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न्यायाधीशों को बाहरी दबाव में नहीं आना चाहिए: प्रधान न्यायाधीश

By भाषा | Updated: August 18, 2021 21:53 IST

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देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमण ने बुधवार को कहा कि न्यायाधीश न्याय देने के लिए अक्सर नैतिकता बनाम वैधता की दुविधा में फंस जाते हैं और कोई एक राय बनाने के लिए नैतिक साहस की आवश्यकता होती है जो कई लोगों को नाराज कर सकती है। इसके साथ ही उन्होंने जोर दिया कि न्यायाधीशों के लिए यह अनिवार्य है कि वे ऐसे बाहरी दबावों में नहीं आएं।सीजेआई ने यह भी कहा कि मामलों में निष्पक्षता बनाए रखना आसान गुण नहीं है और किसी भी न्यायाधीश को पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए सचेत प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा, "एक पहलू जिसे मैं रेखांकित करना चाहता हूं, वह है निर्णय लेने की प्रक्रिया ज्ञान और कानून के सिद्धांत से परे है। ऐसी राय बनाने के लिए नैतिक साहस की जरूरत है जो कई लोगों को नाराज कर सकती है। न्यायाधीशों के लिए अनिवार्य है कि वे ऐसे बाहरी दबावों से प्रभावित नहीं हों।’’ वह न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा के विदाई समारोह को संबोधित कर रहे थे जिसका आयोजन सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने किया था। उन्होंने कहा, ‘‘बंधु सिन्हा सत्यनिष्ठा, नैतिकता और अपने सिद्धांतों पर हमेशा खड़े रहने के दृढ़ विश्वास वाले व्यक्ति हैं। वह बेहद स्वतंत्र और निष्पक्ष हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘न्यायाधीश अक्सर अपने व्यक्तिगत विचार रखते हैं - अपने पूर्वाग्रह जो अनजाने में निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।" उन्होंने कहा कि सामाजिक परिस्थितियां, पालन-पोषण और जीवन के अनुभव अक्सर न्यायाधीशों की राय और धारणा को प्रभावित कर देते हैं। न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘लेकिन, जब हम एक न्यायाधीश का पद धारण करते हैं, तो हमें अपने पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए सचेत प्रयास करना चाहिए। आखिरकार, समानता, उद्देश्यपरकता और समरूपता, निष्पक्षता के महत्वपूर्ण पहलू हैं। साथ ही हमें उन सामाजिक आयामों को नहीं भूलना चाहिए जो हमारे सामने के हर मामले के केंद्र में हैं।" उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति सिन्हा ने इन मुद्दों को सराहनीय और सहजता से संतुलित किया और उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश के लिए आवश्यक गुणों को सही मायने में व्यक्त किया है।न्यायमूर्ति सिन्हा ने कहा कि वह न्यायाधीशों के प्रशिक्षण के समर्थक रहे हैं। उन्होंने कहा कि विनम्रता अपनी कमियों को पहचानने में है और वकीलों की युवा पीढ़ी को प्रशिक्षित करने की जरूरत है। एससीबीए के अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि यह गलत धारणा है कि न्यायाधीश सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक काम करते हैं और लंबी छुट्टियां लेते हैं। उन्होंने कहा कि वकील जानते हैं कि न्यायाधीश कितनी मेहनत करते हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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