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Jammu-Kashmir: LoC पर पलायन करते परिवारों के लिए मदद करते स्थानीय लोग, हालात सामान्य होने पर पटरी पर लौटी जिंदगी

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: May 13, 2025 14:00 IST

Jammu-Kashmir: उनकी आंखें दहशत से भरी हुई थीं, सामान जल्दी-जल्दी पैक किया जा रहा था और पूरी आबादी भाग रही थी।

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Jammu-Kashmir:  सात मई को कश्मीर और जम्मू की सीमाओं पर खौफ के दिन के रूप में याद किया जाएगा। उड़ी, पुंछ, टंगधार और एलओसी के पास के अन्य इलाकों के लोगों के लिए यह एक भयावह अनुभव की शुरुआत थी, क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव हाल के वर्षों में पहले कभी नहीं देखा गया था। अगले तीन दिनों तक गोले, मिसाइल, ड्रोन और गोलियों का लगातार आदान-प्रदान हुआ। इस हिंसा में जम्मू-कश्मीर में बच्चों सहित बीस से अधिक लोगों की जान चली गई और तबाही का मंजर सामने आया।

बारामुल्ला में काम करने वाले उड़ी के एक निवासी का कहना था कि यह दृश्य भयावह था। 7 मई की सुबह, जब सीमा पार से हमलों की खबर आई, तो वह घर वापस भागा। रास्ते में उसने देखा कि परिवार भाग रहे थे, उनकी आंखें दहशत से भरी हुई थीं, सामान जल्दी-जल्दी पैक किया जा रहा था और पूरी आबादी भाग रही थी।

इस अराजक यात्रा के दौरान उसे एक संदेश मिला, जिसे सुनकर उसकी आंखें भर आईं। संदेश में लिखा था कि अगर कोई समस्या है, तो मेरा घर आपके लिए खुला है। कृपया अपने परिवार के साथ आइए। मेरा दिल आपके लिए खुला है। यह संदेश नूर उल हक से आया, जो बारामुल्ला के निवासी हैं और उनके परिचित हैं। वे भावुक स्वर में कहते थे कि मैं आभारी हूं कि ऐसे लोग मौजूद हैं जो दुख और संकट की घड़ी में भी मदद करने को तैयार थे।

नूर अकेले नहीं थे। कश्मीर और जम्मू में, दिल और घर असाधारण करुणा के साथ खुल गए। सोशल मीडिया पर शरण और आश्वासन देने वाले संदेशों की बाढ़ आ गई। ऐसी ही एक पोस्ट में लिखा था:’ उड़ी में चल रही स्थिति के कारण 15 से अधिक परिवारों को पहले ही हमारे पास आश्रय मिल गया है। हमारे पास अभी भी जगह उपलब्ध है, और सभी के लिए मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है।

किसी भी जरूरतमंद का स्वागत है, हमारे दरवाजे खुले हैं।’ बारामुल्ला में, प्रसिद्ध इस्लामी मदरसा दारुल उलूम शीरी ने उड़ी से विस्थापित 200 से अधिक निवासियों को शरण दी। पिछले 6 दिनों में, इसने उन्हें भोजन, आश्रय और आवश्यक सहायता प्रदान की है।

जम्मू में भी एकजुटता के कार्य किए गए। पुंछ के निवासी अहमद ने कहा कि उन्हें और उनके परिवार को जम्मू में दोस्तों के घर में शरण मिली। वे कहते थे कि कई परिवार यहां आकर बस गए, कुछ दोस्तों के साथ रहने के लिए, तो कुछ का अजनबियों ने स्वागत किया। लोगों ने अपने दरवाजे खोल दिए। आश्रय से परे भी सहायता मिली। एसोसिएशन और स्थानीय संगठनों ने चिकित्सा सहायता और राहत के लिए कदम बढ़ाया।

एसोसिएशन के अध्यक्ष मीर गुलाम नबी कहते थे कि संकट के जवाब में, हमने बारामुल्ला केमिस्ट्री एसोसिएशन के तहत एक चिकित्सा और राहत शिविर शुरू किया। हम मुफ़्त दवाइयाँ, भोजन, परिवहन और यहां तक कि वित्तीय मदद भी दे रहे हैं। यह उड़ी, टंगधार और करनाह के लोगों के साथ खड़े होने का हमारा तरीका है।

जिस दिन गोलाबारी शुरू हुई, उसी दिन शिविर ने काम करना शुरू कर दिया और तब से प्रभावित लोगों की सेवा करना जारी रखा है। नबी कहते थे कि हम केवल यही उम्मीद करते हैं कि हमारे सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों को जो कुछ भी सहना पड़ रहा है, उससे किसी को भी न गुजरना पड़े।

टॅग्स :एलओसीजम्मू कश्मीरभारतपाकिस्तान
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