झारखंडः पिछले 10 महीनों में भुखमरी से 12 लोगों की हुई मौत, लेकिन रघुबर सरकार मानने को नहीं है तैयार
By रामदीप मिश्रा | Published: July 18, 2018 11:00 AM2018-07-18T11:00:29+5:302018-07-18T11:00:29+5:30
खबर के अनुसार, जिस बुधनी की भुखमरी के चलते मौत हुई है पीड़िता सितला के करीबी पड़ोसियों में से एक रही थी। सितला का भी भर पेट भोजन मिलना एक सपना है।
नई दिल्ली, 18 जुलाईः झारखंड में एक परिवार भूखे पेट सोने को मजबूर है और वह भुखमरी के कगार पर पहुंच गया है, लेकिन सूबे की सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है और वह अक्सर कहती आई है कि राज्य में किसी की भी भुखमरी से मौत नहीं होती है। बताया गया है कि इस साल जनवरी में आदिवासी महिला बुधनी सोरेन की मौत भुखमरी से हुई और उसने अपने जीवन के आखिरी दिन जंगल में पत्ते खा कर बिताए थे, लेकिन सरकार अब भी ये मानने को तैयार नहीं है।
न्यूज18 के मुताबिक, झारखंड के गिरिडीह जिले के सेवातंद गांव में एक परिवार भुखमरी की कगार पर है। इस मामले पर गिरिडीह के डिप्टी कमिश्नर मनोज का कहना है कि जब तक कि पूरा परिवार न मर जाए, इसे 'भुखमरी से मौत' नहीं कहा जा सकता है। करीब एक महीने पहले सावित्री देवी की मौत को भी 'भुखमरी की मौत' कहा जा रहा था, लेकिन उसका पूरा परिवार जिंदा था। अगर ये भुखमरी थी, तो परिवार के बाकी लोग भी मर जाते।
खबर के अनुसार, जिस बुधनी की भुखमरी के चलते मौत हुई है पीड़िता सितला के करीबी पड़ोसियों में से एक रही थी। सितला का भी भर पेट भोजन मिलना एक सपना है। हालांकि, वह सोचती है कि उनके बच्चों को अनाज के लिए भटकना न पड़े। उसका कहना है कि वह नहीं चाहती कि उसका शरीर जब ठंडा पड़े तो उसके बच्चे आस-पास हों। उसने बताया जिस समय बुधनी की मौत हुई थी उस समय उसका ठंडा शरीर भूख से चिल्लाया था। उस समय उसे अनाज की जरूरत थी।
रिपोर्ट के अनुसार, सितला अपने से ज्यादा अपने बच्चों के लिए चिंतित रहती है। हर हफ्ते वह कई किलोमीटर पैदल चलकर सरकारी राशन की दुकान पर जाती, लेकिन उसे खाली हाथ लौटना पड़ता है। भले ही वो पिछले 25 सालों से सेवातंद गांव में रह रही है, लेकिन पिछले दो सालों से उसका अंत्योदय कार्ड बेकार हो गया है। बताया गया कि बुधनी को मिलाकर पिछले 10 महीनों में कम से कम 12 लोगों की कथित रूप से भुखमरी से मौत हुई है, लेकिन रघुबर दास की सरकार ये मानने के लिए तैयार नहीं है कि राज्य में भुखमरी से मौतें हो रही हैं।
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