कश्मीर में आतंकी खतरे के बीच होंगे पंचायत के उप चुनाव, खाली पड़े हैं 13 हजार से अधिक पंच-सरपंच के पद
By सुरेश एस डुग्गर | Published: October 8, 2020 12:46 PM2020-10-08T12:46:30+5:302020-10-08T12:46:30+5:30
कश्मीर में दिसंबर-2018 में पंचायत चुनाव कराए गए थे। हालांकि, आतंकियों के धमकी के कारण कई सीटों पर चुनाव नहीं हो सके थे। वहीं, कई प्रतिनिधियों ने आतंकियों की धमकी के कारण त्यागपत्र दे दिया है।
पंचायत प्रतिनिधियों पर लगातार आतंकी खतरे के बीच चुनाव आयोग ने उन पंचायत हलकों मे पंचों और सरपंचों के रिक्त पड़े पदों के लिए उप चुनाव करवाने की घोषणा की है जो वर्ष 2018 में नहीं जा सके थे। साथ ही इनमें कई ऐसे भी हैं जहां आतंकी धमकियों के बाद चुने गए प्रतिनिधियों ने त्यागपत्र दे दिए थे।
प्रदेश में पंचों व सरपंचों के कुल 37882 पद हैं। इनमें 4290 सरपंच व 33592 पंच के हैं। दिसंबर 2018 में आखिरी बार चुनाव हुए तो 12209 पदों पर आतंकी खतरे के कारण मतदान ही नहीं हो पाया। अब चुनाव आयोग ने 12168 पंचों व 1089 सरंपचों को चुनने के लिए चुनावों की घोषणा करते हुए कहा है कि अगले एक-दो दिनों में वह चुनाव की तारीखों का ऐलान कर देगा।
दिसंबर में हुए थे चुनाव पर राह नहीं आसान
यहां दिसम्बर 2018 में अंतिम बार चुनाव हुए थे पर पंचायत प्रतिनिधियों की राह आसान नहीं रही। उन्हें हमेशा खतरा महसूस होता रहा। खतरा कितना था इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्ष 2018 के बाद 22 पंचों-सरंपचों को मौत के घाट उतारा जा चुका है।
उनके द्वारा की जाने वाली सुरक्षा मुहैया करवाने की मांग पर पुलिस का कहना था कि इतने लोगों को सुरक्षा मुहैया नहीं करवाई जा सकती। हालांकि मात्र 60 को मुहैया करवाई गई सुरक्षा किसी को भी संतुष्ट नहीं कर पाई।
अजय पंडित की हत्या के बाद बीमा कवर
इस साल पंचायत व निकाय प्रतिनिधियों को बीमा कवर देने का फैसला उस समय लिया गया जब आतंकियों ने जून में कश्मीरी पंडित सरपंच अजय पंडित की हत्या कर दी थी।
इसके उपरांत पंचों व सरपंचों द्वारा सामूहिक त्यागपत्र की धमकी दी गई। नतीजा था कि प्रशासन बीमा कवर व सुरक्षा मुहैया करवाने को राजी हो गया।
प्रदेश में 30 सालों के आतंकवाद के इतिहास में एक हजार से अधिक राजनीतिज्ञों की हत्याएं आतंकी कर चुके हैं। इनमें से अधिकतर के पास सुरक्षा भी थी। फिर भी आतंकी उन्हें मारने में कामयाब रहे थे।
अभी तक करीब 2000 पंच-सरपंच आतंकी धमकियों के कारण त्यागपत्र भी दे चुके हैं। उन्होंने अपने त्यागपत्रों की घोषणा अखबारों में इश्तहार के माध्यम से की थी।
दरअसल दूर-दराज के आतंकवादग्रस्त इलाकों में रहने वाले राजनीतिज्ञों को अक्सर कश्मीर में पिछले 30 सालों में मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। ऐसे में एक बार फिर पचों और सरपंचों के चुनाव की अटकलों ने खतरा बढ़ा दिया है।