Karnataka Assembly Elections: कर्नाटक में 1985 के बाद से कोई भी दल लगातार दो बार चुनाव में जीत हासिल नहीं की, भाजपा की नजर 38 साल पुराने इतिहास पर, ये 10 बड़े मुद्दे

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 29, 2023 09:19 PM2023-03-29T21:19:23+5:302023-03-29T21:20:47+5:30

Karnataka Assembly Elections: जनार्दन रेड्डी का कल्याण राज्य प्रगति पक्ष (केआरपीपी), वाम दल, बहुजन समाज पार्टी, एसडीपीआई (प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की राजनीतिक शाखा) और असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) कुछ चुनिंदा सीट पर चुनाव लड़ेगी।

Karnataka Assembly Elections No party won two consecutive assembly elections in Karnataka since 1985 BJP eyeing 38 years old history these 10 big issues | Karnataka Assembly Elections: कर्नाटक में 1985 के बाद से कोई भी दल लगातार दो बार चुनाव में जीत हासिल नहीं की, भाजपा की नजर 38 साल पुराने इतिहास पर, ये 10 बड़े मुद्दे

कांग्रेस और जद (एस) ने क्रमश: 124 और 93 सीट के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है।

Highlightsभाजपा ने 150 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है। 2सी और 2डी की दो नयी आरक्षण श्रेणियां बनाई गई थीं।कांग्रेस और जद (एस) ने क्रमश: 124 और 93 सीट के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है।

Karnataka Assembly Elections: निर्वाचन आयोग द्वारा कर्नाटक में विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के किए जाने साथ ही राजनीतिक दलों के बीच सत्ता के लिए लड़ाई तेज हो गयी है।

यह देखना होगा कि क्या सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) चार दशक पुराने चलन को समाप्त कर राज्य में लगातार दो बार विधानसभा चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाती है या कांग्रेस सत्ता में लौटकर 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी चुनौती पेश करने में सफल होगी। कर्नाटक में 1985 के बाद से कोई भी राजनीतिक दल लगातार दो बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सका है।

भाजपा इस इतिहास को फिर से लिखने और दक्षिण भारत में अपने गढ़ को बनाए रखने के लिए बेहद उत्सुक है। कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में खुद को मुख्य विपक्षी दल के रूप में स्थापित करने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए सत्ता हासिल करने की इच्छुक है।

साथ ही इस बात पर भी नजर रखने की जरूरत है कि क्या पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा के नेतृत्व वाला जनता दल (सेक्युलर) किसी भी दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होने पर सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाकर "किंगमेकर" के रूप में उभर पाएगा। कांग्रेस और जद (एस) ने क्रमश: 124 और 93 सीट के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है।

पिछले दो दशकों की तरह कर्नाटक में 10 मई को होने वाले चुनाव में इस बार भी त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलने की उम्मीद है, अधिकतर क्षेत्रों में कांग्रेस, भाजपा और जद (एस) के बीच सीधी लड़ाई होगी। जहां आम आदमी पार्टी (आप) भी राज्य में कुछ पैठ बनाने का प्रयास कर रही है।

वहीं दूसरे छोटे दल जैसे खनन कारोबारी जनार्दन रेड्डी का कल्याण राज्य प्रगति पक्ष (केआरपीपी), वाम दल, बहुजन समाज पार्टी, एसडीपीआई (प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की राजनीतिक शाखा) और असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) कुछ चुनिंदा सीट पर चुनाव लड़ेगी।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कर्नाटक चुनाव में सत्ता विरोधी लहर एक महत्वपूर्ण कारक है, क्योंकि मतदाताओं ने किसी भी पार्टी को लगातार जनादेश नहीं दिया है। यह आखिरी बार वर्ष 1985 में हुआ था, जब रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सत्ता में वापस आई थी। पुराने मैसूरु (दक्षिणी कर्नाटक) क्षेत्र के वोक्कालिगा क्षेत्र में जद (एस) का दबदबा है।

जहां एक ओर कांग्रेस का वोट आधार पूरे राज्य में समान रूप से फैला हुआ है, वहीं भाजपा का वोट बैंक उत्तर और मध्य क्षेत्रों में वीरशैव-लिंगायत समुदाय के लोगों के बड़ी संख्या में मौजूद रहने के कारण स्पष्ट है। कर्नाटक की कुल आबादी में लिंगायत करीब 17 फीसदी, वोक्कालिगा 15 फीसदी, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 35 फीसदी, अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति 18 फीसदी, मुस्लिम करीब 12.92 फीसदी और ब्राह्मण करीब तीन फीसदी हैं। भाजपा ने विधानसभा में पूर्ण बहुमत सुनिश्चित करने के लिए कम से कम 150 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है।

