चुनाव से पहले ये 7 समुदाय फिर शुरू कर सकते हैं आरक्षण आंदोलन, 11 दिन से हार्दिक पटेल कर रहे हैं अनशन

By जनार्दन पाण्डेय | Published: September 4, 2018 01:59 PM2018-09-04T13:59:40+5:302018-09-04T14:54:13+5:30

हार्दिक पिछले पाटीदार आरक्षण आंदोलन रैली में अहमदाबाद के जीएमडीसी मैदान कथ‌िततौर पर करीब 18 लाख लोगों ने पहुंचकर प्रदर्शन किया था। जिसके बाद गुजरात में 2002 के दंगों के बाद की दूसरी सबसे बड़ी हिंसात्मक घटना घटी थी।

Hardik Patel 11th day of hunger strike, 7 more communities may resume Reservation movement before LS polls | चुनाव से पहले ये 7 समुदाय फिर शुरू कर सकते हैं आरक्षण आंदोलन, 11 दिन से हार्दिक पटेल कर रहे हैं अनशन

अनशन पर बैठे हार्दिक पटेल

अहमदाबाद, 4 सितंबरः गुजरात में पाटीदार समुदाय के आरक्षण के लिए अपने फॉर्म हाउस में 11 दिन से अनशन पर बैठे हार्दिक पटेल फिर सुर्खियों में हैं। उन्होंने अपनी वसीयत तैयार कर के अपने समर्थकों और सरकार पर दबाव बनाने की नई पहल की है। इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के हार्दिक के समर्थन में आने से उनका पक्ष और मजबूत हुआ है। देवगौड़ा ने कहा, 'हार्दिक को अनशन तोड़ देना चाहिए, गुजरात के लोगों और देश को ऐसे युवाओं की जरूरत है।' लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब हार्द‌िक ने गुजरात सरकार पर पाटीदार आरक्षण का दबाव बनाया हो। इससे पहले उन्होंने जुलाई 2015 में आंदोलन छेड़ा था, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर हलचल मचा दी थी। नतीजतन 2017 गुजरात चुनाव में हार्दिक एक बेहद अहम फैक्टर रहे। अब एक बार फिर चुनाव करीब हैं और हार्दिक पटेल आंदोलन पर हैं।

लेकिन पाटीदार आंदोलन अकेला नहीं है। हाल ही में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने केंद्र सरकार से सर्वसमाज में से ऊंची जातियों और मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के गरीबों के लिए आर्थिक आधार पर अलग आरक्षण देने की मांग की। उनसे पहले पटेल (पाटीदार), मराठा, धनगर, मुस्लिम, जाट-गुर्जर जैसे जाति-समुदायों की आरक्षण मांग पर बीते चार सालों में आरक्षण पर अपने सुर तेज किए हैं। चुनाव करीब आते-आते इन सभी समुदायों के आंदोलन फिर से उभर सकते हैं। आने वाले दिनों में ठीक वैसे ही दोबारा आरक्षण आंदोलन बल पकड़ सकते हैं, जैसे 2015 में हार्दिक के आंदोलन के बाद तीन बड़े आरक्षण आंदोलनों की गति पकड़ी थी।

साल 2015: पाटीदार (पटेल) आरक्षण आंदोलन ने मोदी सरकार को हिलाया

गुजरात में चार बार मुख्यमंत्री रहने के बाद  2014 के चुनावों में विपक्षी पार्टियों को नेस्तनाबूद  कर के देश के प्रधानमंत्री बने थे। साल 2015 तक देश में एक-एक कर के राज्यों में बीजेपी दूसरी पार्टियों को परास्त करती जा रही थी। ऐसा लग रहा था मानो नरेंद्र मोदी के विपक्ष में कोई नेता ही नहीं बचा है, उस दौर में गुजरात में हार्दिक पटेल ने ना केवल नरेंद्र मोदी को खुली चुनौती बल्कि एक प्रभावशाली आंदोलन खड़ा करने में तैयार रहे। 

