लोकसभा चुनाव: फंसा पेंच! चार चरण की वोटिंग के बाद बीजेपी और कांग्रेस अब गठबंधन के लिए बहा रहे हैं पसीना
By हरीश गुप्ता | Published: May 3, 2019 09:54 AM2019-05-03T09:54:14+5:302019-05-03T09:54:14+5:30
तमिलनाडु में अपनी राह सरल बनाने के प्रयास में भाजपा ने अन्नाद्रमुक समेत 6 पार्टियों को गठबंधन सहयोगी बनाया है. हालांकि तमिलनाडु में भाजपा का अपना खुद का सांसद है और पार्टी एक अलग मोर्चा बनाने के बारे में सोच रही थी, लेकिन बाद में उसने यह विचार छोड़ दिया।
देश के दो प्रमुख राजनीतिक दल- भाजपा और कांग्रेस अपने साथ अन्य छोटे दलों को गठबंधन सहयोगी के रूप में बनाए रखने और नए साथियों को जोड़ने के लिए दिन-रात पसीना बहा रहे हैं. लोकसभा चुनाव के तहत चार चरणों का मतदान होने के बाद भी भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने गठबंधन में नए दलों को शामिल करने की रणनीति में जुटे हुए हैं. भाजपा ने इस बार कुल 543 लोकसभा सीटों में से 105 सीटें अपने सहयोगी दलों को दी हैं और पार्टी खुद 438 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है.
वर्ष 2014 में हुए पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्यों में और राष्ट्रीय स्तर पर 42 दलों के साथ गठबंधन किया था, लेकिन 2019 में पार्टी के पास सिर्फ 28 गठबंधन सहयोगी हैं. इनमें से से 19 सहयोगी बड़े राज्यों में हैं, जबकि 9 छोटे राज्यों में. इनमें वे सहयोगी दल भी शामिल हैं, जो लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं और भाजपा का समर्थन कर रहे हैं. उधर, 2014 में कांग्रेस के साथ 14 गठबंधन सहयोगी थे. लेकिन पार्टी ने कड़ी मशक्कत करते हुए अपने साथ नए साथियों को जोड़ा है.
पार्टी के सहयोगी दलों की संख्या अब 30 से अधिक हो गई है. राजस्थान में जहां भाजपा ने हनुमान बेनीवाल की राजस्थान लोकतांत्रिक पार्टी को अपने पाले में कर लिया और उन्हें लोकसभा चुनाव का टिकट भी दे दिया, वहीं उसने गुर्जर नेता किरोड़ीलाल बैंसला को भी अपने साथ लाने में सफलता पाई और उन्हें उनकी पसंद का एक चुनावी टिकट भी थमा दिया. राजस्थान में भाजपा आलाकमान की इस आतुरता को सहज ही समझा जा सकता है, क्योंकि पार्टी को राज्य में पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में हार झेलनी पड़ी थी. साथ ही ऐसी खबरें भी हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य में सभी 25 सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए इस बार हालात अनुकूल नहीं हैं.
तमिलनाडु में अपनी राह सरल बनाने के प्रयास में भाजपा ने अन्नाद्रमुक समेत 6 पार्टियों को गठबंधन सहयोगी बनाया है. हालांकि तमिलनाडु में भाजपा का अपना खुद का सांसद है और पार्टी एक अलग मोर्चा बनाने के बारे में सोच रही थी, लेकिन बाद में उसने यह विचार छोड़ दिया और सहयोगी दलों के साथ चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया. इसी तरह भाजपा केरल में भी तीसरे विकल्प के रूप में उभरने के लिए जमकर पसीना बहा रही है. इसी रणनीति के तहत पार्टी ने दो पार्टियों के साथ गठबंधन किया है.
भाजपा को इस बार तिरुवनंतपुरम सीट पर जीत दर्ज करने की उम्मीद है. उधर, केरल में भाकपा और माकपा भले ही कांग्रेस के खिलाफ मैदान में खड़ी हों, लेकिन दोनों ही पार्टियां ओडिशा में लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की गठबंधन सहयोगी हैं. यहां तक कि पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस ने माकपा की राह आसान बनाने के लिए दो लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं. कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस को भी अपने पाले में लाने में सफलता पाई है और महाराष्ट्र में भी नए साथी जुटाए हैं.
साथियों के चुनाव अभियान का खर्च भी उठा रही भाजपा
दिलचस्प रूप से महाराष्ट्र में शिवसेना, बिहार में जदयू, उत्तर प्रदेश में अपना दल आदि जैसे अपने सहयोगी दलों के चुनाव अभियान और अन्य खर्चों का भी बीड़ा उठा रही है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सहयोगी दलों के नेताओं से मिलकर उन्हें चुनाव प्रचार के दौरान आर्थिक और अन्य तरह की मदद का प्रस्ताव दिया था. इस बार के चुनाव में ऐसा पहली बार हो रहा है.