नई दिल्ली: बिहार के बाहुबली नेता और डीएम जी कृष्णैया हत्याकांड मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 69 वर्षीय पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह का नाम इन दिनों सुर्खियों में है। दरअसल बिहार की नीतीश कुमार सरकार द्वारा कैदियों के कारा नियमों में संशोधन के बाद आनंद मोहन को रिहा करने का आदेश जारी कर दिया है। बिहार में ये चर्चा आम है कि आनंद मोहन की रिहाई के लिए ही बिहार सरकार ने नियमों में संशोधन किया है। फिलहाल आनंद मोहन अपने बेटे और विधायक चेतन आनंद की शादी को लेकर पैरोल पर बाहर हैं और अब वह हमेशा के लिए जेल की कैद से स्वतंत्र हो जाएंगे।
कौन हैं आनंद मोहन
आनंद मोहन बिहार के एक रसूखदार राजनीतिक परिवार से आते हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम बहादुर सिंह तोमर आनंद मोहन के दादा थे। उनका जन्म 28 जनवरी 1954 को हुआ था। बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आने वाले आनंद मोहन ने इमरेजेंसी के दौरान कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी और महज 17 साल की उम्र में राजनीति के मैदान में कूद पड़े। बिहार की राजनीति में जातियों की अहमियत हमेशा से रही है। राजपूत समुदाय से आने वाले आनंद मोहन ने समाज वादी नेता परमेश्वर कुंवर को अपना राजनीतिक गुरू बनाया और पिछड़े बनाम अगड़े की राजनीतिक लड़ाई में राजपूतों के नेता बनकर उभरे। आनंद मोहन ने साल 1980 में समाजवादी क्रांति सेना की स्थापना की।
जनता दल के टिकट पर वह साल 1990 में माहिषी विधानसभा सीट से विधायक बने। उनकी राजनीति इस समय तक चल चुकी थी और कहा जाता है कि राजनेता रहते हुए वह एक ऐसे गिरोह के लीडर थे तो आरक्षण के विरोध के लिए कुख्यात था। आनंद मोहन साल 1996 के आम चुनावों में शिवहर लोकसभा सीट से जेल में रहते हुए भी चुनाव जीत गए। इसके बाद उनका कद बिहार की राजनीति में और ज्यादा बढ़ गया। 1999 में आनंद मोहन ने बीजेपी ज्वाईन की। बाद में आनंद मोहन ने कांग्रेस से भी हाथ मिलाया।
दलित IAS की हत्या का आरोप और सजा
जब बिहार में आनंद मोहन का रसूख चरम पर था तब साल 1994 में गोपालगंज जिले में एक ऐसी घटना हुई जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। 5 दिसंबर 1994 को गोपालगंज के दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की भीड़ ने पिटाई की और गोली मारकर हत्या कर दी। इस मामले में आनंद मोहन और उनकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया गया। इन लोगों पर भीड़ को उकसाने का आरोप था। पटना हाई कोर्ट ने मामले में साल 2007 में अपना फैसला सुनाया और आनंद मोहन को दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई। 2008 में उनकी सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया। आनंद मोहन की पत्नी लवली इस मामले में बरी हो गईं।
आनंद मोहन की पत्नी लवली भी राजनीति में सक्रिय हैं और साल 2010 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव और साल 2014 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा। लवली साल 2015 में हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर (HAMS) की उम्मीदवार बनीं, लेकिन विधानसभा चुनाव हार गईं। आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद राष्ट्रीय जनता दल से विधायक हैं। आनंद मोहन जेल में रहते हुए 'कैद में आजाद कलम' और 'स्वाधीन अभिव्यक्ति' भी लिख चुके हैं।