कई अहम बैठकों में मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल नहीं हुए थे। इस बार भी कांग्रेस बहुमत तो दूर, नेता प्रतिपक्ष बनने लायक सीटें भी नहीं जीत सकी है।