रवीश कुमार ने यूँ दी अरुण जेटली को श्रद्धांजलि, लिखा-विशेष सम्मान किया जाना चाहिए

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 24, 2019 03:33 PM2019-08-24T15:33:34+5:302019-08-24T16:14:14+5:30

रविश कुमार ने अरुण जेटली के निधन पर लिखा, बग़ावत से सियासी सफ़र शुरू करने वाले जेटली आख़िर तक पार्टी के वफ़ादार बने रहे। एक ही चुनाव लड़े मगर हार गए। राज्य सभा के सांसद रहे। मगर अपनी काबिलियत के बल पर जनता में हमेशा ही जन प्रतिनिधि बने रहे।

journalist ravish kumar pays tribute arun jaitley | रवीश कुमार ने यूँ दी अरुण जेटली को श्रद्धांजलि, लिखा-विशेष सम्मान किया जाना चाहिए

वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने फेसबुक पर एक लेख लिखकर श्रद्धाजंलि दी है।

Highlightsरविश कुमार को मोदी सरकार के आलोचकों में गिना जाता है।रविश ने फेसबुक पर लिखा, जेटली अपनी काबिलियत के बल पर जनता में हमेशा ही जन प्रतिनिधि बने रहे

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दिग्गज नेता और पूर्व कैबिनेट मिनिस्टर अरुण जेटली का शनिवार को एम्स में निधन हो गया। वह 66 वर्ष के थे। अस्वस्थ जेटली का कई सप्ताह से एम्स में इलाज चल रहा था। 

जेटली को सांस लेने में दिक्कत और बेचैनी की शिकायत के बाद नौ अगस्त को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में भर्ती कराया गया था।

उनके निधन पर राजनीतिक हस्तियों, पत्रकारों, बॉलीवुड सितारों, खिलाड़ियों समेत तमाम लोग श्रद्धाजंलि दे रहे हैं। 

मोदी सरकार के आलोचकों में गिने जाने वाले वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने भी फेसबुक पर उन्हें याद किया है।

रवीश कुमार ने बांधे जेटली के तारीफों के पुल

"अलविदा जेटली जी

जब कोई नेता छात्र जीवन में राजनीति चुनता है तो उसका अतिरिक्त सम्मान किया जाना चाहिए और अंत-अंत तक टिका रह जाए तो उसका विशेष सम्मान किया जाना चाहिए। सुरक्षित जीवन को छोड़ असुरक्षित का चुनाव आसान नहीं होता है। 1974 में शुरू हुए जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में जेटली शामिल हुए थे। आपातकाल की घोषणा के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया क्योंकि रामलीला मैदान में जेपी के साथ वे भी मौजूद थे। बग़ावत से सियासी सफ़र शुरू करने वाले जेटली आख़िर तक पार्टी के वफ़ादार बने रहे। एक ही चुनाव लड़े मगर हार गए। राज्य सभा के सांसद रहे। मगर अपनी काबिलियत के बल पर जनता में हमेशा ही जन प्रतिनिधि बने रहे। उन्हें कभी इस तरह नहीं देखा गया कि किसी की कृपा मात्र से राज्य सभी की कुर्सी मिली है। जननेता नहीं तो क्या हुआ, राजनेता तो थे ही।

उनकी शैली में शालीनता, विनम्रता, कुटीलता, चतुराई सब भरी थी और एक अलग किस्म का ग़ुरूर भी रहा। मगर कभी अपनी बातों का वज़न हल्का नहीं होने दिया। बयानबाज़ी के स्पिनर थे। उनकी बात काटी जा सकती थी लेकिन होती ख़ास थी। वे एक चुनौती पेश करते थे कि आपके पास तैयारी है तभी उनकी बातों को काटा जा सकता है। लटियन दिल्ली के कई पत्रकार उनके बेहद ख़ास रहे और वे पत्रकारों के राज़दार भी रहे। लोग मज़ाक में ब्यूरो चीफ़ कहते थे।

वक़ालत में नाम कमाया और अपने नाम से इस विषय को प्रतिष्ठित भी किया। बहुत से वकील राजनीति में आकर जेटली की हैसियत प्राप्त करना चाहते हैं। जेटली ने बहुतों की निजी मदद की। तंग दिल नहीं थे।उनके क़रीब के लोग हमेशा कहते हैं कि ख़्याल रखने में कमी नहीं करते।

अरुण जेटली सुष्मा स्वराज, मनोहर पर्रिकर, अनंत कुमार, गोपीनाथ मुंडे जैसे नेता भाजपा में दूसरी पीढ़ी के माने गए। इनमें जेटली और सुष्मा अटल-आडवाणी के समकालीन की तरह रहे। जब गुजरात में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे तब जेटली दिल्ली में उनके वक़ील रहे। प्रधानमंत्री ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है कि दशकों पुराना दोस्त चला गया है। अरुण जेटली को अमित शाह भी याद करेंगे। एक अच्छा वक़ील और वो भी अच्छा दोस्त हो तो सफ़र आसान होता है।

उनके देखने और मुस्कुराने का अंदाज़ अलग था। कई बार छेड़छाड़ वाली मस्ती भी थी और कई बार हलक सुखा देने वाला अंदाज़ भी। जो भी थे अपनी बातों और अंदाज़ से राजनीति करते थे न कि तीर और तलवार से। जो राजनीति में रहता है वह जनता के बीच रहता है। इसलिए उसके निधन को जनता के शोक के रूप में देखा जाना चाहिए। सार्वजनिक जीवन को सींचते रहने की प्रक्रिया बहुत मुश्किल होती है। जो लोग इसे निभा जाते हैं उनके निधन पर आगे बढ़कर श्रद्धांजलि देनी चाहिए। अलविदा जेटली जी। आज का दिन बीजेपी के शालीन और ऊर्जावान नेताओं के लिए बहुत उदासी भरा होगा। मैं उनके प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता हूं। ओम शांति।"

Web Title: journalist ravish kumar pays tribute arun jaitley

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे