जम्मू-कश्मीर में 'सदर-ए-रियासत' और 'वजीर-ए-आजम' व्यवस्था लागू करने की उठी मांग, जानिए क्या है ये मामला 

By रामदीप मिश्रा | Published: April 2, 2019 11:51 AM2019-04-02T11:51:33+5:302019-04-02T11:51:33+5:30

जम्मू-कश्मीर में साल 1965 के दौरान जीएम सादिक वजीर-ए-आजम और कर्ण सिंह सदर-ए-रियासत थे। इन्हीं के समय संविधान संशोधन हुआ था। इस संशोधन में राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त करने का अधिकार दिया गया था।

jammu kashmir: what is sadr e Riyasat and wazir e azam, demands omar abdullah national conference | जम्मू-कश्मीर में 'सदर-ए-रियासत' और 'वजीर-ए-आजम' व्यवस्था लागू करने की उठी मांग, जानिए क्या है ये मामला 

जम्मू-कश्मीर में 'सदर-ए-रियासत' और 'वजीर-ए-आजम' व्यवस्था लागू करने की उठी मांग, जानिए क्या है ये मामला 

नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे पर किसी भी तरह के हमले को स्वीकार नहीं करने की बात कही है। उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान 'सदर-ए-रियासत' और 'वजीर-ए-आजम' की पुनर्बहाली का मुद्दा उठाया है और नई बहस को जन्म दे दिया। उमर अब्दुल्ला के इस बयान पर पीएम मोदी ने कांग्रेस से जवाब मांगा। आइए जानते हैं क्या है 'सदर-ए-रियासत' और 'वजीर-ए-आजम का मामला...     

1965 तक रही यह व्यवस्था लागू

आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह 'वजीर-ए-आजम' (प्रधानमंत्री) का पद हुआ करता था। यह व्यवस्था 1965 तक सूबे में जारी रही थी। यहां 1965 में छठवां संविधान संशोधन किया गया था, जिसमें सदर-ए-रियासत पद को राज्यपाल और वजीर-ए-आजम को मुख्यमंत्री के पद के रूप में बदल दिया गयाा। जम्मू-कश्मीर के पहले 'वजीर-ए-आजम' मेहर चंद महाजन थे।

पहले होता था सदर-ए-रियासत शासन लागू 

जम्मू-कश्मीर में साल 1965 के दौरान जीएम सादिक वजीर-ए-आजम और कर्ण सिंह सदर-ए-रियासत थे। इन्हीं के समय संविधान संशोधन हुआ था। इस संशोधन में राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त करने का अधिकार दिया गया था। साथ ही साथ सदर-ए-रियासत को चुनने का अधिकार समाप्त कर दिया गया था। इससे पहले यहां राज्य प्रशासन के विफल होने की दशा में केवल सदर-ए-रियासत शासन लागू होता था, लेकिन बाद में राष्ट्रपति शासन को लागू किया जाने लगा है।

HC ने संविधान संशोधन को बताया था असंवैधानिक

'सदर-ए-रियासत' और 'वजीर-ए-आजम' का मामला उस समय भी सुर्खियों में आया था जब साल 2015 में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने छठवें संविधान संशोधन को असंवैधानिक करार दिया था और कहा था कि यह संशोधन संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है। साथ-साथ उसने कहा था कि यह राज्य विधायिका पर निर्भर करता है कि वह इस पद को बदलती है या फिर इस को जारी रखती है।

उमर अब्दुल्ला का बयान

'सदर-ए-रियासत' और 'वजीर-ए-आजम' को लेकर उमर अब्दुल्ला का कहना है कि उनकी पार्टी (नेशनल कॉन्फ्रेंस) जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे पर किसी भी तरह के हमले को स्वीकार नहीं करेगी। वह 'सदर-ए-रियासत' और 'वजीर-ए-आजम' समेत राज्य के विलय की शर्तों की पुनर्बहाली की कोशिश करेगी। जम्मू -कश्मीर का भारत में विलय कुछ शर्तों के साथ हुआ था और अगर उनसे छेड़छाड़ हुई तो विलय की पूरी योजना ही सवालों के दायरे में आ जाएगी। जम्मू-कश्मीर बाकी राज्यों की तरह नहीं है, जो राज्य हिंदुस्तान में मिल गए। हम भारत के दूसरे राज्यों से इतर कुछ शर्तों के साथ उनसे मिले थे। 

पीएम नरेंद्र मोदी ने उठाए सवाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उमर अब्दुल्ला के बयान पर कांग्रेस और महागठबंधन की पार्टियों के नेताओं से कहा कि वे इस पर अपना रुख स्पष्ट करें। उन्होंने सवाल किया कि हिंदुस्तान के लिए दो प्रधानमंत्री? क्या आप इससे सहमत हैं? कांग्रेस को जवाब देना होगा और महागठबंधन के सभी सहयोगियों को जवाब देना होगा। क्या कारण है और उन्हें ऐसा कहने की हिम्मत कैसे हुई।

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