लखीमपुर हिंसा: न्यायालय ने उप्र सरकार को लगाई फटकार, कहा- राज्य पुलिस धीमी गति से काम कर रही

By भाषा | Published: October 20, 2021 07:06 PM2021-10-20T19:06:48+5:302021-10-20T19:06:48+5:30

Lakhimpur Violence: The court reprimanded the UP government, said- State police is working at a slow pace | लखीमपुर हिंसा: न्यायालय ने उप्र सरकार को लगाई फटकार, कहा- राज्य पुलिस धीमी गति से काम कर रही

लखीमपुर हिंसा: न्यायालय ने उप्र सरकार को लगाई फटकार, कहा- राज्य पुलिस धीमी गति से काम कर रही

नयी दिल्ली, 20 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि लखीमपुर खीरी हिंसा की जांच एक ‘अंतहीन कहानी’ नहीं होनी चाहिए। साथ ही, एक बार फिर उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि न्यायालय को ऐसा लग रहा है कि राज्य पुलिस धीमी गति से काम कर रही है।

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि उप्र सरकार को अपनी इस छवि को ‘‘बदलने’’ की आवश्यकता है।

न्यायालय ने राज्य सरकार को मजिस्ट्रेट के समक्ष गवाहों के बयान दर्ज कराने और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमें लगता है कि आप बहुत धीमी गति से काम कर रहे हैं, कृपया अपनी इस छवि को बदलिए।’’

उसने कहा कि जांच ‘‘अंतहीन कहानी’’ नहीं बननी चाहिए। उसने अभियोजन पक्ष के 44 में से करीब 40 गवाहों के बयान आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज नहीं कराए जाने के मामले पर चिंता जताई।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा, ‘‘कृपया उनसे धारा 164 के तहत बयान दर्ज करने के लिए तत्काल कदम उठाने को कहिए। पीड़ितों और गवाहों की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है।’’

सीआरपीसी की धारा 164 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज किए जाते हैं और उन्हें साक्ष्य माना जाता है।

न्यायालय तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों के मारे जाने के मामले में सुनवाई कर रही। न्यायालय को राज्य सरकार ने बताया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 44 में से चार गवाहों के बयान दर्ज किए हैं।

इस मामले में अब तक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा समेत 10 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।

पीठ ने सुनवाई के दिन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का मामला उठाया और प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमने स्थिति रिपोर्ट के लिए कल रात एक बजे तक इंतजार किया, लेकिन हमें कुछ नहीं मिला।’’

राज्य सरकार की ओर से वकील गरिमा प्रसाद के साथ पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि स्थिति रिपोर्ट बुधवार को सीलबंद लिफाफे में दाखिल की गई है, क्योंकि ऐसा लगा था कि इसे केवल न्यायालय देख सकता है।

पीठ ने कहा, ‘‘नहीं, इसकी आवश्यकता नहीं थी और हमें यह अभी मिली है... हमने सीलबंद लिफाफे के संबंध में कभी कुछ नहीं कहा था।’’ उसने मामले की शुक्रवार को सुनवाई करने का अनुरोध अस्वीकार कर दिया और अगली सुनवाई के लिए 26 अक्टूबर की तारीख तय की।

पीठ ने कहा, ‘‘साल्वे जी, आपने कहा कि आपने (पुलिस ने) 44 गवाहों से पूछताछ की है और उनमें से चार गवाहों के बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत (न्यायिक मजिस्ट्रेट) के समक्ष दर्ज किए गए हैं। आपने अन्य गवाहों के बयान 164 के तहत दर्ज क्यों नहीं कराए।’’

इसके बाद साल्वे ने पीठ से कहा कि इस संबंध में प्रक्रिया जारी है। उन्होंने कहा कि पहले इस बात को लेकर चिंता थी कि ऐसा प्रतीत हो रहा था कि पुलिस ‘‘आरोपियों के खिलाफ थोड़ी नरमी बरत रही है और अब उन सभी को गिरफ्तार कर लिया गया है और अब वे जेल में हैं।’’

