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सरकार के आर्थिक पैकेज का तुरंत असर कम, दीर्घकाल में दिखेगा ज्यादा, बढ़ेगी महंगाई: अर्थशास्त्री

By भाषा | Updated: May 21, 2020 18:53 IST

अर्थशास्त्रियों ने यह भी कहा है कि जिस प्रकार से मजदूरों का पलायन हो रहा है और बड़ी संख्या में कामगार काम धंधे वाले राज्यों से निकलकर अपने गृह राज्यों में जा रहे हैं, उससे आने वाले समय में आपूर्ति श्रृंखला गड़बड़ा सकती है और महंगाई बढ़ सकती है।

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ठळक मुद्देआर्थिक राहत पैकेज का आने वाले दो-तीन साल में इसका अर्थव्यवस्था पर प्रभाव दिख सकता है।चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) चार प्रतिशत तक गिर सकता है।

नयी दिल्ली: सरकार के 21 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज को लेकर अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इसका तुरंत कोई असर नहीं दिखेगा लेकिन आने वाले दो-तीन साल में इसका अर्थव्यवस्था पर प्रभाव दिख सकता है। उनका कहना है कि आर्थिक गतिविधियों को गति पकड़ने में समय लगेगा और यही वजह है कि चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) चार प्रतिशत तक गिर सकता है। हां, यदि सरकार प्रोत्साहन पैकेज नहीं देती तो यह गिरावट कहीं बड़ी होती।

अर्थशास्त्रियों ने यह भी कहा है कि जिस प्रकार से मजदूरों का पलायन हो रहा है और बड़ी संख्या में कामगार काम धंधे वाले राज्यों से निकलकर अपने गृह राज्यों में जा रहे हैं, उससे आने वाले समय में आपूर्ति श्रृंखला गड़बड़ा सकती है और महंगाई बढ़ सकती है। नेशनल काउंसिल आफ एपलायड इकोनोमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के प्रोफेसर सुदीप्तो मंडल ने कहा, ‘‘जहां तक मेरा अनुमान है सरकार पहले ही अर्थव्यवस्था को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 10 से 12 प्रतिशत तक का प्रोत्साहन दे चुकी है, केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था में नकदी डालने के कई कदम उठाये हैं। अब राज्यों को भी उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का पांच प्रतिशत तक बाजार से उधार उठाने की अनुमति दे दी गई है।

इससे आने वाले समय में अर्थव्यवस्था में बड़ी मांग का जोर बन सकता है।’’ उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोविड-19 से प्रभावित अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये आत्म निर्भर भारत अभियान के तहत पिछले सप्ताह पांच किस्तों में 21 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की। इसमें छोटे उद्योगों को 3 लाख करोड़ रुपये का सस्ता कर्ज सुलभ कराने, गैर-बैंकिग वित्तीय कंपनियों को राहत देने, प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन देने जैसे उपाय किये गये हैं। मंडल ने कहा, ‘‘ऐसे में मेरी चिंता यही है कि मांग बढ़ाने को जिस प्रकार बड़ा प्रोत्साहन दिया जा रहा है अगर आने वाले समय में उसके मुताबिक आपूर्ति नहीं बढ़ती है तो मुद्रास्फीति दबाव बढ़ेगा। कई छोटे उद्योग बंद हो चुके हैं, श्रमिक पलायन कर गये हैं, ऐसे में आपूर्ति श्रृंखला गड़बड़ा सकती है और महंगाई बढ़ सकती है।’’

नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक फाइनेंस एण्ड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) के प्रोफेसर एन आर भानुमूर्ति ने भी कुछ इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुये कहा कि तुरंत प्रभाव की यदि बात की जाये तो सरकार का पैकेज इस मामले में छोटा रह गया है जबकि दीर्घकाल के लिहाज से यह बड़ा दिखाई देता है। उन्होंने कहा, ‘‘पैकेज में तुरंत राहत वाले उपाय कम है, ज्यादातर उपाय दीर्घकाल में लाभ पहुंचाने वाले हैं। अल्पकालिक उपायों में कामगारों को मुफ्त भोजन, उद्यमियों और फर्मो को ईपीएफओ भुगतान में तीन महीने की राहत, टीडीएस, टीसीएस दर में कमी, मनरेगा के तहत अतिरिक्त राशि का प्रावधान और छोटी कंपनियों के बड़ी कंपनियों में फंसे बकाया का 45 दिन में भुगतान जैसे कुछ उपाय किये गये हैं।’’ वहीं, सुदीप्तो मंडल ने कहा, ‘‘सरकार ने इस राहत प्रक्रिया को काफी जटिल बना दिया है।

अच्छा तो यही होता कि सरकार श्रमिकों, कामगारों को सीधे उनके हाथ में कुछ पैसा और राशन देने की व्यवस्था कर देती। पूरे श्रमिक वर्ग को एकमुश्त कुछ हजार रुपये और राशन उपलब्ध कराया जाता तो यह राशि जीडीपी का मुश्किल से दो प्रतिशत तक ही होती है, लेकिन इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया गया। सरकार ने किसान, महिलाओं, भवन निर्माण श्रमिकों को, बुजुर्गों को अलग अलग तरह से मदद दी है।’’ मंडल ने कहा कि सरकार ने आर्थिक पैकेज की घोषणा तो बाद में की है, उससे पहले ही सरकार अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने के कई उपाय कर चुकी है।

आर्थिक पैकेज की घोषणायें तो भविष्य के लिये हैं। इनमें ज्यादातर उपाय कर्ज आधारित हैं, सरकार उस पर केवल गारंटी देगी। कौन कितना कर्ज लेगा, कर्ज मांग बढ़ेगी अथवा नहीं बढ़ेगी यह सब आने वाला समय बतायेगा। लेकिन इससे पहले सरकार ने बाजार से 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक अतिरिक्त पूंजी जुटाने का फैसला किया है। करीब आठ लाख करोड़ रुपये उधार लेना पहले से बजट में प्रस्तावित है। राज्यों को भी तीन प्रतिशत के बजाय पांच प्रतिशत तक उधार उठाने की अनुमति दे दी गई है। रिजर्व बैंक ने भी अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने के कई कदम उठाये हैं इन सबको मिलाकर 10 से 12 प्रतिशत का प्रोत्साहन पैकेज तो पहले ही अर्थव्यवस्था को दिया जा चुका है।

नई घोषणायें तो कर्ज प्रोत्साहन और आर्थिक सुधारों को बढ़ाने के बारे में हैं। भानुमूर्ति ने कहा कि आर्थिक पैकेज का सरकार के राजकोषीय घाटे में ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना की 1.70 लाख रुपये के पैकेज को मिलाकर रोजकोषीय घाटा दो प्रतिशत तक बढ़ सकता है। सरकार ने 2020- 21 के बजट में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। वहीं वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक वृद्धि दर चार प्रतिशत तक घट सकती है। यदि सरकार ने तमाम प्रोत्साहन उपाय नहीं किये होते तो यह गिरावट 12- 13 प्रतिशत तक हो सकती थी। 

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