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हिन्दी सभी स्थानीय भाषाओं की सहेली है, इनके बीच कोई अंतर्विरोध नहीं: शाह

By भाषा | Updated: November 13, 2021 17:29 IST

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वाराणसी, 13 नवंबर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को कहा कि हिन्दी सभी स्थानीय भाषाओं की सहेली है और इनके बीच कोई अंतर्विरोध नहीं हैं।

वाराणसी के दीन दयाल हस्तकला संकुल में आयोजित अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में शनिवार को केन्द्रीय गृह मंत्री ने यह बात कही।

उन्होंने कहा कि राजभाषा का विकास तभी हो सकता है जब स्थानीय भाषाओं का विकास हो और स्थानीय भाषा का विकास तभी संभव है जब राजभाषा देशभर के अंदर मजबूत हो ।

शाह ने कहा,‘‘ आजादी का अमृत महोत्सव हमारे लिये संकल्प का वर्ष है। इसी वर्ष में 130 करोड़ भारतीयों को तय करना है कि जब आजादी के 100 साल होंगे तो भारत कैसा होगा, दुनिया में भारत का स्थान कहां होगा ? चाहे शिक्षा की बात हो, संस्कार, सुरक्षा, आर्थिक उन्नति, उत्पादन बढ़ाने की बात हो, हर क्षेत्र में भारत कहां खड़ा होगा। इसका संकल्प लेने का यह वर्ष है और 75 वें साल से 100 साल तक का काल अमृत काल रहेगा और यह अमृत काल हमारे सभी लक्ष्यों की सिद्धि का माध्यम होगा

उन्होंने कहा, ‘‘ हम सब हिंदी प्रेमियों के लिये भी यह संकल्प का वर्ष होना चाहिये कि आजादी के 100 साल जब हों तो इस देश में राजभाषा और हमारी स्थानीय भाषा का दबदबा इतना हो कि किसी भी विदेशी भाषा का सहयोग लेने की जरूरत नहीं पड़े।’’

उन्होंने कहा,‘‘ यह काम आजादी के तुरंत बाद होना चाहिए था। आजादी के आंदोलन, जिसे महात्मा गांधी ने लोक आंदोलन में परिवर्तित किया, के तीन स्तंभ थे स्वराज, स्वदेशी और स्वभाषा । स्वराज तो मिल गया स्वदेशी भी पीछे छूट गया और स्वभाषा भी पीछे छूट गयी । 2014 के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार ‘मेक इन इंडिया’ और अब स्वदेशी की बात करके स्वदेशी को हमारा लक्ष्य बनाने की दिशा में काम किया है। आजादी के इस अमृत महोत्सव पर देश भर के लोगों को बताना चाहता हूं कि एक और लक्ष्य छूट गया था स्वभाषा का, उसको एक बार फिर से हम स्मरण करें और वह हमारे जीवन का हिस्सा बने।’’

शाह ने कहा, ‘‘ हिन्दी और हमारी स्थानीय भाषाओं के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं है। हिन्दी सभी स्थानीय भाषाओं की सहेली है और सखियों के बीच कभी अंतर्विरोध नहीं होता हैं । राजभाषा का विकास तभी हो सकता है जब स्थानीय भाषाओं का विकास होगा और स्थानीय भाषा का विकास तभी हो सकता हैं जब राजभाषा देश भर के अंदर मजबूत हो । ये दोनों पूरक हैं।’’ ,

काशी के महत्व को सामने रखते हुये उन्होंने कहा, ‘‘काशी भाषा का गोमुख है। भाषाओं का उद्भव, भाषाओं का शुद्धिकरण, व्याकरण को शुद्ध करना और व्याकरण को लोकप्रिय बनाने में, चाहे कोई भाषा हो, काशी का बहुत बड़ा योगदान है, इसलिये इस सम्मेलन का बहुत महत्व है ।’’

उन्होंने कहा,‘‘ आज जो हम हिन्दी बोल रहे हैं, लिखते हैं उसका जन्म यहीं काशी के अंदर हुआ है । बनारस से ही खड़ी बोली का क्रमवार विकास हुआ है।’’

केंद्रीय मंत्री ने कहा,‘‘ हिन्दी को मजबूत करने का, घर घर पहुंचाने का और अपनी स्वभाषाओं को मजबूत करने तथा राजभाषा के साथ जोड़ने का जो नया अभियान शुरू होने जा रहा है उसके लिये काशी से उचित स्थान कोई हो ही नहीं हो सकता ।’’

उन्होंने कहा,‘‘ हिन्दी भाषा के लिये विवाद खड़ा करने का प्रयास किया गया लेकिन वह समय अब समाप्त हो गया है । मैं बचपन से देखता था कि यदि अंग्रेजी बोलनी नहीं आती तो एक लघुता ग्रंथि बच्चे के मन के अंदर बन जाती थी। मैं दावे से कहता हूं कि ऐसा समय आएगा कि अपनी भाषा में नहीं बोल पाने पर लुघुता ग्रंथि का अनुभव होगा। देश के प्रधानमंत्री ने गौरव के साथ अपनी भाषाओं को देश-दुनिया में प्रस्थापित करने का काम किया है और शायद ही कोई प्रधानमंत्री होगा जिसको वैश्विक मंच पर इतना सम्मान मिला होगा जितना नरेंद्र मोदी को मिला है।’’

उन्होंने कहा कि देश भर के अभिवावकों से अपील हैं कि वे अपने बच्चों के साथ अपनी भाषा में बात करें, बच्चे चाहें किसी भी माध्यम में पढ़ते हों, घर के अंदर अपनी भाषा में उनसे बात करिए, उनका आत्मविश्वास जगाइए और अपनी भाषा के लिये जो झिझक है उसे निकाल दीजिए।

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, ''वीर सावरकर इस देश में अनेक कार्यो के लिये जाने जाते है, दुनिया भर में उनकी स्वीकृति है पूरा देश उनको वीर सावरकर के रूप में सम्मानित करता है । मगर आप लोगो के ध्यान में यह कम होगा कि वीर सावरकर ने स्वभाषा और राजभाषा के लिये बहुत बड़ा काम किया था । हिंदी का शब्द कोष बनाया था और कई ऐसे शब्दों को मैं जानता हूं जो सावरकर जी न होते तो आज शायद हम आज अंग्रेजी शब्दों का ही प्रयोग करते होते । जैसे पिक्चर देखते है इसके लिये शब्द आता है डायरेक्टर, इसके लिये कोई शब्द नही था उन्होंने ‘निर्देशक’ शब्द दिया । इसी तरह आर्ट डायरेक्टन, उन्होंने शब्द दिया कला निर्देशन । कई सारे शब्दो को उन्होंने दिया और हिंदी को समृध्द बनाने का प्रयास किया ।''

उन्होंने कहा कि इसी प्रकार अब समय आया है कि हम हिन्दी को लचीली बनायें और हमारी राज्यों की भाषा के शब्द अंदर आते हैं तो उससे परहेज न करें, कोई विदेशी भाषा का भी शब्द आता है तो परहेज न करें ।

शाह ने कहा,‘‘ मैं देश के सभी लोगों से आह्वाहन करना चाहता हूं कि स्वभाषा का हमारा लक्ष्य जो पीछे छुट गया था उसका हम स्मरण कर उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाएं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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