INDEPENDENCE DAY SPECIAL: अपनी पहचान को मोहताज राष्ट्रगान जन-गण-मन की धुन के जनक कैप्टन राम सिंह ठाकुर

By अनुभा जैन | Published: August 12, 2021 06:10 PM2021-08-12T18:10:17+5:302021-08-12T18:11:46+5:30

1940 के दशक में इंडियन नेशनल आर्मी आई.एन.ए. या भारतीय राष्ट्रीय सेना में बैंडमास्टर के तौर पर कैप्टन सिंह ने अपनी बनाई धुनों से लोगों को देशभक्ति की भावना से ओत प्रोत करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. 

INDEPENDENCE DAY SPECIAL: Capt. Ram Singh Thakur, the father of the national anthem Jan-Gana-Mana, who is fascinated by his identity | INDEPENDENCE DAY SPECIAL: अपनी पहचान को मोहताज राष्ट्रगान जन-गण-मन की धुन के जनक कैप्टन राम सिंह ठाकुर

INDEPENDENCE DAY SPECIAL: अपनी पहचान को मोहताज राष्ट्रगान जन-गण-मन की धुन के जनक कैप्टन राम सिंह ठाकुर

लोग आज शायद आजादी के सिपाही कैप्टन राम सिंह ठाकुर को नहीं जानते होंगे पर कैप्टन सिंह की बनाई हमारे राष्ट्रगान जन-गण-मन की धुन आज बच्चे बच्चे के जहन में बसी हुई है. 1940 के दशक में इंडियन नेशनल आर्मी आई.एन.ए. या भारतीय राष्ट्रीय सेना में बैंडमास्टर के तौर पर कैप्टन सिंह ने अपनी बनाई धुनों से लोगों को देशभक्ति की भावना से ओत प्रोत करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. 

15 अगस्त 1914 में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के समीप स्थित खनियारा के ठाकुर परिवार में जन्में, कैप्टन सिंह ने 87 वर्ष की उम्र में लखनऊ में अंतिम सांस ली. हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश से लेखक राजेन्द्र राजन ने कैप्टन सिंह से धर्मशाला में 1999 में विशेष मुलाकात की. राजन ने कैप्टन सिंह के जीवन व समाज के लिये किये सिंह के महान योगदान को लोगों के सामने लाने के उददेश्य से ‘अनसंग कंपोजर ऑफ आई.एन.ए.ः कैप्टन राम सिंह ठाकुर’ नामक पुस्तक लिखी.

विशेष साक्षात्कार के दौरान मुझसे बात करते हुये राजन ने जानकारी दी कि 1922 में अपने स्कूल खत्म करने के साथ ही कैप्टन सिंह 1928 में धर्मशाला कंटोनमेंट में सेकेंड गोरखा राइफल्स की यूनिट बैंड में नये सैनिक के रूप में दाखिल हुये. बचपन से ही संगीत के प्रति विशेष रूझान रखने वाले सिंह शास्त्रीय, पश्चिमी और गाथागीत में विशेष दिलचस्पी रखते थे. उत्तर पश्चिम सीमांत क्षेत्र में खयबर-फक्तुनवाला युद्व में 1937-39 में अपने साहस का परिचय देने पर उन्हें किंग जॉर्ज 6 मेडल से नवाजा गया और कंपनी हवलदार मेजर के पद पर पदोन्नत किया गया.  

राष्ट्रगान बनाने के पीछे निहित उददेश्य पर बात करते हुये राजन ने जानकारी देते हुये कहा कि द्वितीय विश्वयुद्व के दौरान कैप्टन सिंह और उनकी बटालियन को जहाज से सिंगापुर के लिये रवाना किया गया. दिसंबर 1941 में जापानियों ने मलाया-थाइलैंड बॉर्डर पर आक्रमण करा जिसमें कई भारतीय सैनिकों को बंदी बनाया गया. 15 फरवरी 1942 सिंगापुर व मित्र देशों की सेनाओं ने जनरल फयूजीवारा के सम्मुख आत्मसमर्पण किया. जनरल ने लाखों की संख्या में भारतीय सैनिकों को 14 पंजाब रेजिमेंट के जनरल मोहन सिंह को सौंपा जो इंडियन नेशनल आर्मी आई.एन.ए. या भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन कर रहे थे.  

