'व्यवधान' संसदीय कामकाज का प्रमुख तरीका बनकर उभरा है: वेंकैया नायडू
By भाषा | Published: August 31, 2021 09:09 PM2021-08-31T21:09:01+5:302021-08-31T21:09:01+5:30
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने मंगलवार को खेद जताते हुए कहा कि 'व्यवधान' संसदीय आचरण और कामकाज के प्रमुख तरीके के रूप में उभरा है। साथ ही उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि निष्क्रिय विधायिकाएं संवैधानिकता के महान सिद्धांत को समाप्त करती हैं। नायडू ने कहा कि निष्क्रिय विधायिकाएं देश के लिए कानून और नीतियां बनाने से पहले हितधारकों के साथ व्यापक चर्चा में बाधा बनती हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के व्यवधान विधायिकाओं के प्रति कार्यपालिका की जवाबदेही के सिद्धांत को नकारते हैं, जिससे मनमानी की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है। नायडू ने ये टिप्पणी पूर्व राष्ट्रपति की पहली पुण्यतिथि के अवसर पर 'प्रणब मुखर्जी स्मृति व्याख्यान' में की। व्याख्यान का विषय 'संविधानवाद: लोकतंत्र और समावेशी विकास की प्रतिभूति' था। इस कार्यक्रम का आयोजन ''प्रणब मुखर्जी लिगेसी फाउंडेशन'' द्वारा किया गया। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का जिक्र करते हुए नायडू ने कहा, '' वह जिस तरह के सर्वसम्मति बनाने वाले थे, मुझे यकीन है कि यदि आज वह जीवित होते, तो प्रणब दा ने पूर्व प्रभाव से लागू होने वाले कराधान को समाप्त करने के संसद में हाल में पारित विधेयक का स्वागत किया होता।''इस विधेयक का उद्देश्य भारतीय संपत्ति के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण पर लगाए गए सभी पूर्वव्यापी कराधान को समाप्त करना है, जिसे संसद द्वारा मानसून सत्र में पारित किया गया। नायडू ने कहा कि भारत की आजादी के 75वें वर्ष में विधायिकाओं की पवित्रता बहाल करने के लिए एक ठोस शुरुआत करने की जरूरत है। उन्होंने याद किया कि मुखर्जी संसद सहित विधायिकाओं में व्यवधान की बढ़ती प्रवृत्ति से बहुत आहत थे। उन्होंने कहा कि मुखर्जी विधायिकाओं में 'शिष्टता, मर्यादा और गरिमा' को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर देते थे।
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