सुप्रीम कोर्ट में दायर पीआईएल में कहा गया, "विदेशी फंड के जरिये महिलाओं और बच्चों का हो रहा है धर्मांतरण"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: December 12, 2022 03:58 PM2022-12-12T15:58:02+5:302022-12-12T16:01:30+5:30

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच के सामने धर्मांतरण से जुड़े एक जनहित में कहा गया है कि विदेशी फंड के मदद से हो रहे धर्मंतरण में अनैतिक और हिंसक रणनीतियों का सहारा लिया जा रहा है और इसके माध्यम से मुख्यतः सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है।

In the PIL filed in the Supreme Court, it was said, "Women and children are being converted through foreign funds" | सुप्रीम कोर्ट में दायर पीआईएल में कहा गया, "विदेशी फंड के जरिये महिलाओं और बच्चों का हो रहा है धर्मांतरण"

फाइल फोटो

Highlightsविदेशी फंड की मदद से हो रहे धर्मांतरण के मुख्य निशाने पर महिलाएं और बच्चे हैंसुप्रीम कोर्ट में धर्मांतरण से संबंधित जनहित याचिका में कही गई है यह बातविदेशी फंड के मदद से हो रहे धर्मंतरण में अनैतिक और हिंसक रणनीतियों का सहारा लिया जा रहा है

दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में धर्मातरण के संबंध में दायर की गई एक जनहित के जरिये कोर्ट को बताया गया है कि भारत में विदेशी फंड की मदद से हो रहे धर्मांतरण का मुख्य निशाना यहां की महिलाएं और बच्चे हैं। इसके साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें विदेशी फंड की मदद से चल रहे धर्मांतरण को रोकने और इसके खिलाफ उचित कदम उठाने में विफल रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच के सामने इस जनहित याचिका को पेश करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील और याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि विदेशी फंड के मदद से हो रहे धर्मंतरण में अनैतिक और हिंसक रणनीतियों का सहारा लिया जा रहा है और मुख्यरूप से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है।

इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बीते 5 दिसंबर को कहा था कि कोई भी डोनेशन या फंड का धर्म परिवर्तन के लिए प्रयोग करना सही नहीं है और जबरन धर्म परिवर्तन को बेहद "गंभीर मुद्दा" है, जो सीधे देश की संविधान की भावना के खिलाफ है।

जनहित याचिका पर सुनवाई के क्रम में याचिकाकर्ता उपाध्याय ने लिखित तौर पर मांग की है कि कथित धर्मांतरण से संबंधित गतिविधियों को रोकने के लिए विदेशी वित्त पोषित गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) और व्यक्तियों के लिए एफसीआरए (विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम) के तहत बनाए गए नियमों की समीक्षा की जानी चाहिए।

इसके साथ ही याचिका में हवाला और अन्य तरीकों से आने वाले फंड से भी होने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की भी मांग की गई है। याचिका में कहा गया है, "सुप्रीम कोर्ट भारत के विधि आयोग से गैरकानूनी धर्मांतरण की जांच के लिए उपयुक्त कानून और उस संबंध में आवश्यक दिशानिर्देशों जारी करने का आदेश दे।"

इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट केंद्र और राज्यों को 'बेनामी' संपत्तियों और "धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन" में शामिल व्यक्तियों और संस्थानों की आय और संपत्ति को जब्त करने के लिए कदम उठाने का निर्देश जारी करे।

संबंधित याचिका के जरिये सुप्रीम कोर्ट से कहा गया है, "याचिका के माध्यम से अपील की जाती है कि विदेशी फंड के जरिये संचालित होने वाली मिशनरी और संस्थाएं भारतीय महिलाएं और बच्चों के धर्म परिवरतन की मंशा रखती है लेकिन केंद्र और राज्यों द्वारा अनुच्छेद 15 (3) के अनुसार धर्म परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। यह स्थिति इस कारण भी चिंताजनक है क्योंकि कई व्यक्ति और संगठन सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचितों और एससी-एसटी वर्ग के बड़े समूह का धर्मांतरण कर रहे हैं। इसके लिए वो या तो बल प्रयोग कर रहे हैं या फिर उन्हें प्रलोभन देकर उनकी गरीबी का फायदा उठा रहे हैं।

हमारे देश का संविधान भी कहता है कि गलत तरीके से होने वाले धर्मांतरण अनुच्छेद 21 के तहत जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार का हनन करते हैं। इस कारण इस पर सख्ती से लगाम लगाने की आवश्यकता है।

वहीं इस पूरे मसले पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रखते हुए कहा था कि वह इस तरह के अनैतिक माध्यमों से हो रहे धर्मांतरण पर राज्यों से और जानकारी इकट्ठी कर रहा है। इस कारण उसे जवाब पेश करने के लिए और वक्त चाहिए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि वो अब इस याचिका पर आगामी 12 दिसंबर को फिर से सुनवाई करेगा।

Web Title: In the PIL filed in the Supreme Court, it was said, "Women and children are being converted through foreign funds"

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