'मेडिकल इंश्योरेंस के लिए मरीज का अस्पताल में भर्ती होना जरूरी नहीं', उपभोक्ता फोरम का बड़ा फैसला
By अंजली चौहान | Published: March 15, 2023 09:15 AM2023-03-15T09:15:56+5:302023-03-15T09:53:59+5:30
फोरम ने आगे कहा, "अगर मरीज को भर्ती नहीं किया जाता है, या नई तकनीकों के कारण भर्ती होने के बाद कम समय में इलाज किया जाता है, तो बीमा कंपनी यह कहकर दावे को खारिज नहीं कर सकती कि मरीज को भर्ती नहीं किया गया था।"
वडोदरा: उभोक्ता फोरम ने मेडिकल इंश्योरेंस से जुड़े मामले को लेकर अहम फैसला सुनाया है। फोरम का कहना है कि कोई भी व्यक्ति जो बीमाधारक है वह भले ही 24 घंटे से कम समय के लिए अस्पताल में भर्ती हुआ हो, वह बीमा का दावा करने के लिए सक्षम है।
वडोदरा उपभोक्ता फोरम ने अपने एक आदेश में बीमा कंपनियों के लिए बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि कंपनियां बीमा की राशि का भुगतान उपभोक्ता को करें भले ही वह अस्पताल में 24 घंटे से कम समय के लिए ही क्यों न भर्ती हुआ हो। अदालत ने कहा कि नई तकनीक आने के कारण कभी-कभी रोगियों का इलाज कम समय में या अस्पताल में भर्ती हुए बिना ही हो जाता है।
फोरम ने आगे कहा, "अगर मरीज को भर्ती नहीं किया जाता है, या नई तकनीकों के कारण भर्ती होने के बाद कम समय में इलाज किया जाता है, तो बीमा कंपनी यह कहकर दावे को खारिज नहीं कर सकती कि मरीज को भर्ती नहीं किया गया था।"
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, उपभोक्ता फोरम का ये आदेश वडोदरा के रहने वाले रमेश चंद्र जोशी की याचिका पर आया है। जोशी ने साल 2017 अगस्त महीने में नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी क्योंकि कंपनी ने बीमा राशि का भुगतान करने से इनकार कर दिया था।
जोशी की पत्नी को 2016 में डर्मेटोमायोसाइटिस हुआ था और उन्हें अहमदाबाद के लाइफकेयर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च सेंटर में भर्ती कराया गया था। अगले दिन इलाज के बाद उसे छुट्टी दे दी गई।
इसके बाद जोशी ने 44,468 रुपये का मेडिकल क्लेम दायर किया, लेकिन कंपनी ने नियमों का हवाला देते हुए इसे खारिज कर दिया और तर्क दिया कि उन्हें पॉलिसी में क्लॉज के अनुसार, लगातार 24 घंटे तक भर्ती नहीं किया गया था।
इसके बाद जोशी ने उपभोक्ता फोरम का रूख किया और उन्होंने उपभोक्ता फोरम के सामने सभी दस्तावेज प्रस्तुत किए और कहा कि उनकी पत्नी को 24 नवंबर, 2016 को शाम 5.38 बजे भर्ती कराया गया और 25 नवंबर, 2016 को शाम 6.30 बजे छुट्टी दे दी गई, जो 24 घंटे से अधिक थी।
इस पर फोरम ने कहा कि भले ही यह मान लिया जाए कि मरीज को 24 घंटे से कम समय के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन वर्तमान समय में उपचार के नए तरीके और दवाएं विकसित हो गई है और डॉक्टर उसी के अनुसार इलाज करते हैं।
फोरम ने कहा कि बीमा कंपनियां ये तय नहीं कर सकती कि मरीज को कब और कितने समय के लिए अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत है या नहीं। इसके साथ ही बीमाकर्ता का इस असुविधा के कारण जो मानसिक उत्पीड़न हुआ है उसके लिए जोशी को तीन हजार रुपये और मुकदमेबाजी के खर्च के लिए दो हजार रुपये का भी भुगतान करने का आदेश दिया है।