CJI पिता पर फिर भारी पड़े जस्टिस चंद्रचूड़, दो साल में दूसरी बार पलटा फैसला

By आदित्य द्विवेदी | Published: September 28, 2018 08:21 AM2018-09-28T08:21:07+5:302018-09-28T08:21:07+5:30

IPC 497 and right to privacy: सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 को खत्म कर दिया है। इसके बाद विवाहेत्तर संबंध अब अपराध नहीं रहे। जानें जस्टिस चंद्रचूड़ से क्या है इसका गहरा कनेक्शन...

Justice DY Chandrachud overtune his CJI fathers judgement on IPC 497 and right to privacy | CJI पिता पर फिर भारी पड़े जस्टिस चंद्रचूड़, दो साल में दूसरी बार पलटा फैसला

CJI पिता पर फिर भारी पड़े जस्टिस चंद्रचूड़, दो साल में दूसरी बार पलटा फैसला

नई दिल्ली, 28 सितंबरः किसी समाज में 'जनरेशन गैप' एक बड़ा फैक्टर होता है। दो जनरेशन के बीच की सोच, विचार और व्यवहार में काफी फर्क हो सकता है। इसका अप्रतिम उदाहरण पेश किया है जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने। उन्होंने पिछले दो साल में अपने मुख्य न्यायाधीश पिता के दो बड़े फैसलों को बदल दिया है। 

पहला फैसला है कि आईपीसी की धारा 497 को समाप्त करने का, जिसके बाद विवाहेत्तर संबंध अब अपराध नहीं रहे। दूसरे फैसला निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार की श्रेणी में शामिल करने का रहा है। इन दोनों मुद्दों पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाई वी चंद्रचूड़ ने अलग फैसला सुनाया था।

व्यभिचार अब अपराध नहीं

सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक करार दे दिया है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने महिलाओं के सम्मान और लोकतंत्र का हवाला देते हुए अंग्रेजों के जमाने के इस व्यभिचार कानून का खात्मा कर दिया। 

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस ए एम खानविलकर शामिल थे।

1985 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने जस्टिस आरएस पाठक और जस्टिस एएन सेन के साथ आइपीसी की धारा-497 की वैधता को बरकरार रखा था। उस फैसले में कहा गया कि अमूमन संबंध बनाने के लिए फुसलाने वाला पुरुष होता ना कि महिला।

निजता मौलिक अधिकार है

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल निजता को मौलिक अधिकार करार दिया था। लेकिन 1976 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने एक मामले में अभूतपूर्व फैसला सुनाते हुए कहा था कि निजता जीवन के अधिकार के तहत मौलिक अधिकार नहीं है।

इस पीठ में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एएन राय, जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़, जस्टिस पीएन भगवती, जस्टिस एमएस बेग और जस्टिस एचआर खन्ना शामिल थे। 41 साल बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने पिता के उस फैसले में कई खामियों का जिक्र किया था।   

Web Title: Justice DY Chandrachud overtune his CJI fathers judgement on IPC 497 and right to privacy

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