उच्च न्यायालय ने वकीलों के परिसरों की तलाशी, जब्ती के नियमन संबंधी याचिका खारिज की
By भाषा | Published: October 6, 2021 08:31 PM2021-10-06T20:31:19+5:302021-10-06T20:31:19+5:30
नयी दिल्ली, छह अक्टूबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुवक्किलों के साथ विशिष्ट संवाद संबंधी सामग्री रखने वाले किसी वकील के परिसर में तलाशी और जब्ती अभियान चलाते समय जांच एजेंसियों द्वारा पालन किए जाने के लिए अनिवार्य दिशा-निर्देश बनाने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका बुधवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा कि उन व्यक्तियों के अधिकारों एवं विशेषाधिकारों के उल्लंघन के संबंध में कोई आम धारणा नहीं बनाई जा सकती, जिनके परिसरों पर कोई जांच एजेंसी छापा मारती है, और इस संबंध में व्यक्ति की यदि कोई शिकायत है, तो वह निचली अदालत या किसी भी उपयुक्त मंच के पास जा सकता है।
अदालत ने कहा कि यह तय करने के लिए कानून में पर्याप्त प्रावधान हैं कि तलाशी लेने का क्या तरीका होना चाहिए और उसे किसी ‘‘विशेषाधिकार प्राप्त दल’’ द्वारा वकीलों के परिसरों की तलाशी के दौरान वीडियोग्राफी के लिए कोई निर्देश जारी करने का औचित्य नजर नहीं आता।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें इस याचिका पर सुनवाई करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता, क्योंकि सब कुछ मामलों के तथ्यों एवं परिस्थितियों पर निर्भर करता है।’’
याचिकाकर्ता एवं वकील निखिल बोरवणकर ने वकीलों के परिसरों में तलाशी कार्रवाई के दौरान प्रक्रिया और दिशा-निर्देश तैयार करने का अनुरोध किया था, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वकील-मुवक्किल की गोपनीय सूचनाएं और उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा हो।
याचिकाकर्ता ने कहा था कि याचिका ऐसे समय में दाखिल की गई है, जब विवादास्पद मामलों में आरोपियों और पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले कुछ अधिवक्ताओं के खिलाफ हाल में की गई तलाशी कार्रवाई के संबंध में अधिवक्ताओं और कानून लागू करने वाली एजेंसियों के बीच गहरे अविश्वास और कटुता का माहौल है।
याचिका में दावा किया गया है कि इस तरह की कार्रवाई से लोगों को जानबूझकर निशाना बनाने की धारणा बनती है और बिना पक्षपात के न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में कानून और व्यवस्था तंत्र की क्षमता प्रभावित होती है।
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