साल्वे ने कहा कि इस मामले में दो अपराध हुए हैं। पहला अपराध यह है कि आरोपियों ने किसानों को वाहन से कुचल दिया और दूसरी प्राथमिकी यह है कि किसानों को वाहन से कुचलने वाले आरोपियों में से तीन की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई।

उन्होंने कहा कि दूसरी प्राथमिकी के संबंध में जांच ‘‘थोड़ी मुश्किल’’ है क्योंकि किसानों की भारी भीड़ के कारण यह पता लगाना मुश्किल है कि किसने क्या किया।

पीठ ने कहा कि वह पहली प्राथमिकी के बारे में पूछ रही है और उसने आरोपियों की संख्या और जांच की स्थिति पर रिपोर्ट मांगी थी।

न्यायालय ने सवाल किया, ‘‘आज, उनमें से कितने आरोपी न्यायिक हिरासत में हैं और उनमें से कितने पुलिस हिरासत में हैं...क्योंकि उनसे पूछताछ किए बिना आपको कोई जानकारी नहीं मिल सकती।’’

इसके जवाब में साल्वे ने कहा, ‘‘कुल 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है और उनमें से चार पुलिस हिरासत में हैं और शेष छह को न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया है।’’

इसके बाद पीठ ने सवाल किया कि शेष छह आरोपियों का क्या हुआ और ‘‘क्या आपने उनकी पुलिस हिरासत के लिए अनुरोध किया गया था या उन्हें सीधे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।’’

उसने कहा, ‘‘वे पुलिस हिरासत में थे और चूंकि आपने उनकी पुलिस हिरासत का अनुरोध नहीं किया था , इसलिए उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। इस मामले में क्या स्थिति है? हम सिर्फ चाहते हैं कि तथ्यों को स्पष्ट किया जाए। ऐसी स्थितियां होती हैं, जब पुलिस आरोपी की हिरासत का अनुरोध करती है, लेकिन न्यायालय इनकार कर देती है और आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेज देती है और ऐसे भी मामले होते हैं, जिनमें पुलिस कहती है कि आरोपी को अब पुलिस हिरासत में रखने की आवश्यकता नहीं है।’’

राज्य सरकार के वकील ने कहा कि आरोपियों को जेल भेजे जाने से पहले उनसे पुलिस हिरासत में तीन दिन पूछताछ की गई थी।

साल्वे ने कहा, ‘‘मैं बताना चाहता हूं कि बयान दर्ज कर लिए गए हैं, कई वीडियो प्राप्त किये गए हैं, उन सभी को फॉरेंसिंक प्रयोगशाला में भेज दिया गया है और उनके (रिपोर्ट) आने के बाद चीजें काफी स्पष्ट हो जाएंगी। उनसे यहां पूछताछ करने की संभवत: आवश्यकता नहीं है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘साल्वे जी, यह कभी समाप्त न होने वाली कहानी नहीं होनी चाहिए।’’ पीठ ने गवाहों की सुरक्षा का मामला उठाया और कहा कि एसआईटी (विशेष जांच दल) ‘‘उन लोगों की पहचान करने के लिए सबसे उपयुक्त है जो सबसे कमजोर हैं या जिन्हें कल धमकाया जा सकता है या प्रभावित किया जा सकता है।’’

बयान दर्ज करने के मामले पर साल्वे ने कहा कि उन्हें रिकॉर्ड किया जा रहा है और अवकाश के बाद अदालतें फिर से खुलने के बाद यह प्रक्रिया शुरू होंगी।

पीठ ने कहा, ‘‘दशहरे के अवकाश के कारण फौजदारी अदालतें बंद हैं।’’

गौरतलब है कि लखीमपुर खीरी में किसानों का एक समूह उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के दौरे के खिलाफ तीन अक्टूबर को प्रदर्शन कर रहा था, तभी एक एसयूवी (कार) ने चार किसानों को कुचल दिया था। इससे गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो कार्यकर्ताओं और एक चालक की कथित तौर पर पीट कर हत्या कर दी थी, जबकि हिंसा की इस घटना में एक स्थानीय पत्रकार की भी मौत हो गई।

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