'मैं तो कानून और संविधान का सेवक हूं, मुझे उसी के दायरे में कार्य करना है', कॉलेजियम विवाद पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: December 8, 2023 12:33 PM2023-12-08T12:33:23+5:302023-12-08T12:36:13+5:30

भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कॉलेजियम खत्म करने के विषय में कहा कि वो खुद "कानून और संविधान के सेवक" हैं। इस कारण से वो वही कार्य कर सकते हैं, जो उसके दायरे में आते हों।

'I am a servant of the law and the Constitution, I have to work within its limits', Chief Justice Chandrachud said on the collegium dispute | 'मैं तो कानून और संविधान का सेवक हूं, मुझे उसी के दायरे में कार्य करना है', कॉलेजियम विवाद पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा

फाइल फोटो

Highlightsसीजेआई ने कॉलेजियम खत्म करने के विषय में कहा कि वो खुद "कानून और संविधान के सेवक" हैंचीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वो वही काम करेंगे, जो कानून और संविधान के दायरे में होंहालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कॉलेजियम में अभी भी बहुत सुधार की संभावनाएं मौजूद हैं

नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कॉलेजियम खत्म करने के विषय में वकील वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा के सवाल का जबाव देते हुए कहा कि वो खुद "कानून और संविधान के सेवक" हैं। इस कारण से वो वही कार्य कर सकते हैं, जो उसके दायरे में आते हों।

समाचरा वेबसाइट हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने वकील मैथ्यूज से कहा, “एक वकील के रूप में आपको अपने दिल की इच्छा पूरी करने की आज़ादी है लेकिन चूंकि मैं इस न्यायालय का न्यायाधीश हूं। इस कारण मैं कानून और संविधान का सेवक हूं। मुझे स्थिति और निर्धारित कानून का पालन करना होगा।”

सीजेआई की टिप्पणियां नेदुमपारा की उस दलील पर थी, जिसमें वो उच्च न्यायिक स्थाओं में कॉलेजियम सिस्टम को समाप्त करने के विषय में उसने पूछ रहे थे। हालांकि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यापालिका में कई नये सुधारों की शुरुआत हुई है लेकिन न्यायपालिका को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए कॉलेजियम और वरिष्ठ पदनाम से संबंधित सुधारों की भी बहुत आवश्यकता है।

नेदुम्पारा वकीलों के उस समूह की ओर से सीजेआई के सामने पेश हुए थे, जिन्होंने मौजूदा न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया और वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित करने की प्रणाली के खिलाफ अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं।

इनमें से एक याचिका में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग या एनजेएसी के पुनरुद्धार का समर्थन करते हुए सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने की मांग की गई है।

मालूम हो कि साल 2014 में नरेंद्र मोदी की एनडीए सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम पारित किया था, जिससे संवैधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक वैकल्पिक प्रणाली स्थापित की गई थी। उस प्रक्रिया में जजों की नियुक्ति में सरकार के लिए एक बड़ी भूमिका तय करने का प्रस्ताव था लेकिन साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने उसके खिलाफ फैसला सुनाते हुए कहा कि एनजेएसी कानूनी रूप से असंवैधानिक है क्योंकि उसके जरिये न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश हो सकती है।

हालांकि संविधान न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली का प्रावधान नहीं करता है, बावजूद उसके सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के पहले तीन या पांच न्यायाधीशों का कॉलेजियम न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नाम प्रस्तावित करते हैं। साल 1982 और 1998 के बीच कॉलेजियम प्रणाली अस्तित्व में आई।

केंद्र सरकार द्वारा वरिष्ठ न्यायाधीशों के अधिक्रमण और सामूहिक तबादलों की पृष्ठभूमि में शीर्ष अदालत ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करने और इसे बाहरी प्रभावों से बचाने के लिए कॉलेजियम प्रणाली को संस्थागत बनाया। साल 1999 में केंद्र ने सीजेआई के परामर्श से सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के मामलों में दोनों संस्थानों के लिए प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) तैयार किया।

वकीलों की याचिका में एनजेएसी के फैसले की समीक्षा की मांग की गई है, जिसमें तर्क दिया गया है कि 2015 के फैसले को शुरू से ही रद्द कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इसने कॉलेजियम प्रणाली को पुनर्जीवित किया था। याचिकाकर्ताओं ने कॉलेजियम प्रणाली को "भाई-भतीजावाद और पक्षपात का पर्याय कहा था।

वहीं दूसरी याचिका में वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले की समीक्षा के लिए दबाव डाला था। जिसमें शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों में वकीलों के एक वर्ग को वरिष्ठ वकील के रूप में नामित करने की प्रथा की पुष्टि की गई है, जिसमें कहा गया है कि इस प्रथा को उचित नहीं ठहराया जा सकता है।"

Web Title: 'I am a servant of the law and the Constitution, I have to work within its limits', Chief Justice Chandrachud said on the collegium dispute

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