भाजपा 2018 जैसी स्थिति से बचना चाहती है, जब वह शुरुआत में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई थी, और बाद में उसे सत्ता बचाने के लिए कांग्रेस और जद (एस) के विधायकों के दलबदल पर निर्भर रहना पड़ा था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बार-बार कर्नाटक का दौरा करने के अलावा गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के चुनावी राज्य में होने से भाजपा का चुनाव प्रचार तेजी से चल रहा है। लेकिन, भाजपा को सत्ता पर फिर से काबिज होने के लिए जुझारू कांग्रेस का मुकाबला करना होगा, जिसने भ्रष्टाचार को राजनीतिक चर्चा का केंद्रीय विषय बनाने का प्रयास किया है।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए होने वाले प्रचार में विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से इन अहम मुद्दों को उठाया जा सकता है।

1-भ्रष्टाचार: हाल ही में रिश्वत के एक मामले में भाजपा विधायक मदल विरुपक्षप्पा और उनके बेटे की गिरफ्तारी ने सत्तारूढ़ भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। कांग्रेस ने विभिन्न "घोटालों" और ठेकेदारों के निकाय द्वारा 40 प्रतिशत कमीशन शुल्क की ओर इशारा करते हुए भ्रष्टाचार को अपने चुनाव प्रचार अभियान का एक प्रमुख विषय बना दिया है।

2-आरक्षण: कर्नाटक सरकार 'धार्मिक अल्पसंख्यकों' के लिए चार प्रतिशत आरक्षण समाप्त करने और इसे राज्य के दो प्रमुख समुदायों के मौजूदा आरक्षण में जोड़ने के अपने फैसले की घोषणा कर चुकी है। कर्नाटक में अल्पसंख्यकों के लिए चार फीसदी आरक्षण अब समान रूप से वितरित किया जाएगा।

राज्य के वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के मौजूदा आरक्षण में जोड़ा जाएगा। वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के लिए पिछले साल बेलगावी विधानसभा सत्र के दौरान 2सी और 2डी की दो नयी आरक्षण श्रेणियां बनाई गई थीं। कर्नाटक मंत्रिमंडल ने धार्मिक अल्पसंख्यकों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) श्रेणी के तहत लाने का फैसला किया।

3-विकास: भाजपा मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न विकास परियोजनाओं और सामाजिक कल्याण की पहलों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करेगी, जबकि कांग्रेस और जद (एस) सत्ता में रहने के दौरान अपने ट्रैक रिकॉर्ड का प्रदर्शन करेंगे।

4-महंगाई: कांग्रेस और जद (एस) इसे एक प्रमुख मुद्दा बनाएंगे, विशेष रूप से रसोई गैस और ईंधन की बढ़ती हुई कीमतें। भाजपा का चुनाव अभियान कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार के प्रबंधन, मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान हुई आर्थिक प्रगति और कैसे एक उभरता हुआ भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, इस पर निर्भर करेगा।

5-चुनावी वादे: सत्तारूढ़ भाजपा, कांग्रेस और जद (एस) द्वारा किए गए चुनावी वादों के फायदे और नुकसान की बारीकी से पड़ताल की जाएगी। कांग्रेस और जद (एस) करीबी जांच के दायरे में आएंगे। भाजपा पहले ही आरोप लगा चुकी है कि कांग्रेस अपने चुनावी वादों को पूरा नहीं करती है।

6- स्पष्ट जनादेश: सभी तीनों प्रमुख राजनीतिक दल - भाजपा, कांग्रेस और जद (एस) पूर्ण बहुमत प्राप्त करने की आवश्यकता पर जोर देंगे।

7-जाति की राजनीति: राजनीतिक दल विभिन्न जातियों के लोगों को लुभाने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे और अपने वोट आधार को मजबूत करना प्रतिस्पर्धी दलों के प्रमुख एजेंडे में से एक होगा।

8-सांप्रदायिकता और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति: कांग्रेस ने भाजपा पर विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए हिजाब, हलाल, अज़ान और टीपू सुल्तान जैसे विभाजनकारी एवं विवादित मुद्दों को उठाने का आरोप लगाया है, जबकि भाजपा ने कांग्रेस पर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है।

9- नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी कारक: कांग्रेस अडाणी विवाद, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिनायकवाद जैसे विभिन्न मुद्दों पर प्रधानमंत्री को निशाना बनाएगी। भाजपा विदेश में दिए गए बयान को लेकर राहुल गांधी की आलोचना करेगी।

10-वंशवाद की राजनीति: भाजपा द्वारा वंशवाद की राजनीति को लेकर कांग्रेस और जद (एस) को निशाना बनाए जाने की उम्मीद है। 

Web Title: Karnataka Assembly Elections No party won two consecutive assembly elections in Karnataka since 1985 BJP eyeing 38 years old history these 10 big issues

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