दंगा मामले में उच्च न्यायालय के फैसले ने आतंकवाद विरोधी कानून को ‘‘उलट’’ दिया : पुलिस

By भाषा | Updated: June 18, 2021 18:30 IST2021-06-18T18:30:02+5:302021-06-18T18:30:02+5:30

High Court's verdict in riot case "reversed" anti-terror law: Police | दंगा मामले में उच्च न्यायालय के फैसले ने आतंकवाद विरोधी कानून को ‘‘उलट’’ दिया : पुलिस

दंगा मामले में उच्च न्यायालय के फैसले ने आतंकवाद विरोधी कानून को ‘‘उलट’’ दिया : पुलिस

नयी दिल्ली, 18 जून दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा मामले में तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले ने आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए को “उलट” दिया और इसके निष्कर्षों ने आरोपी की रिहाई को “वस्तुत: रिकॉर्ड” कर दिया।

पुलिस की तरफ से पेश हुए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और वी रामासुब्रमण्यम की एक अवकाशकालीन पीठ को बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति और अन्य गणमान्य अमेरिकी हस्तियां जब यहां मौजूद थीं उस दौरान हुए दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी जबकि 700 घायल हो गए थे।

जेएनयू की छात्रा नताशा नरवाल और देवांगना कालिता तथा जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तनहा को जमानत देने के उच्च न्यायालय के फैसले की आलोचना करते हुए मेहता ने कहा कि अगर इन फैसले को लागू किया जाता है तो एक व्यक्ति जो बम लगाता है और अगर उसे निष्क्रिय कर दिया जाता है तो वह आरोपी भी कानून के चंगुल से छूट जाएगा।

मेहता ने शुरू में पीठ को बताया, “मैं यह कह सकता हूं कि संविधान के साथ समूचे यूएपीए को सिरे से उलट दिया गया है।” इस पर पीठ ने कहा, “मुद्दा महत्वपूर्ण है और इसका राष्ट्रव्यापी प्रभाव हो सकता है। हम नोटिस जारी करना चाहेंगे और दूसरे पक्ष को सुनेंगे।”

मेहता ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा कि “निष्कर्ष वस्तुत: इन आरोपियों को बरी करने का रिकॉर्ड हैं।”

उन्होंने कहा, “अन्य लोग इस आधार पर अब जमानत के लिये आवेदन कर रहे हैं।” उच्च न्यायालय के समक्ष इन मुद्दों को लेकर तर्क नहीं दिये गए थे कि कौन से मुद्दे आतंकवादी गतिविधि और विधायी क्षमता बनाते हैं।

मेहता ने दलील दी, “प्रदर्शन के अधिकार में कबसे लोगों की हत्या करने और बम फेंकने को शामिल किया गया?” उन्होंने कहा कि कई लोग मारे गए लेकिन उच्च न्यायालय कहता है कि अंतत: दंगों पर नियंत्रण पाया या और इसलिये गैरकानूनी गतिविधि (निरोधक) अधिनियम (यूएपीए) लागू नहीं होगा।

उन्होंने कहा, “इसका मतलब यह कि अगर कोई व्यक्ति बम लगाता है और बम निरोधक दस्ता उसे निष्क्रिय कर देता है तो इससे अपराध की गंभीरता कम हो जाएगी।”

मेहता ने कहा, “वे जमानत पर बाहर हैं, उन्हें बाहर रहने दीजिए लेकिन कृपया इस फैसले पर रोक लगाइए।” उन्होंने कहा, “उच्चतम न्यायालय द्वारा स्थगन के अपने मायने होते हैं।”

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इन फैसलों को देश में अदालतों द्वारा नजीर के तौर पर नहीं लिया जाएगा।

प्रदर्शन के अधिकार के संबंध में उच्च न्यायालय के फैसलों के कुछ पैराग्राफ को पढ़ते हुए मेहता ने कहा, ‘‘अगर हम इस फैसले पर चले तो पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या करने वाली महिला भी प्रदर्शन कर रही थी। कृपया इन आदेशों पर रोक लगाएं।’’

इस मामले में पेश हुए अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल अमन लेखी ने कहा कि उच्च न्यायालय के इन फैसलों की गलत व्याख्या हो सकती है।

न्यायालय ने पुलिस द्वारा उच्च न्यायालय के फैसलों को दी गई चुनौती पर सुनवाई की स्वीकृति देते हुए नरवाल, कालिता और तन्हा को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है।

पीठ ने कहा, “यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रतिवादियों (नरवाल, कालिता और तनहा) की जमानत पर रिहाई में इस चरण में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले पर 19 जुलाई को शुरू हो रहे हफ्ते में सुनवाई की जाएगी।

उच्च न्यायालय ने 15 जून को जेएनयू छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कालिता और जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तनहा को जमानत दी थी। उच्च न्यायालय ने तीन अलग-अलग फैसलों में छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने से इनकार करने वाले निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था।

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Web Title: High Court's verdict in riot case "reversed" anti-terror law: Police

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