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कार्यकाल के अंतिम सप्ताह में दो घटनाओं ने कुछ तबकों में नाराज़गी पैदा कीः हामिद अंसारी

By भाषा | Updated: January 27, 2021 17:37 IST

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नयी दिल्ली, 27 जनवरी पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा है कि उनके कार्यकाल के अंतिम सप्ताम के दौरान दो घटनाओं से कुछ वर्गों में "नाराज़गी" पैदा की और समझा गया कि इनके कुछ "छिपे हुए अर्थ" थे।

अंसारी दीक्षांत समारोह में किए संबोधन और टीवी साक्षात्कार का जिक्र कर रहे हैं जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की आशंका का जिक्र किया था।

उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के तौर पर अंसारी का कार्यकाल 10 अगस्त 2017 को पूरा हुआ था। वह 2007 से 2017 तक इस पद पर रहे। उन्होंने अपनी नई किताब " बाई मैनी ए हैप्पी एक्सीटेंडः रीकलेक्शन ऑफ ए लाइफ" में अपने राजनयिक जीवन और राज्यसभा के सभापति के रूप में अपपे कई अनुभवों का उल्लेख किया है।

कार्यकाल के अपने अंतिम दिन का जिक्र करते हुए अंसारी ने कहा, " मुझे बाद में पता चला कि मेरे कार्यकाल के आखिरी सप्ताह में दो घटनाओं ने कुछ वर्गों में नाराजगी पैदा की और समझा गया कि उनके छिपे हुए अर्थ थे।"

पहला, बेंगलुरू के नेशनल लॉ स्कूल ऑफ यूनिवर्सिटी के 25वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करना जहां उसका विषय था, " दो आवश्यक वाद, क्यों बहुलदावाद और धर्मनिरपेक्षता हमारे लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं", जिसमें "मैंने सहिष्णुता से आगे जाकर स्वीकार्यता के लिए सतत बातचीत के जरिए सद्भाव को बढ़ावा देने पर जोर दिया, क्योंकि हमारे समाज के विभिन्न वर्गों में असुरक्षा की आशंका बढ़ी है, खासकर, दलितों, मुसलमानों और ईसाइयों में।"

दूसरा, राज्यसभा टीवी पर करण थापर को दिया साक्षात्कार था जो नौ अगस्त 2017 को प्रसारित हुआ जिसमें उपराष्ट्रपति के कार्य के सभी पहलुओं पर बातचीत की गई। इसमें 'अनुदार राष्ट्रवाद' और भारतीय समाज और राजनीति में मुसलमानों को लेकर धारणाओं के बारे सवाल भी शामिल थे।

रूपा पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक में अंसारी ने लिखा, " कुछ सवाल बेंगलुरु में मेरे संबोधन पर केंद्रित थे और कुछ अगस्त 2015 में ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत में दिए गए भाषण को लेकर भी थे। उनका जवाब देने के दौरान मैंने कहा, मुसलमानों में बेचैनी और असुरक्षा की भावना आ रही है। मैंने कहा कि जहां भी सकारात्मक कार्रवाई की जरूरत है वहां इसे किया जाना चाहिए और राय रखी कि भारतीय मुस्लिम अनूठे हैं और चरमपंथी विचारधारा से आकर्षित नहीं होते हैं।"

इसके बाद उन्होंने अपने कार्यकाल और राज्यसभा के सभापति के तौर पर अपने अंतिम दिन—10 अगस्त 2017 के बारे में बताया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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