विकल्प के अभाव में संभलकर कदम रख रही है जदयू, असमंजस में शिवसेना!
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 13, 2019 07:35 AM2019-06-13T07:35:22+5:302019-06-13T07:35:22+5:30
प. बंगाल में अप्रैल-मई 2021 में चुनाव से पहले अक्तूबर-नवंबर 2020 में बिहार में चुनाव होने हैं. तब जाहिर हो जाएगा कि जदयू-भाजपा गठबंठन कितना मजबूत है.
वेंकटेश केसरी। नई दिल्ली, 12 जून: फिलहाल कोई विकल्प नहीं दिखने के कारण भाजपा के दो प्रमुख सहयोगी जदयू और शिवसेना संभलकर कदम रख रहे हैं. जदयू ने जहां खुद को मोदी सरकार से बाहर रखा है तो शिवसेना केंद्रीय मंत्रिमंडल में पर्याप्त प्रतिनिधित्व और मिले मंत्रालयों से नाराज बताई जा रही है. फिलहाल वह लोकसभा में उपाध्यक्ष पद के लिए प्रयासरत है.
नीतीश ने भले ही कहा हो कि उनकी पार्टी एनडीए का हिस्सा है, लेकिन यह साफ हो चुका है कि यह गठबंधन केवल बिहार तक ही सीमित है. यानी बिहार के बाहर दोनों दल आमने-सामने आ सकते हैं. जदयू की मुखर चुप्पी के बीच भाजपा आलाकमान भी ज्यादा मान-मनुहार के मूड में नहीं दिखता. जदयू के नेता प्रशांत किशोर के प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए विधानसभा चुनाव में रणनीति बनाने को भी भाजपा सहजता से नहीं स्वीकारेगी.
राजनीतिक गतिविधियों से जाहिर है कि बंगाल में विधानसभा चुनाव जीतना अब भाजपा का बड़ा लक्ष्य है. प. बंगाल में अप्रैल-मई 2021 में चुनाव से पहले अक्तूबर-नवंबर 2020 में बिहार में चुनाव होने हैं. तब जाहिर हो जाएगा कि जदयू-भाजपा गठबंठन कितना मजबूत है.
महाराष्ट्र में असमंजस
महाराष्ट्र में शिवसेना जहां फिर राज्य की नंबर एक पार्टी बनना चाहती है, तो भाजपा ने सीटों के बराबर बंटवारे के मुद्दे पर उसे असमंजस में रखा है. राज्य में अगले तीन से चार महीने में चुनाव होने वाले हैं. शिवसेना बराबर की सीटों पर चुनाव के साथ मुख्यमंत्री पद भी ढाई-ढाई साल रखने के पक्ष में बताई जा रही है. लोकसभा चुनाव और स्थानीय निकाय चुनावों में जोरदार जीत के बाद भाजपा की चुप्पी से जाहिर है कि वह अपना नंबर एक स्थान छोड़ने के लिए तैयार नहीं है.