21 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आई.एन.ए. सत्ता में आई. बोस के नेतृत्व को देखते हुये सिंह सहित काफी संख्या में भारतीय बंदी भारत को ब्रिटिशर्स के चंगुल से मुक्त कराने के लिये आई.एन.ए. में शामिल हुये. इस दौरान बोस ने सिंह के संगीत के प्रति रूझान और एक संगीतकार के तौर पर उनकी प्रतिभा को गहराई से जाना और समझा. समय के साथ सिंह ने करीब 71 देशभक्ति के गीतों की धुनों की रचना की.

आई.एन.ए. के गठन जैसे महत्वपूर्ण कदम के साथ ही अब आजाद हिंद सरकार एक राष्ट्रगान बनाना चाहती थी. इसी कड़ी में, आई.एन.ए. में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली लक्ष्मी सहगल ने जन-गण-मन गाने का चुनाव किया जो रविंद्रनाथ टैगोर की कविता पर आधारित था. इसका हिंदी अनुवाद आबिद अली और कैप्टन सिंह ने किया. कैप्टन सिंह ने ही इस गाने जो आज हमारा राष्ट्रगान  है की धुन आई.एन.ए. के कौमी तराने के रूप में सिंगापुर में बनाई. 

किसी जाति, धर्म की भावना से परे यह गीत और इसकी धुन आज हर भारतवासी के मन में देशभक्ति की भावना जगाती है. कैप्टन सिंह और उनके ऑरकेस्टरा बैंड ने यह कौमी तराना या ‘सब सुख चैन की बरखा बरसे’ गीत के साथ पहली बार 23 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर के कैथे बिल्डिंग में शानदार प्रस्तुती दी. इसको सुन कर पूरा भवन देशभक्ति की एक अनूठी भावना व लहर से गूंज उठा. 

कैप्टन सिंह के इस प्रशंसनीय योगदान के लिये 23 जनवरी 1944 को उन्हें गोल्ड मैडल के साथ नेताजी बोस का लिखा साइटेशन आई.एन.ए. के सभी ऑफीसर्स के सम्मुख रंगून में प्रदान किया गया. भारतीय संबिधान सभा को करीब 3 वर्ष लग गये वन्दे मातरम की जगह आई.एन.ए. के कौमी तराना को स्वतंत्र भारत के राष्ट्रगान के लिये उपयुक्त व अनुकूल मानने में.

बाद में, कैप्टन सिंह ने आई.एन.ए. के कौमी तराना को महात्मा गांधी के सामने दिल्ली में प्रस्तुत किया. 1945 में ब्रिटिश सरकार ने कैप्टन सिंह की कंपोसिशन को ‘कदम कदम बढाये जा’ का नाम देकर आक्रोशित करने वाला मान इसकी रिकांेर्डिंग को कलकत्ता की ब्रिटिश ग्रामाफोन कंपनी में बैन कर दिया.

जबकि 15 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा लाल किले पर झंडा फहराने और अपने भाषण देने के साथ सिंह और उनके बैंड को आई.एन.ए. के कौमी तराना प्रस्तुत करने के लिये विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया. 1974 में उत्तर प्रदेश में प्रोविशनल आर्मड कॉन्सटेंबलरी बैंड से रिटायर होने के बाद कैप्टन सिंह को केन्द्र व राज्य सरकारों के महत्वपूर्ण सम्मानों व पुरूस्कारों से नवाजा गया. 

अंत में बेहद दुःख के साथ राजन ने यह कहते हुये अपनी बात खत्म की कि आज यह बेहद खेद की बात है कि भारतवासी अपने देश के इन महान रत्नों-शूरवीरों को पहचानते तक नहीं हैं. इनकी पहचान समय के साथ आज धूमिल सी होती जा रही है.

Web Title: INDEPENDENCE DAY SPECIAL: Capt. Ram Singh Thakur, the father of the national anthem Jan-Gana-Mana, who is fascinated by his identity

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