"उनसे झुकने की उम्मीद थी, वह अब रेंग रहे हैं", जयराम रमेश ने विदेश मंत्री जयशंकर द्वारा 'नेहरू की चीन नीति' पर उठाए गये सवाल पर किया पलटवार
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: January 3, 2024 08:09 AM2024-01-03T08:09:35+5:302024-01-03T08:17:48+5:30
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा 'नेहरू की चीन नीति' पर उठाये गये सवाल को लेकर बेहद आक्रामक हमला किया है।
नई दिल्ली: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने बीते मंगलवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा 'नेहरू की चीन नीति' पर उठाये गये सवाल को लेकर बेहद आक्रामक हमला किया है। जयराम रमेश ने विदेश मंत्री जयशंकर को लताड़ लगाते हुए कहा कि उन्होंने अपनी "सभी बौद्धिक ईमानदारी और निष्पक्षता खो दी है।"
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर किये गये पोस्ट में कांग्रेस मीडिया सेल के प्रभारी जयराम रमेश ने दावा किया कि विदेश मंत्री जयशंकर एक 'नव-धर्मांतरित' व्यक्ति हैं, जो प्रधानमंत्री के समक्ष खुद को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए नेहरू की आलोचना कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, "जब भी मैं विद्वान और तेज-तर्रार विदेश मंत्री द्वारा नेहरू पर दिए गए बयानों को पढ़ता हूं, तो मैं केवल उनके द्वारा की गई अनगिनत परिक्रमाओं को याद कर सकता हूं जो उन्होंने अपनी शानदार पोस्टिंग पाने के लिए नेहरूवादियों के आसपास की थी। मैं समझ सकता हूं कि वह एक नव-धर्मांतरित व्यक्ति हैं, जो प्रधानमंत्री के साथ खुद को और भी अधिक प्रभावी बनाने के लिए नेहरू को कोस रहे हैं। लेकिन ऐसा करने में उन्होंने सारी बौद्धिक ईमानदारी और निष्पक्षता खो दी है।''
Every time I read statements made by the erudite and dapper External Affairs Minister on Nehru, I can only recall the numerous parikramas he would make around Nehruvians for his plum postings.
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) January 2, 2024
I can understand that he is a neo-convert who has to indulge in Nehru-bashing to…
कांग्रेस महासचिव ने अपने पोस्ट में कहा, "उनसे झुकने की उम्मीद थी। वह अब रेंग रहे हैं। ईमानदारी वाले लोग सिकुड़ रहे हैं। बहुत दुखद।"
कांग्रेस की ओर से यह उग्र प्रतिक्रिया तब आई जब जयशंकर ने समाचार एजेंसी एएनआई के साथ बात करते हुए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में शामिल होने के अमेरिकी प्रस्ताव को अस्वीकार करने के फैसले पर टिप्पणी की।
विदेश मंत्री ने कहा, "यहां तक कि उदाहरण के लिए, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सीट की बात आई, तो यह मेरा मनना है कि हमें आवश्यक रूप से सीट लेनी चाहिए थी। यह एक अलग बहस है, लेकिन यह कहना कि हमें पहले चीन को जाने देना चाहिए, चीन का हित पहले आना चाहिए। यह बहुत ही अजीब बयान है।''
उन्होंने कहा, "नेहरू के कार्यकाल की शुरुआत में चीन-भारत संबंधों की विशेषता मित्रता और सौहार्दपूर्ण थी, जिसमें द्विपक्षीय और क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों मुद्दे शामिल थे। हालांकि, भारत को चीन नीति में तब कठोर एहसास हुआ, जब चीन ने 1962 में युद्ध शुरू किया।"
विदेश मंत्री ने कहा, "ताली बजाने के लिए दो हाथों की जरूरत होती है। मैं इस मुद्दे को इस तरह से प्रस्तुत करता हूं कि यदि आप हमारी विदेश नीति के पिछले 75 से अधिक वर्षों को देखें तो उनमें चीन के बारे में आदर्शवाद, रूमानियत, गैर-यथार्थवाद का तनाव है। यह पहले दिन से ही शुरू हो जाता है, नेहरू और सरदार पटेल के बीच इस बात को लेकर तीव्र मतभेद थे कि चीन को कैसे जवाब दिया जाए।''