साल 2015 में जुलाई भर और अगस्त के पूर्वार्ध में प्रदेश भर में चले छिटफुट प्रदर्शनों के बाद 25 अगस्त को अहमदाबाद के जीएमडीसी मैदान में एक बड़े प्रदर्शन का हार्दिक पटेल ने ऐलान किया। इसमें पटेल समुदाय के आरक्षण आंदोलन रैली में करीब 18 लाख लोगों के पहुंचने की बात कही गई। इस दौरान आंदोलनकारियों के नेता हार्दिक पटेल को हिरासत में ले लिया गया। लेकिन पुलिस के इस कदम ने पूरे गुजारात खलबली मचा दी। अहमदाबाद से सूरत तक करीब 12 से ज्यादा शहरों में आंदोलनकारी सड़कों पर उतर आए। तोड़फोड़ की गई और आगजनी हुई। एक आंकड़े के मुताबिक सवा सौ गाड़ियों में आग लगा दी और 16 थाने जला दिए गए। इतना ही नहीं, ट्रेन की पटरियां उखाड़ दी गईं। हालात ऐसे बने कि हार्दिक घंटेभर के भीतर छोड़ना पड़ा। लेकिन रात तक अहमदाबाद, सूरत, मेहसाणा, ऊंझा, विसनगर समेत कई जगहों पर कर्फ्यू लगाना पड़ा। कई जानकार मानते हैं कि गुजरात के 2002 के दंगों के बाद ये दूसरा मौका था जब इतने बड़े स्तर हिंसात्मक घटनाएं घटीं। हालात ऐसे बने कि 26 अगस्त को गुजरात बंद का ऐलान किया। खुद हार्दिक पटेल को पाटीदार आंदोलनकारियों को गुजरात बंद का आह्वान करना पड़ा। स्कूल-कॉलेज की छुट्टी कर दी गई। कई जगहों पर इंटरनेट सेवा बंद करनी पड़ी। गुजरात के कई रेलवे स्टेशनों और एयरपोर्ट्स पर भारी संख्या में लोग फंसे रहे। इस घटना ने केवल गुजरात सरकार नहीं, बल्कि केंद्र में बैठे नरेंद्र मोदी तक हिला दिया।

हार्दिक पटेल का आंदोलन गुजरात में नौकरियों में पाटीदारों (पटलों) को ओबीसी कोटे से अलग एक अपना आरक्षण देने की मांग से जुड़ा है, जो सीधे तौर युवाओं पर असर डालता है। लेकिन गुजरात में 27% सीटें अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 14% अनुसूचित जनजाति के लिए व 7% अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले के अनुसार किसी भी स्थिति में नौकरियों के अवसर या अन्य क्षेत्रों में भी आरक्षण को 50% से ज्यादा नहीं होना चाहिए। ऐसे में गुजरात सरकार पहले 48 फीसदी तक आरक्षण दे रही थी। इसलिए मसले पर कोई आखिरी फैसला नहीं हो पाया। इसलिए उन्हें दोबारा अनशन पर बैठना पड़ा है।

साल 2016: जाट आरक्षण आंदोलन ने हरियाणा को जलाया

हरियाणा के रोहतक से 20 किलोमीटर दूर जसइया गांव के आसपास, नेशनल हाईवे पर दोपहर होते-होते करीब 2000 लोग इकट्ठा हो गए थे। पूरे हरियाणा में धारा 144 पहले से लागू है। पांच से ज्यादा लोग एक जगह पर दिखें तो पुलिस ड्रोन भेजकर उनकी वीडियो रिकॉ‌र्डिंग शुरू कर देती ‌थी। यह बात है जून 2016 की, जब हरियाणा के जाट समुदाय के लोगों ने आरक्षण के लिए दोबारा आंदोलन करने की चेतावनी दी थी।

इससे पहले फरवरी 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन हुआ था। इसमें 28 लोग मारे गए थे। पुलिस ने करीब 2100 लोगों पर मामले दर्ज किए थे। करीब 300 के करीब लोगों को जेल में डाला गया था। मामला था जाटों को ओबीसी के अंतर्गत मिलने वाले आरक्षण पर कैची चलने का। चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के फैसले को रद्द करते हुए जाट आरक्षण को खत्म करने का एक अहम फैसला सुनाया था। इसके बाद से जाट उग्र हो गए और हरियाणा में बीते करीब 50 सालों की सबसे बड़ी हिंसात्मक घटना घटी।

साल 2018: मराठा आरक्षण आंदोलन ने महाराष्ट्र में मचाया बवाल

पिछले ही महीने महाराष्‍ट्र में मराठा समुदाय को अलग से आरक्षण देने को लेकर हिंसात्मक आंदोलन हुए। अगस्त के पूर्वाद्ध में अचानक मराठा समुदाय के लोग उग्र हो गए और सड़कों पर उतरकर आगजनी और दुकानें बंद कराने लगे। इसके पीछे महाराष्ट्र सरकार का वह बयान बताया जाता है जिसमें कहा गया था कि जल्द ही 72 हजार सरकारी नौकरियों की घोषणा होने वाली है। मराठा समुदाय चाहता था कि इन नौकरियों के आने से पहले सरकार इस समुदाय के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्‍था कर दे।

यह मसला भी सुप्रीम कोर्ट के उसी फैसले से संबंधित था जिसमें 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं देने के निर्देश हैं। क्योंकि मराठा समुदाय ओबीसी के लिए निर्धारित 27 फीसदी कोटे में आते हैं। सरकार फिलहाल इस वर्ग के आरक्षण में कोई बदलाव नहीं करना चाहती। जबकि ऐसे आरोप पहले से ही लगते रहे हैं कि बांबे हाई कोर्ट के शिक्षा में 5 फीसदी आरक्षण देने की अनुमति के बाद भी राज्‍य सरकार मुस्लिम आरक्षण पर चुप है, जबकि मराठों को 16 फीसदी आरक्षण देने की सोच रही है। लेकिन बाद में इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हो सकता। राज्य सरकार ने प्रभावी कदम उठाने का आश्वासन दिया है।

गुज्जर, निषाद भी मांग रहे हैं आरक्षण

इसी साल जुलाई में राजस्‍थान की वसुंधरा राजे सरकार गुज्जरों को आरक्षण देने के अंतिम प्रस्ताव पर मसौदा तैयार कीं। इसके अलावा यूपी में निषाद पार्टी सालों से अलग आरक्षण की मांग कर रही है। बीते जून में ही पार्टी ने रेल रोककर अपने धरने को बल दिया था। इसके अलावा धनगर, मुस्लिम समुदाय के लोग भी रह-रह कर अपने आरक्षण नीति पर असमतियां जताते रहे हैं और आने वाले दिनों में बड़े आंदोलन की चेतावनियां देते रहे हैं।

भारत में सबसे पहली आरक्षण मांग

भारत में सबसे पहले साल 1882 में हंटर आयोग की नियुक्ति की गई थी। इसमें महात्मा ज्योतिराव फुले ने नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के साथ सरकारी नौकरियों में सभी के लिए आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व की मांग उठाई थी।

भारत में आरक्षण की वजह

भारत में अर्से तक वर्ण व्यवस्‍था रही। इसमें निचले तबके लोगों को शिक्षा में अवसर नहीं मिले। इसलिए जब भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्‍था आई तो उनको समान अवसर के लिए विशेष दर्जा दिया गया। ताकि उनका सरकारी संस्‍‌थानों और अन्य जगहों पर उनका प्रतिनिधित्व बढ़े। संविधान की धाराओं में इसका उल्लेख किया गया है। उन्हीं के आधार पर भारतीय संसद ने उच्च शिक्षा में 27% तक के आरक्षण की व्यवस्‍था रखी है। इसके आलावा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक तमाम अन्यान्य तरीकों से दिए जाने वाले आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तक ही होनी चाहिए। लेकिन कुछ राज्यों ने इसका संशोधन करते हुए यह सीमा 68% आरक्षण तक प्रस्ताव रखे हैं, इनमें आर्थ‌िक आधार पर 14%  तक आरक्षण अगड़ी जातियों को देने के प्रस्ताव हैं।

English summary :
Hardik Patel, who is on hunger strike for 11 days in his farmhouse for reservation of Patidar community in Gujarat, is in the spotlight again. He has prepared his will and has taken a new initiative to put pressure on his supporters and the government.


Web Title: Hardik Patel 11th day of hunger strike, 7 more communities may resume Reservation movement before LS polls

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