जम्मू-कश्मीर: अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से आतंकवाद में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या में आई कमी, जानें क्या कहते हैं आंकड़े
By भाषा | Published: February 9, 2020 07:03 PM2020-02-09T19:03:34+5:302020-02-09T19:04:01+5:30
पिछले साल पांच अगस्त को पूववर्ती जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों --लद्दाख और जम्मू कश्मीर-- में विभाजित करने की घोषणा के बाद राज्य में कई तरह की पाबंदियां लगाई गई थीं।
जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को पिछले साल अगस्त में रद्द किए जाने के बाद से कश्मीर में आतंकवाद में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। सुरक्षा एजेंसियों द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल पांच अगस्त से औसतन पांच युवक प्रत्येक महीने आतंकवाद में शामिल हुए, जबकि इससे पहले प्रति महीने यह दर 14 थी।
पांच अगस्त के पहले और इसके बाद के आतंकवाद से जुड़े घटनाक्रमों की तुलना करने वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवादियों की अंत्येष्टि में भारी भीड़ एकत्र होनी भी अतीत की बातें हो गई हैं क्योंकि अब कब्रगाहों पर सिर्फ मुट्ठी भर करीबी रिश्तेदार ही देखे जाते हैं।
गौरतलब है कि आतंकवादियों के अंतिम संस्कार के समय काफी संख्या में युवक आतंकवाद का रास्ता चुनते थे। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘ये ऐसे दृष्टांत हैं जब आतंकवादी महज दर्जन भर करीबी रिश्तेदारों की मौजूदगी में दफन किए जाते हैं।’’ इससे पहले सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए आतंकवादियों के जनाजे में भारी भीड़ जुटा करती थी। कई बार 10,000 से अधिक लोग जमा हो जाते थे। आतंकवाद में शामिल होने के लिए स्थानीय युवाओं को एक आतंकी द्वारा अपने परिवार के सदस्यों से की गई आखिरी अपील भी प्रेरित करता था। इस तरह की आवाज की रिकार्डिंग कुछ युवाओं को बंदूक उठाने के लिए प्रेरक के तौर पर काम करती थी।
हालांकि, पांच अगस्त 2019 के बाद इस तरह की कोई अपील दर्ज नहीं की गई। ऐसा संचार माध्यमों पर पाबंदी और बदले हुए परिदृश्य के चलते आंशिक रूप से हुआ। इसमें कहा गया है कि पथराव की घटनाओं में भी कमी दर्ज की गई है। आंसू गैस, पैलेट गन के इस्तेमाल में स्वभाविक रूप से कमी आई है।
गौरतलब है कि पिछले साल पांच अगस्त को पूववर्ती जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों --लद्दाख और जम्मू कश्मीर-- में विभाजित करने की घोषणा के बाद राज्य में कई तरह की पाबंदियां लगाई गई थीं।