कार भले ही नशे में धुत ड्राइवर द्वारा चलाई गई हो, फिर भी बीमा कंपनी शुरू में तीसरे पक्ष को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी: केरल हाई कोर्ट
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 1, 2023 06:35 PM2023-02-01T18:35:18+5:302023-02-01T18:48:46+5:30
चेन्नई: केरल हाई कोर्ट ने एक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि बीमा कंपनी दुर्घटना के शिकार/तीसरे पक्ष को शुरू में मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी है, भले ही बीमा पॉलिसी शर्तें चालक के नशे में होने पर मुआवजे के भुगतान के लिए बाध्य नहीं करती हों।
जस्टिस सोफी थॉमस ने कहा कि भले ही शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामले में दुर्घटना पर बीमा पॉलिसी में मुआवजे को शामिल नहीं किया गया हो, लेकिन बीमाकर्ता को शुरुआत में तीसरे पक्ष को भुगतान करना होगा और फिर बाद में वह चालक और मालिक से पुनर्भुगतान ले सकता है।
कोर्ट ने कहा, 'भले ही, पॉलिसी प्रमाणपत्र में यह शर्त हो कि नशे की हालत में वाहन चलाना पॉलिसी के नियमों और शर्तों का उल्लंघन है, फिर भी बीमा कंपनी मुआवजे के भुगतान के लिए उत्तरदायी है। निस्संदेह जब चालक नशे में है तो उसकी चेतना और इंद्रियां ठीक से काम नहीं करती और ये उसे वाहन चलाने के लिए अयोग्य बना देती हैं। लेकिन चूंकी उल्लंघन करने वाले वाहन का तीसरे प्रतिवादी-बीमा कंपनी के साथ वैध रूप से बीमा किया गया था और अपीलकर्ता/दावेदार एक तीसरा पक्ष है इसलिए कंपनी शुरुआत में उसे मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी है, लेकिन कंपनी प्रतिवादी 1 और 2 (ड्राइवर और मालिक) से यह राशि फिर से हासिल करने की पात्र है।'
क्या है पूरा मामला, जानिए
कोर्ट ने दरअसल एक अपील पर सुनवाई करते हुए यह अहम फैसला दिया। इसमें मोटर दुर्घटना क्लेम ट्रिब्यूनल (एमएसीटी) द्वारा दिए गए मुआवजे की राशि पर असंतुष्टी जताते हुए फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
मामला 2013 से जुड़ा है जब अपीलकर्ता एक ऑटोरिक्शा में यात्रा कर रहा था। इसी दौरान उसकी दुर्घटना हो गई जब पहले प्रतिवादी द्वारा चलाई जा रही एक कार ने ऑटोरिक्शा को टक्कर मार दी।
अपीलकर्ता सड़क गिर गया और उसे गंभीर चोटें आईं। उन्हें एक अस्पताल में भर्ती कराया गया और सात दिनों तक उनका इलाज किया गया और उन्होंने दावा किया कि डिस्चार्ज होने के बाद भी उन्हें छह महीने तक आराम करना पड़ा।
अपीलकर्ता पेशे से ड्राइवर था और उसकी मासिक आय 12,000 रुपये थी। अपीलकर्ता ने बाद में 4 लाख के मुआवजे का दावा करते हुए एमएसीटी का दरवाजा खटखटाया, लेकिन न्यायाधिकरण ने केवल 2.4 लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया।
इसके बाद असंतुष्ट अपीलकर्ता ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने कहा कि कार के चालक के खिलाफ दायर मामूली मामले की चार्जशीट से पता चलता है कि वह नशे की हालत में कार चला रहा था। बीमा कंपनी ने कहा कि वह बीमाधारक को क्षतिपूर्ति देने के लिए उत्तरदायी नहीं है क्योंकि चालक शराब के नशे में वाहन चला रहा था।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि अगर पॉलिसी सर्टिफिकेट में यह शर्त है कि नशे की हालत में वाहन चलाना पॉलिसी के नियमों और शर्तों का उल्लंघन है, तो भी बीमा कंपनी तीसरे पक्ष को मुआवजे के भुगतान के लिए उत्तरदायी है।
हालांकि, चूंकि इस मामले में ड्राइवर और मालिक की अंतिम देनदारी है, इसलिए उन्हें बीमा कंपनी द्वारा भुगतान की गई मुआवजा राशि की प्रतिपूर्ति करनी होगी।
इसलिए, अदालत ने बीमा कंपनी को अपीलकर्ता के बैंक खाते में 7% प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ मूल मुआवजे सहित कमाई के हुए नुकसान, दर्द, पीड़ा, खर्च के नुकसान के लिए 39,000 रुपये की अतिरिक्त राशि जमा कराने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह राशि कार के मालिक और चालक से वसूलने का भी निर्देश दिया।