पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा, लिव-इन-रिलेशनशिप नैतिक और सामाजिक रूप से अस्वीकार्य

By भाषा | Published: May 18, 2021 07:54 PM2021-05-18T19:54:02+5:302021-05-18T20:10:43+5:30

याचिकाकर्ता गुलजा कुमारी (19) और गुरविंदर सिंह (22) ने याचिका में कहा कि वे एक साथ रह रहे हैं और जल्द ही शादी करना चाहते हैं।उन्होंने कुमारी के माता-पिता से अपनी जान को खतरा होने की आशंका जताई थी।

Live-in relationship moral, socially unacceptable: Punjab and Haryana High Court | पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा, लिव-इन-रिलेशनशिप नैतिक और सामाजिक रूप से अस्वीकार्य

(फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)

Highlightsकोर्ट में वकील ने कहा कि सिंह और कुमारी तरनतारन जिले में एक साथ रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुमारी के माता-पिता ने उनके रिश्ते को स्वीकार नहीं किया। कुमारी के माता-पिता लुधियाना में रहते हैं।

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा है कि लिव-इन संबंध नैतिक और सामाजिक रूप से अस्वीकार्य हैं। हालांकि उच्च न्यायालय का यह रुख ऐसे रिश्तों को मान्यता देने वाले उच्चतम न्यायालय के रुख से अलग है।उच्च न्यायालय ने घर से भागे एक प्रेमी जोड़े की सुरक्षा की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

न्यायमूर्ति एचएस मदान ने अपने 11 मई के आदेश में कहा, "वास्तव में, याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका दायर करने की आड़ में अपने लिव-इन संबंध पर अनुमोदन की मुहर की मांग कर रहे हैं, जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और याचिका में कोई सुरक्षा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है। तदनुसार याचिका खारिज की जाती है।"

याचिकाकर्ता के वकील जे एस ठाकुर के अनुसार, सिंह और कुमारी तरनतारन जिले में एक साथ रह रहे हैं।लुधियाना निवासी कुमारी के माता-पिता को उनका रिश्ता मंजूर नहीं है।ठाकुर ने कहा कि दोनों की शादी नहीं हो सकी क्योंकि कुमारी के दस्तावेज, जिसमें उसकी उम्र का विवरण है, उसके परिवार के पास हैं।इस मामले में पूर्व में उच्चतम न्यायालय ने हालांकि अलग नजरिया अख्तियार किया था।

उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मई 2018 में कहा था कि वयस्क जोड़े को शादी के बगैर भी साथ रहने का अधिकार है।न्यायालय ने यह केरल की 20 वर्षीय एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि वह चुन सकती है कि वह किसके साथ रहना चाहती है। उसके विवाह को अमान्य कर दिया गया था।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि लिव-इन संबंधों को अब विधायिका द्वारा भी मान्यता दी गई है और घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के प्रावधानों में भी इसे स्थान दिया गया था।अभिनेत्री एस खुशबू द्वारा दायर एक अन्य ऐतिहासिक मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि लिव-इन संबंध स्वीकार्य हैं और दो वयस्कों के साथ रहने को अवैध या गैरकानूनी नहीं माना जा सकता।

उसने कहा, “यह सच है कि हमारे समाज में मुख्यधारा का नजरिया यह है कि यौन संबंध सिर्फ वैवाहिक भागीदारों में बनना चाहिए, हालांकि वयस्कों के स्वेच्छा से वैवाहिक दायरे से बाहर यौन संबंध बनाने से कोई वैधानिक अपराध नहीं होता है, उस अपवाद को छोड़कर जिसे भादंवि की धारा 497 के तहत ‘व्यभिचार’ के तौर पर परिभाषित किया गया है।

Web Title: Live-in relationship moral, socially unacceptable: Punjab and Haryana High Court

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