नयी दिल्ली, 30 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि एक चिकित्सक को अपने क्षेत्र में नयी जानकारियों से खुद को अद्यतन करना होता है, जिसके लिए उसे देश-विदेश में सम्मेलनों में शामिल होने की जरूरत होती है तथा महज इसलिए कि वह विदेश गया था, इसे मेडिकल लापरवाही नहीं कहा जा सकता।
न्यायमूर्ति हेमंग गुप्ता और न्यायूर्ति वी. रामसुब्रमण्यन की पीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के एक आदेश को निरस्त करते हुए कहा, जिसने बॉम्बे हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च सेंटर और एक चिकित्सक को 14.18 लाख रुपये ब्याज के साथ मृतक के कानूनी वारिस को अदा करने का निर्देश दिया था।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक मरीज की मौत को मेडिकल लापरवाही नहीं माना जा सकता है।
पीठ ने कहा, ‘‘चिकित्सक के विदेश यात्रा पर होने की इस तरह की दलील के संदर्भ में यह सर्वविदित है कि चिकित्सा पेशे से जुड़े व्यक्ति को क्षेत्र में नवीनतम घटनाक्रमों से खुद को अद्यतन करना होता है जिसके लिए उसे देश-विदेश में सम्मेलनों में शामिल होने की जरूरत पड़ सकती है। महज इसलिए कि वह विदेश गया था, यह मेडिकल लापरवाही नहीं कही जा सकती क्योंकि मरीज जिस अस्पताल में भर्ती था वहां विभिन्न विधाओं के विशेषज्ञ हैं।
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