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झारखंड में शासन-व्यवस्था को नहीं मानते पत्थलगड़ी, ग्रामीण खुद को बताते हैं आदिवासी भारत और आदिमानव

By एस पी सिन्हा | Updated: January 22, 2020 16:06 IST

भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासी संस्कृति, भाषा, जीवनशैली व उनके अधिकारों को राज्यपाल की निगरानी में संवैधानिक संरक्षण दिया गया है. इसमें रूढ़ि प्रथा एवं ग्राम सभा को परिभाषित किया गया.

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ठळक मुद्देझारखंड के खूंटी जिले में पत्थलगड़ी के बाद अब एक नई विचारधारा तेजी से पांव पसार रही है.इसका नाम दिया गया है कुटुंब परिवार.

झारखंड के खूंटी जिले में पत्थलगड़ी के बाद अब एक नई विचारधारा तेजी से पांव पसार रही है. इसका नाम दिया गया है कुटुंब परिवार. इससे संबद्ध ग्रामीण खुद को आदिवासी भारत बताते हैं और कहते हैं कि वे आदिमानव हैं. खूंटी के कई ऐसे परिवार हैं, जिन्हें सरकारी व्यवस्था पर भरोसा नहीं है. इन परिवारों के सभी सदस्यों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर सरकारी व्यवस्था व योजनाओं का बहिष्कार किया है. बावजूद इसके पत्थलगड़ी की आड़ में समानांतर सरकार चलाने की साजिश में दर्ज सभी कांडों को वापस लेने के लिए हेमंत सरकार पूरी कोशिश में जुटी हुई है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार अब राष्ट्रपति सचिवालय के आदेश पर फाइल झारखंड मंत्रालय पहुंच गई है. मुख्य सचिव डा. डीके तिवारी के आदेश पर यह फाइल राजस्व निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग को सौंपी गई है. इस फाइल पर गृह कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग से भी मंतव्य लिया जा रहा है. 

यहां के लोगों का कहना है वे लोग खुद शासक हैं, इसलिए उनपर कोई शासन नहीं कर सकता है. ऐसे गांव के सभी लोगों के नाम के पहले एसी लिखा गया है. इसका मतलब वे बताते हैं कि एसी माने ईसा पूर्व. जिन लोगों ने ऐसा कदम उठाया है उसमें सभी परिवारों के प्रमाण पत्र, वोटर आइडी कार्ड, राशन कार्ड, आधार कार्ड, जॉब कार्ड, गैस कार्ड, पैन कार्ड संलग्न हैं. 

बहिष्कार करने वाले ग्रामीणों का कहना है कि वे केवल आदिवासी कानून मानेंगे, सरकारी कानून व सरकारी व्यवस्था तथा सरकारी योजनाओं से उनका कोई लेनादेना नहीं है. हम आदिवासी भारत हैं. भारतीय नहीं, इसलिए हम आदिवासी कुदरती एवं प्राकृतिक रूलिंग से संचालित होते हैं. ये केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार भारतीय ज्यूडिशियल व्यवस्था से संचालित होते हैं. इसलिए कानूनी व्यवस्था के कानून एवं प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, आधार कार्ड को हम सपरिवार अखिल आदिवासी वापस कर रहे हैं.  

भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासी संस्कृति, भाषा, जीवनशैली व उनके अधिकारों को राज्यपाल की निगरानी में संवैधानिक संरक्षण दिया गया है. इसमें रूढ़ि प्रथा एवं ग्राम सभा को परिभाषित किया गया. इसके तहत ऐसे क्षेत्र जिसे राष्ट्रपति के आदेश से अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया हो. पांचवीं अनुसूची के अनुसार ग्राम सभा सर्वोपरि होता है. 

खूंटी में पत्थलगड़ी के मामले में इस कानून को तोड-मरोडकर समझाने पर विवाद होता रहा है. भोले-भाले आदिवासियों को बरगला कर उन्हें प्रशासन और सरकार के खिलाफ भडकाया जाता है. इस विरोध को भी इसी की कड़ी माना जा रहा है. भोले-भाले आदिवासियों का कहना है कि ज्यादा जानकारी चाहिए तो गुजरात जाओ. गुजरात में कुंवर केशरी हैं, जो इस संबंध में पूरी जानकारी देंगे. 

जानकारों के अनुसार गुजरात के कुंवर केशरी ने ग्रामीणों के मन-मस्तिष्क में एक नई विचारधारा को जन्म दे दिया है, जिससे हर युवा व बच्चा-बच्चा तक सरकारी व्यवस्था से बागी हो चुका है. यहां के ग्रामीणों को सरकार का कोई पहचान नहीं चाहिए. उन्हें आधार कार्ड, राशन कार्ड, जॉब कार्ड, मतदाता पहचान पत्र नहीं चाहिए. 

उनका कहना है कि उन्हें सरकार की कोई योजना नहीं चाहिए, क्योंकि वे राजा हैं. यही कारण है कि ग्रामीण एक-एक कर अपने सभी सरकारी दस्तावेज वापस करने लगे हैं. वे दस्तावेज भी वापस करने किसी मुख्यालय में नहीं जाते हैं, बल्कि एक लिफाफे में भरकर राज्यपाल के नाम पोस्ट कर देते हैं. खूंटी जिले में गांव के गांव सरकारी व्यवस्था का बहिष्कार करने लगे हैं.

प्राप्त जानकारी के अनुसार, इनका कहना है कि वे लोग यहां के मूल निवासी हैं न कि भारतीय नागरिक. ब्यूरोक्रेट्स हमारे सेवादार हैं. हम सिर्फ राष्ट्रपति व राज्यपाल को ही मानते हैं और सिर्फ कुदरती शासन व्यवस्था से संचालित होते हैं. केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार भारतीय ज्यूडिशियल व्यवस्था से संचालित होते हैं. कुटुंब परिवार की विचारधारा वाले ग्रामीण प्रेस विज्ञप्ति से लेकर आदेश-निर्देश तक भी नन ज्यूडिशियल स्टांप पर जारी करते हैं. 

उनका कहना है कि पूरा भारत आदिवासी भारत है, इसके बाद ही कोई और है. वे आदि मानव हैं, इसलिए उन्हें दूसरा उनका सेवादार (डीसी-एसपी व प्रशासन) उनका प्रमाण पत्र कैसे बना सकता है? उन्हें इस तरह की जानकारी किसने दी, इसपर ग्रामीण कुछ बताते नहीं हैं. 

उन लोगों का कहना है कि उनकी जमीन के खाते ऑनलाइन होने और आधार से लिंक होने शुरू हुए तो उनका शक गहराया. इसके बाद जब उनलोगों ने आधार कार्ड पर पढ़ा कि उस पर आम आदमी का अधिकार लिखा है तो वे आक्रोशित हो गए. विरोध शुरू किया कि वे आम आदमी तो हैं नहीं.

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